बिना वुज़ू क़ुरआन छूना (सही या ग़लत?) | Bina Wuzu Qur’an Chhoona

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله
Ye mazmoon Roman Urdu me padhne ke liye yahan click kare.
हमारे ज़हनों में अक्सर यह सवाल आता है कि बिना वुज़ू क़ुरआन छूना सही है या ग़लत? इसी सवाल का जवाब हम इस छोटे लेकिन जामे’ मज़मून में देखेंगे, इंशाअल्लाह.
🟩 अब्दुल्लाह बिन अबी बक्र बिन मुहम्मद बिन अम्र बिन हज़्म से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने जो किताब अम्र बिन हज़्म (रज़ि०) के लिए लिखी थी, उसमें (यह भी तहरीर) था: “क़ुरआन को सिर्फ़ ताहिर (पाक-साफ़) ही छुए.” (मुवत्ता ह० नं. 470, दारक़ुतनी 1/121, 122)
ध्यान रहे कि नापाकी दो तरह की होती है. हदस अकबर (बड़ी नापाकी), जिससे पाकी के लिए ग़ुस्ल ज़रूरी है और हदस असग़र (छोटी नापाकी), जिससे पाकी के लिए वुज़ू ज़रूरी है.
क़ुरआन मजीद की अज़मत का तक़ाज़ा भी यही है कि इसे हर क़िस्म की नापाकी से पाक शख्स ही छुए.
यह हदीस अक्सर अहल-ए-इल्म की दलील है कि जिन पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो, और बेवुज़ू लोग क़ुरआन मजीद नहीं छू सकते.
🔷 इमाम मालिक (रह०) ने फ़रमाया: “बेवुज़ू क़ुरआन मजीद को छूना इसलिए मकरूह नहीं कि इसे पकड़ने वाले के हाथ में कोई चीज़ (नजासत) होगी जिससे वो नापाक हो जाएगा, बल्कि क़ुरआन मजीद की इज़्ज़त और ताज़ीम की वजह से इसे बेवुज़ू पकड़ना मकरूह क़रार दिया गया है.” (अल-मुवत्ता: 470)
🔷 हाफ़िज़ इब्न अब्दुल-बर्र (रह०) (व. 463 हिजरी) ने उपर वाली हदीस नक़्ल करने के बाद फ़रमाया: “इस मसले में फ़ुक़हा-ए-मदीना, इराक़, और शाम में कोई इख्तिलाफ़ नहीं है कि क़ुरआन को सिर्फ़ हालत-ए-वुज़ू ही में छुआ जाएगा.” (अत-तमहीद 8/271 व नुस्ख़ा उखरा 6/8)
🔷 इमाम बग़वी (रह०) (म. 516 हिजरी) ने फ़रमाया: “अक्सर अहल-ए-इल्म का इसी पर अमल है कि बेवुज़ू शख्स या जुनबी (जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो) के लिए क़ुरआन पकड़ना और छूना जायज़ नहीं है.” (शरह-उस-सुन्नह 1/363)
🟩 मुसअब बिन साद बिन अबी वक़्क़ास (रह०) का बयान है: मैं (अक्सर) साद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि०) के लिए क़ुरआन को पकड़े रखता (और वो पढ़ते रहते थे). एक दिन मैंने खुजाया तो साद (रज़ि०) ने फ़रमाया: शायद तुमने अपनी शर्मगाह को छुआ है? मैंने अर्ज़ किया: जी हाँ. उन्होंने फ़रमाया: उठो और वुज़ू करो. चुनांचे मैंने उठ कर वुज़ू किया, फिर वापस आया. (मुवत्ता इमाम मालिक, ह० नं. 89)
(साद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि०) इस मौक़िफ़ के क़ायल थे कि शर्मगाह छूने से वुज़ू टूट जाता है, जैसे कि अबू दाऊद ह० नं. 181 में मिलता है. वज़ाहत यहाँ देखें.)
🔷 इमाम बैहक़ी (रह०) ने इस असर पर यह बाब (chapter) क़ायम किया: “باب نھی المحدث عن مس المصحف” (बेवुज़ू शख्स को क़ुरआन छूने की मनाही). (सुनन-उल-कुबरा 1/88)
🔷 अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि०) ने फ़रमाया: “क़ुरआन को सिर्फ़ पाक ही छुए.” (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० नं. 7506)
अल-औसत ल इब्न अल-मुन्ज़िर (2/224) में “مُتَوَضِّیءُ” के अल्फ़ाज़ हैं, यानी क़ुरआन को सिर्फ़ बावुज़ू शख्स छुए.
🔷 इमाम अहमद (रह०) ने फ़रमाया: “क़ुरआन को सिर्फ़ पाक ही छुए. अगर कोई वुज़ू के बग़ैर क़ुरआन पढ़ना चाहे (फिर भी) इसे न छुए और लकड़ी या किसी चीज़ से पेज पलटे.” (मसाइल अहमद बिन हम्बल रिवायत सालेह 3/208, नं: 1667)
🔷 हकम बिन उतैबा और हम्माद बिन अबी सुलैमान (रह०) ने फ़रमाया: “जब क़ुरआन मजीद कपड़े (या ग़िलाफ़) में हो तो इसे बेवुज़ू छूने में कोई हर्नज हीं है.” (अल-मसाहिफ़ ल इब्न अबी दाऊद: 759)
🔷 शैख़-उल-इस्लाम इब्न तैमिया (रह०) (मजमू-उल-फ़तावा 21/266), अल्लामा इब्न रजब (फ़तह-उल-बारी 1/404), और इब्न क़ुदामह अल-मक़दिसी (अल-मुग़नी 1/202) के नज़दीक सहाबा किराम (रज़ि०) में इस मसले में कि “क़ुरआन मजीद को सिर्फ़ पाक छुए” कोई मुख़ालिफ़त मशहूर नहीं है.
🔷 शैख़ मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन (रह०) ने फ़रमाया: “गौरऔर फ़िक्र के बाद मुझ पर वाज़ेह हुआ कि ताहिर से मुराद हदस असग़र (बेवुज़ू) और हदस अकबर (जनाबत वग़ैरा) से पाक होना है.” (शरह मुवत्ता इमाम मालिक 2/60)
जो लोग वुज़ू के बग़ैर क़ुरआन मजीद छूने के क़ायल हैं, उनके नज़दीक भी अफ़ज़ल और बेहतर यही है कि बावुज़ू हो कर क़ुरआन मजीद छुआ जाए. लिहाज़ा अफ़ज़ल और बेहतर ही को तरजीह हासिल है और इसी पर अमल पैरा होना चाहिए.
इस मज़मून का काफ़ी बड़ा हिस्सा हाफ़िज़ नदीम ज़हीर हाफ़िज़हुल्लाह की तहरीर “क़ुरआन को सिर्फ़ ताहिर छुए” (माहनामा अल-हदीस हज़रो, शुमारा 116, पेज 5-8) से लिया गया है.