ग़ुस्ल का तरीक़ा | Ghusl Ka Tarika - Muttaqi
तहारत

ग़ुस्ल का तरीक़ा | Ghusl Ka Tarika

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डिक्शनरी के हिसाब से ग़ुस्ल का मतलब होता है पूरे जिस्म पर पानी बहाना. शरीअ़ह की ज़बान में ग़ुस्ल कहते हैं अल्लाह की इबादत की नियत से एक ख़ास तरीक़े से पूरे जिस्म पर पानी डालना. जिस शख्स पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ है तो जब तक वह ग़ुस्ल नहीं कर लेता तब तक नमाज़, तवाफ़ जैसी इबादतें नहीं कर सकता.

इसलिए हमारे लिए ज़रूरी है कि हम ग़ुस्ल से मुताल्लिक़ सारे मसाइल जानने की कोशिश करें. इस पोस्ट में अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ जानेंगे कि ग़ुस्ल का तरीक़ा (Ghusal Ka Tarika / Ghusl Ka Tarika) क्या है, ग़ुस्ल करना कब फ़र्ज़ हो जाता है और किन मौक़ों पर ग़ुस्ल मुस्तहब होता है. इंशाअल्लाह.

अगर आप सुन्नत के मुताबिक़ वुजु पूरा तरीक़ा जानना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें.

Fehrist

गुस्ल कब फ़र्ज़ होता है? | Ghusl Kab Farz Hota Hai?

इन चार हालतों में मुसलमान मर्द और औरत पर गुस्ल करना फ़र्ज़ हो जाता है.

1. जोश और शहवत के साथ मनी (वीर्य) निकलने पर (इसमें स्वप्नदोष/एहतेलाम भी शामिल है).
2. हम बिस्तरी के बाद, भले ही मनी निकले या न निकले. [ये दोनों, हालते जनाबत कहलाते हैं]
3. माहवारी (पीरियड्स) के बाद.
4. निफ़ास के बाद. [निफ़ास: वह ख़ून जो बच्चे की पैदाइश के बाद मां को आता है]

गुस्ल का सही तरीक़ा क्या है? | Ghusal Ka Tarika Kya Hai?

ग़ुस्ल के दो तरीक़े हैं | Ghusl Ke 2 Tarike Hain

1-मुकम्मल और मुस्तहब तरीक़ा | Mukammal Aur Mustahab Tarika

यह वह तरीक़ा है जिस तरह ग़ुस्ल करना मुस्तहब है लेकिन वाजिब नहीं है और सुन्नत पर अमल करने का सवाब भी मिलता है.

2-किफ़ायत करने वाला तरीक़ा | Kifayat Karne Wala Tarika

यह छोटा तरीक़ा है. मतलब यह है कि अगर आप इस तरीक़े के मुताबिक़ ग़ुस्ल करेंगे तो आपका ग़ुस्ल हो जाएगा और पाकीज़गी भी मिल जाएगी. लेकिन अगर कोई शख्स इस तरह भी ग़ुस्ल नहीं करता है, तो उसका ग़ुस्ल सही नहीं है.

मुकम्मल और मुस्तहब तरीक़े से ग़ुस्ल कैसे करें? | Mukammal Aur Mustahab Tarike Se Ghusl Kaise Kare?

1- पाकी हासिल करने की नियत दिल से करें.
2- बिस्मिल्लाह पढ़ें, अपने हाथों को तीन बार धोए और अपनी शर्मगाह से गंदगी को साफ़ करें.
3- नमाज़ की तरह पूरा वुज़ू करें.
4- अपने सर पर तीन बार पानी बहाए और बालों को रगड़ें यहाँ तक कि पानी बालों की जड़ों तक पहुँच जाए.
5- अपने पूरे बदन पर पानी बहाए. अपने बदन के दाहिने हिस्से से शुरू करे फिर बाएँ हिस्से को धोएं. उसे अपने हाथों से रगड़ें ताकि पानी पूरे बदन तक पहुँच जाए. ध्यान रहे कि बाल बराबर हिस्सा भी सूखा न रह जाए.

ग़ुस्ल के इस मुस्तहब तरीक़े की दलील | Ghusl Ke Is Mustahab Tarike Ki Daleel

हज़रत मैमूना रज़ि० (नबी ﷺ की बीवी) बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने गुस्ल का इरादा फ़रमाया तो सबसे पहले दोनों हाथ धोए, फिर शर्मगाह को धोया, फिर बायां हाथ, जिससे शर्मगाह को धोया था, ज़मीन पर रगड़ा फिर उसको धोया, फिर कुल्ली की और नाक में पानी डाला, फिर चेहरा धोया, फिर कोहनियों तक हाथ धोए, फिर सर पर पानी डाला और बालों की जड़ों तक पानी पहुंचाया. तीन बार सर पर पानी डाला, फिर सारे बदन पर पानी डाला, फिर जहां आपने गुस्ल किया था उस जगह से हटकर पैर धोए. (सहीह बुख़ारी ह० 265, सहीह मुस्लिम ह० 722)

हाफ़िज़ इब्ने हजर रह० फ़रमाते हैं: “किसी हदीस में (गुस्ल का वुज़ू करते वक़्त) सर के मसह का ज़िक्र नहीं है.” (फ़त्हुल बारी 1/472)

हज़रत आइशा रज़ि० और हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि०, रसूलुल्लाह ﷺ के गुस्ल जनाबत में वुज़ू का ज़िक्र करते हुए फ़रमाते हैं कि आप ﷺ ने सर का मसह नहीं किया बल्कि उस पर पानी डाला. इमाम नसाई रह० ने इस हदीस पर यह अध्याय बनाया है: “जनाबत के वुज़ू में सर के मसह को छोड़ देना.” (नसाई ह० 422)

किफ़ायत करने वाला तरीक़ा | Kifayat Karne Wala Tarika

1- पाकी हासिल करने की नियत करें.
2- अपने सारे जिस्म पर पानी डालें. फिर कुल्ली करे और नाक में पानी चढ़ा कर झाड़े. अपने बालों की जड़ों को अच्छी तरह तर करे और जहां पानी पहुंचने में कुछ दिक़्क़त हो वहां तक भी पानी पहुंचाए, जैसे कान, बग़लें, घुटनों की अंदरूनी हिस्सा वग़ैरह.

शैख इब्ने उसैमीन रह० ने कहा कि इस बात की दलील कि यह ग़ुस्ल काफ़ी है; अल्लाह का यह फरमान है: 
 وَإِن كُنتُمْ جُنُباً فَاطَّهَّرُو
“और अगर तुम जनाबत की हालत में हो, तो (ग़ुस्ल के ज़रिये) पाकी हासिल करो.” (सूरह माइदा: 6)

अल्लाह ने इसके इलावा और कुछ नहीं कहा, लिहाज़ा अगर कोई शख़्स एक बार सारे जिस्म पर पानी बहा ले तो यह कहना सही है कि उसने अच्छी तरह पाकी हासिल कर ली है.” (शरह अल-मुम्ती 1/423)

औरतों के ग़ुस्ल का तरीक़ा | Aurton Ke Ghusl Ka Tarika

औरतों के लिए भी ग़ुस्ल का तरीक़ा वही है जो मर्दों का है. लेकिन मर्दों के बाल छोटे होते हैं इसलिए उनको भिगोना और सुखाना कोई मुश्किल काम नहीं है. जबकि औरतों के लिए यह एक मस्अला बन जाता है. शरीअ़ह ने इस बारे में उनके लिए कुछ आसानी रखी है जिसके बारे में न जानने की वजह से कई औरतें ख़ुद के लिए मुश्किल पैदा कर लेती हैं.

हज़रत उम्मे सलमा रज़ि० रिवायत करती हैं कि मैंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! मैं अपने सर के बाल ख़ूब मज़बूत गूंधती हूं. क्या मैं उन्हें गुस्ले जनाबत के वक़्त खोला करूं? आप ﷺ ने फ़रमाया: “उनका खोलना ज़रूरी नहीं. तुम्हारे लिए यही काफ़ी है कि तीन चुल्लू पानी अपने सर पर डालो, फिर अपने सारे बदन पर पानी बहाओ तो तुम पाक हो जाओगी.” (सहीह मुस्लिम ह० 744)

इससे मालूम हुआ कि गुस्ले जनाबत के लिए बाल पूरा खोलने की ज़रूरत नहीं है. सिर्फ़ बालों की जड़ों को भिगोना काफ़ी है.

➤ मगर यह हुक्म सिर्फ़ गुस्ले जनाबत का है. गुस्ले हैज़ (माहवारी) के लिए बालों को खोलना मुस्तहब है.

हज़रत आइशा रज़ि० को ख़बर मिली कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रज़ि० औरतों को गुस्ले जनाबत के लिए बाल खोलने का हुक्म देते हैं. आप फ़रमाने लगीं: इब्ने अम्र पर हैरत है, उन्होंने औरतों को तकलीफ़ में डाल दिया. वह उन्हें सर मुंडवाने का हुक्म क्यों नहीं दे देते. मैं और रसूलुल्लाह ﷺ एक ही बर्तन में गुस्ल करते और मैं अपने (बाल खोले बिना) सर पर तीन चुल्लू से ज़्यादा पानी नहीं डालती थी. (सहीह मुस्लिम ह० 747, सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 247)

हज़रत आइशा रज़ि० से रिवायत है कि उन्हें रसूलुल्लाह ﷺ ने गुस्ले हैज़ के लिए फ़रमाया: “अपने बाल खोलो और गुस्ल करो.” (इब्ने माजा ह० 641)

➤ इसका निचोड़ यह है कि औरत के लिए जनाबत और हैज़ के बाद गुस्ल में कोई फ़र्क़ नहीं, सिवाए यह कि हैज़ के बाद वाले गुस्ल की सूरत में बालों को खोलकर रगड़ना ज़्यादा मुस्तहब है. ऐसी औरत के लिए यह भी मुस्तहब है कि ख़ून आने वाली जगह पर ख़ुशबू लगाए ताकि नागवार बू दूर हो जाए. एक बार नबी ﷺ ने गुस्ले हैज़ के बारे में बयान करते हुए फ़रमाया: ….फिर मुश्क लगा कपड़ा या रूई से पाकी हासिल करो (यानी उस कपड़े से ख़ून के निशान को साफ़ करो). (सहीह मुस्लिम ह० 748)

दूसरे तरह के ग़ुस्ल | Dusre Tarah Ke Ghusl

गुस्ल जनाबत के बाद उन हालात का ज़िक्र किया जाता है जिनमें गुस्ल करना वाजिब, मस्नून या मुस्तहब है:

जुमा के दिन ग़ुस्ल | Juma Ke Din Ghusl

जुमे के दिन ग़ुस्ल को कुछ अहले इल्म ने वाजिब माना है और कुछ ने सुन्नते मुआक्किदह/मुस्तहब.

जिन लोगों ने वाजिब माना है उनकी कुछ दलीलें इस तरह हैं.

⚫ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ि० कहते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जुमा के दिन हर बालिग़ (व्यस्क) मुसलमान पर नहाना वाजिब है.” (बुख़ारी ह० 879, मुस्लिम ह० 846)

⚫ हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “हर मुसलमान पर हक़ है कि हफ़्ते में एक दिन (जुमा को) गुस्ल करे. इसमें अपना सर धोए और अपना बदन धोए.” (बुख़ारी ह० 897, मुस्लिम ह० 849)

⚫ एक सहाबी सिर्फ़ वुज़ू करके जुमे में कुछ देरी से हाज़िर हुए तो उमर रज़ि० ने ख़ुत्बा के दौरान उनको डांटा और कहा कि “रसूलुल्लाह तो जुमे के दिन ग़ुस्ल का हुक्म दिया करते थे.” (बुख़ारी ह० 878, मुस्लिम ह० 845)

इब्ने हजर (फ़तहुल बारी 3/13), इब्ने हज़म (अल महल्ला 1/255), इब्ने क़य्यिम (ज़ादुल मआद 1/365), अल्बानी रह० (तमामुल मिन्ना पेज 120) वगै़रह ने इसी मज़हब को अपनाया है.

जिन लोगों ने ग़ुस्ल को सुन्नते मुआक्किदह/मुस्तहब माना है उनकी कुछ दलीलें इस तरह हैं.

⚫ जुमे के दिन जिसने वुज़ू किया उसने अच्छा और बेहतर किया. और जिसने ग़ुस्ल किया तो ग़ुस्ल अफ़्ज़ल और बेहतरीन है. (अबू दावूद ह० 354, तिर्मिज़ी ह० 497)

⚫ जिसने वुज़ू किया और बेहतर वुज़ू किया. फिर जुमा के लिए आया और ध्यान से सुनता रहा और ख़ामोश भी रहा तो इस जुमा से पिछले जुमा के बीच, और 3 दिन ज़्यादा के गुनाहों को बख्श दिया जायेगा. (मुस्लिम ह० 1987, इब्ने माजा ह० 1090)

⚫ जुमे के दिन ग़ुस्ल का हुक्म देने की वजह यह थी कि सहाबा किराम मुश्किल हालात में दूर दराज़ के इलाक़ों से धूल गर्द में लिपटे और पसीने से सराबोर आते थे. जिस वजह से मस्जिद में पसीने की बदबू फैल जाती थी. इसलिए नबी ﷺ ने उनसे कहा कि अगर तुम इस दिन ग़ुस्ल कर लिया करो (तो बेहतर है). (बुख़ारी ह० 902, 903)

चारों इमामों के नज़दीक जुमा का ग़ुस्ल सुन्नते मुआक्किदह है, वाजिब नहीं.

इब्ने तैमिया रह० फ़रमाते हैं कि ग़ुस्ल जुमा मुस्तहब है. अलबत्ता जिसमें पसीने की वजह से बदबू हो, जिससे नमाज़ी और फ़रिश्ते तक्लीफ़ महसूस करें तो उस पर वाजिब है. (मजमू उल फ़तावा 2/232)

मय्यत को ग़ुस्ल देने वाला ग़ुस्ल करे | Mayyat Ko Ghusl Dene Wala Ghusl Kare

⚫ हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जो शख़्स मुर्दे को गुस्ल दे तो उसे चाहिए कि वह ख़ुद भी नहाये.” (अबू दावूद ह० 3161-3162, तिर्मिज़ी ह० 993, इब्ने माजा ह० 1463, इसे इब्ने हिब्बान (अल मवारिद-751) और इमाम हाकिम (1/23) ने सहीह कहा है)

⚫ हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “तुम पर मय्यित को गुस्ल देने से कोई गुस्ल वाजिब नहीं क्योंकि तुम्हारी मय्यित पाक मरती है, नापाक नहीं, इसलिए तुम्हें हाथ धो लेना ही काफ़ी है.” (बैहक़ी (1/306) इसे हाकिम और ज़हबी ने सहीह और इब्ने हजर ने हसन कहा है.)

➤ दोनों हदीसों को मिलाने से मस्अला यह साबित हुआ कि जो शख़्स मय्यित को ग़ुस्ल दे, उसके लिए नहाना मुस्तहब है, ज़रूरी नहीं. इसलिए हज़रत इब्ने उमर रज़ि० फ़रमाते हैं: “हम मय्यित को गुस्ल देते (फिर) हममें से कुछ गुस्ल करते और कुछ न करते.” (बैहक़ी 1/306) हाफ़िज़ इब्ने हजर ने इसे सहीह कहा है.

नव मुस्लिम ग़ुस्ल करे | New Muslim Ghusl Kare

क़ैस बिन आसिम रज़ि० से रिवायत है कि जब वह मुसलमान हुए तो रसूलुल्लाह ﷺ ने उन्हें हुक्म दिया कि पानी और बेरी के पत्तों के साथ गुस्ल करें. (अबू दावूद ह० 355, नसाई (1/109), तिर्मिज़ी ह० 605, इसे इमाम नववी ने हसन, इमाम इब्ने खुज़ैमा (ह० 254-255) और इमाम इब्ने हिब्बान (अल मवारिद -234) ने सहीह कहा है.)

इदैन के दिन ग़ुस्ल | Eidain Ke Din Ghusl

दोनों ईद, यानी ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा के दिन गुस्ल के बारे में नबी ﷺ  से कुछ भी साबित नहीं है. नाफ़े रह० कहते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि० ईदुल फ़ित्र के दिन गुस्ल किया करते थे. (मुवत्ता इमाम मालिक ह० 428, 436)

हज़रत अली रज़ि० ने फ़रमाया: “जुमा, अरफ़ा (9 ज़ुल हिज्जा), क़ुरबानी और ईदुल फ़ित्र के दिन गुस्ल करना चाहिये.” (बैहक़ी 3/278)

यह ईदैन के दिन गुस्ल पर सबसे अच्छी दलील है. इमाम नववी फ़रमाते हैं: “इस मसअले में एतेमाद हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि० के अमल पर है, और जुमा के गुस्ल पर क़ियास इसकी बुनियाद है.” (अल मज्मूअ़ 5/11)

हाफ़िज़ इब्ने अब्दुल बर्र रह० फ़रमाते हैं कि ईदैन के दिन ग़ुस्ल के बारे में रसूलुल्लाह ﷺ से कोई हदीस साबित नहीं, सहाबा रज़ि० का अमल है. अहले इल्म की एक जमाअ़त के नज़दीक यह गुस्ल, गुस्ल जुमा पर क़यास करते हुए मुस्तहब है.

एहराम का ग़ुस्ल | Ehram Ka Ghusl

हज़रत ज़ैद बिन साबित रज़ि० से रिवायत है कि हज का एहराम बांधते वक़्त रसूलुललाह ﷺ ने गुस्ल फ़रमाया. (तिर्मिज़ी ह० 830, इमाम तिर्मिज़ी ने इसे हसन कहा है और इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 2595 में सहीह कहा है.)

मक्का में दाख़िल होने का ग़ुस्ल | Makkah Me Dakhil Hone Ka Ghusl

हज़रत इब्ने उमर रज़ि० फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ मक्का में दाख़िल होते वक़्त गुस्ल करते थे.” (बुख़ारी ह० 1553, 1573, मुस्लिम ह० 1259)

गुस्ल का वुज़ू नमाज़ के लिए काफ़ी है | Ghusl Ka Wuzu Namaz Ke Liye Kafi Hai

हज़रत आइशा रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ गुस्ल के बाद वुज़ू नहीं करते थे. (तिर्मिज़ी ह० 107, अबू दावूद ह० 250, नसाई ह० 253). यानी गुस्ल के शुरू में जो वुज़ू करते थे, उसको काफ़ी जानते और नमाज़ के लिए दोबारा वुज़ू नहीं फ़रमाते थे.

आबादी में ग़ुस्ल करते वक़्त पर्दे का एहतिमाम ज़रूरी है. (सहीह बुख़ारी ह० 280-281, सहीह मुस्लिम ह० 386-387)

इस पूरे मज़मून में ग़ुस्ल के तरीक़े (Ghusl ka tarika) पर तफ़सील से गुफ़्तगू की गयी है. उम्मीद है कि आप लोगों को ग़ुस्ल के ताल्लुक़ से कोई भी कनफ्यूज़न नहीं होगा. फिर भी अगर कोई सवाल या शुबह हो तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.

जज़ाकल्लाह ख़ैर.

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