हदीस की हिफ़ाज़त और अहमियत | Hadees Ki Hifazat Aur Ahmiyat - Muttaqi
इस्लाह

हदीस की हिफ़ाज़त और अहमियत | Hadees ki Hifazat Aur Ahmiyat

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

Is mazmoon ko Roman Urdu me padhne ke liye yahan click kare.

शरीअ़त बनाने में हदीसों की भी उतनी ही अहमियत है जितनी क़ुर्आन की. यह बात एक आम मुसलमान अच्छे से जानता है. लेकिन जो लोग इस बात से अनजान हैं कि हदीसों की अहमियत क्या है और उनकी हिफ़ाज़त कैसे हुई, वो इस बारे में ख़ुद भी गुमराह होते हैं और दूसरों को भी करते हैं. इस मज़मून के ज़रिये हदीस की अहमियत और हिफ़ाज़त को मुख़्तसर अंदाज़ में समझने की कोशिश करते हैं. इंशाअल्लाह.

Fehrist

सहीह हदीसें भी अल्लाह की तरफ से हैं

◆ अल्लाह ने फ़रमाया “और वह (मुहम्मद) अपनी ख़्वाहिश से कोई बात नहीं कहते बल्कि यह तो एक ‘वही’ है जो उन पर नाज़िल की जाती है.(सूरह नज्म 3,4)
इस आयत से पता चला कि नबी ﷺ पर नाज़िल होने वाला क़ुर्आन ही नहीं बल्कि उनकी अहादीस भी अल्लाह की तरफ से ही हैं.

◆ और एक जगह फ़रमाया..
“बेशक हमने ही ज़िक्र नाज़िल किया है और हम ही इसकी हिफ़ाज़त करने वाले हैं.(सूरह हिज्र 9).

यहाँ ‘ज़िक्र’ लफ्ज़ का इस्तेमाल हुआ है ‘क़ुर्आन’ का नहीं और क़ुर्आन में दूसरी जगह रसूलुल्लाह ﷺ को ‘ज़िक्र’ कहा गया है.

◆ “यक़ीनन अल्लाह ने तुम्हारी तरफ़ ‘ज़िक्र’ (यानी रसूल) उतारा है जो अल्लाह की आयात साफ़ साफ़ पढ़ कर सुनाता है.(सूरह तलाक़ 10,11)

यहाँ ‘ज़िक्र’ का बदल लफ्ज़ ‘रसूल’ है. यानी अल्लाह ने जिसकी हिफाज़त की बात की है उसमे क़ुर्आन के साथ हदीसें भी हैं.

◆ इसी तरह क़ुर्आन में एक और जगह इरशाद फ़रमाया “बेशक अल्लाह ने मोमिनों पर एहसान किया कि इन्हीं में से एक रसूल भेजा जो इन्हें  उसकी आयतें पढ़कर सुनाता है और इन्हें पाक करता है और इन्हें किताब और हिकमत सिखाता है.” (सूरह आले इमरान 164).
इससे भी पता चला कि रसूलुल्लाह ﷺ ने किताब (यानी क़ुर्आन) के अलावा हिकमत (यानी हदीस) भी अल्लाह के हुक्म से ही सिखाई.

◆ “और तुम्हारे घरों में अल्लाह की आयात और जिस हिकमत की तिलावत की जाती है उसको याद करती रहो.” (सूरह अहज़ाब 34)

◆ “और जब उनसे कहा जाता है कि आओ उस तरफ जो अल्लाह ने नाज़िल किया और जो रसूल की तरफ़ नाज़िल किया गया तो आप मुनाफ़िक़ो को देखते हैं कि वो आपकी तरफ़ आने से कतराते हैं.” (सूरह निसा 61)

◆ “क़ुर्आन को जमा करना और उसका बयान करना अल्लाह के ज़िम्मे है.” (सूरह क़ियामह 16-19)

◆ “यह ज़िक्र आप ﷺ की तरफ उतारा ताकि आप बयान कर दे.” (सूरह नहल 43,44)

◆ इसके अलावा एक बार नबी  ﷺ ने फ़रमाया “ख़बरदार ! मुझे क़ुर्आन और उसके जैसी एक और चीज़ (यानी हदीस) दी गई है.” (अबू दावूद ह० 4604), जिससे पता चला कि हदीस की हैसियत भी क़ुर्आन जैसी ही है.

➤ इस तरह मालूम हुआ कि क़ुर्आन और सहीह हदीस न सिर्फ़ अल्लाह की तरफ से हैं बल्कि दोनों की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा भी अल्लाह ने ही लिया है.

रसूलुल्लाह ﷺ हदीस की हिफ़ाज़त के लिए क्या करते थे?

हदीस को 2,3 बार दुहराते
रसूलुल्लाह ﷺ हदीस की हिफ़ाज़त में ख़ुसूसी तवज्जो देते और जब कोई मसअला बयान करते तो उसे 2,3 बार, दुहराते, यहाँ तक कि वह मसअला समझ में आ जाता. (बुख़ारी ह० 94,95,96)

ख़ुद अहादीस लिखवाते(बुख़ारी 111,112,113)
अब्दुल्लाह इब्न अम्र (रज़िo) फ़रमाते हैं कि ‘मैं रसूलुल्लाह ﷺ की सारी बातें लिखा करता था. तो मुझसे कुरैश के बाज़ लोगों ने कहा कि आप नबी ﷺ की सारी बातें लिख लेते हैं हालांकि वह इंसान हैं और कभी ग़ुस्से में भी होते हैं, तो मैंने हदीस लिखना छोड़ दी. फिर कुछ दिनों बाद मैंने यह बात रसूलुल्लाह ﷺ को बताई तो आपने फ़रमाया “ लिखा करो, उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, इस (ज़बान) से सिर्फ़ हक़ ही निकलता है.” (अबू दावूद ह० 3646)

इसी तरह अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) बयान करते हैं कि नबी ﷺ ने फ़रमाया “इल्म को लिखकर महफूज़ करो.” (मुस्तदरक हाकिम 1/106).

जो लोग मौजूद नहीं होते उन तक बात पहुँचाने की हिदायत देते
एक बार क़बीला अब्दुल क़ैस से कुछ लोग आप ﷺ के पास आए तो आप ﷺ ने उन्हें दीन की तालीम देने के बाद फ़रमाया कि “इसको याद रखो और उन लोगों को बताओ जिनको पीछे छोड़ आए हो.” (बुख़ारी ह० 87)

इसी तरह हज्जतुल वदाअ़ के मौक़े पर फ़रमाया “जो लोग यहां मौजूद हैं वो उन तक बात पहुचाएं जो यहाँ मौजूद नहीं हैं.” (मुस्लिम ह० 4384)

हदीस का हुक्म भी अल्लाह के हुक्म की हैसियत रखता है

“उन लोगों से लड़ो जो अल्लाह पर और क़ियामत के दिन पर ईमान नहीं लाते, जो अल्लाह और उसके रसूल की हराम की हुई चीज़ को हराम नहीं जानते…” (सूरह तौबा आ० 29)

मिक़दाम (रज़िo) फ़रमाते हैं कि नबी ﷺ ने फ़रमाया “दर हक़ीक़त जो अल्लाह के रसूल ﷺ ने हराम किया है वह उसी तरह है जैसे अल्लाह ने हराम किया है. ” (इब्न माजा ह० 12, तिर्मिज़ी ह० 2664)

एक बार ज़िना (व्यभिचार) के बारे में फ़ैसला देते हुए नबी ﷺ ने कहा “अल्लाह की क़सम, मैं तुम्हारे बीच किताबुल्लाह के मुताबिक़ फ़ैसला करूँगा”. फिर ज़ानिया को संगसार (पत्थर से मारने) करने का हुक्म दिया. जबकि ऐसा हुक्म क़ुर्आन में नहीं है. (बुख़ारी ह० 2724, मुस्लिम ह० 4435, मुवत्ता ह०54, 1597)

एक औरत अब्दुल्लाह इब्न मसऊद (रज़िo) के पास आई और कहने लगी कि क्या आप कहते हैं कि अल्लाह ने जिस्म गोदने और गोदवाने वाली (यानी टैटू वाली) औरतों पर लानत फ़रमाई है. आपने फ़रमाया हां, तो वह कहने लगी कि मैंने शुरू से आख़िर तक क़ुर्आन पढ़ा है लेकिन यह बात कहीं नहीं मिली. तब आपने फ़रमाया ‘अगर तूने क़ुर्आन (ग़ौर से ) पढ़ा होता तो उसमे ज़रूर पाती, क्या तूने यह आयत नहीं पढ़ी ‘और जो कुछ मेरे रसूल दे उसे ले लो और जिससे मना करें उससे रुक जाओ.’ (सूरह हश्र 7). उसने कहा हाँ, तब इब्न मसऊद (रज़िo) ने फ़रमाया कि ‘ मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को यह लानत करते हुए सुना है.’ (बुख़ारी ह० 4886)

हदीस की अहमियत शरीअ़त बनाने में

❂ क़ुर्आन की आयत में मौजूद किसी शर्त को हदीस ख़त्म कर सकती है

जब तुम सफ़र पर जा रहे हो तो तुम पर नमाज़ क़स्र करने में कोई हर्ज नहीं है अगर तुम्हे डर हो कि काफ़िर तुम्हें सताएंगे.(सूरह निसा 101)

इस आयत में नमाज़ क़स्र करने का हुक्म ऐसे सफ़र के लिए है जिसमें ख़ौफ़ भी हो, इसलिए बाज़ सहाबा (रज़िo) ने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा कि अब तो अमन का ज़माना है और हम अब भी क़स्र करते हैं तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ यह अल्लाह ने तुमको सदक़ा दिया है और इस सदक़े को क़ुबूल करो.” (यानी बग़ैर ख़ौफ़ के भी सफ़र में नमाज़ में क़स्र करो) (मुस्लिम ह० 1573, अबू दावूद ह० 1199)

इस तरह क़ुर्आन में क़स्र का जो हुक्म सिर्फ़ ख़ौफ़ के लिए था, हदीस ने उस शर्त को ख़त्म करके आम सफ़र के लिए भी लागू कर दिया.

❂ क़ुर्आन की किसी आयत के आम हुक्म को हदीस मुक़इयद (restrict, fix) कर सकती है

और चोरी करने वाले मर्द और औरत का हाथ काट दिया जाए.(सूरह माइदा 38)

इस आयत में चोरी का मुतलक़न ज़िक्र है (यानी किसी भी तरह की चोरी) जबकि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ चोर का हाथ चौथाई दीनार या इससे ज़्यादा की चोरी पर काटा जाए. ” (बुख़ारी ह० 6789)

इस तरह क़ुर्आन में किसी भी चोरी के लिए हाथ काटने का हुक्म आया और हदीस ने इस पर कम से कम चौथाई दीनार की चोरी की क़ैद लगा दी.

❂ क़ुर्आन के हुक्म को हदीस मुस्तस्ना (अपवाद, exception) कर सकती है
तुम पर हराम है मरा हुआ जानवर, ख़ून, सुअर का गोश्त और वह चीज़ जिस पर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया जाए.” (सूरह माइदा 3)

लेकिन रसूलुल्लाह ﷺ  ने फ़रमाया “ हमारे लिए 2 मुर्दा चीज़े, मछली और टिड्डी और 2 ख़ून, कलेजी और तिल्ली हलाल हैं. ” (इब्न माजा ह० 3314)

इस तरह क़ुर्आन ने सारे मुर्दार और ख़ून हराम किया और हदीस ने इसकी इस्तिसना (अपवाद) बयान कर दिया.

बैअ़त सिर्फ़ किताब और सुन्नत पर

रसूलुल्लाह ﷺ के बाद पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़िo) ने ख़िलाफ़त से पहले एक ख़ुत्बा दिया जिसमें फ़रमाया ‘ जब तक मैं अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की इताअत करूं तब तक मेरी बात मानो और अगर मैं अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करूं तो फिर तुम पर मेरी इताअत ज़रूरी नहीं.’ (सीरत इब्ने हिशाम 2/82)

हदीस के बाद ग़ैरों के फ़तवे की तरफ रुजू पर सहाबा (रज़िo) का तर्ज़े अमल

सय्यिदना उमर (रज़िo) के पास हारिस बिन अब्दुल्लाह (रज़िo) आए और पूछा कि “जो औरत क़ुरबानी वाले दिन तवाफ़ कर चुकी हो फिर उसे हैज़ आ जाए तो? ” उमर (रज़िo) ने कहा ‘ (पाक होने के बाद) आख़िरी अमल तवाफ़ होना चाहिए.’ तब हारिस (रज़िo) ने कहा ‘ रसूलुल्लाह ﷺ ने भी मुझे यही फ़तवा दिया था.’ इस पर उमर (रज़िo) ने कहा ‘ तेरे हाथ कट जाएं, मुझसे वह बात पूछता है जो पहले रसूलुल्लाह ﷺ से पूछ चुका है ताकि मैं उनकी मुख़ालिफ़त करूं.’ (अबू दावूद ह० 2004)

सहाबा (रज़िo) ने फ़तवा हदीस के मुताबिक़ दिया

सय्यिदना अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़िo) के पास एक चोर लाया जाता है. जिसने तीसरी बार चोरी की थी. दो बार सज़ा दी जा चुकी थी, जिसमें उसका दायां हाथ और बायां पांव पहले ही काटा जा चुका था. अब सुन्नत के मुताबिक़ उसका दूसरा हाथ काटा जाना था. मगर अबू बक्र (रज़िo) ने सोचा कि अगर दूसरा हाथ भी काट दिया गया तो बिलकुल मुहताज हो जाएगा. इसलिए दूसरा पांव कट देते हैं. इस पर उमर (रज़िo) ने कहा कि ‘ उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, इसका दूसरा हाथ ही काटा जाएगा.’ तो अबू बक्र (रज़िo) ने उसका हाथ काटने का हुक्म दिया. (सुनन बैहक़ी 8/274)

आइशा (रज़िo) बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ जिसने उस ज़मीन को आबाद किया जिस पर किसी का हक़ न हो तो वह ही उसका हक़दार है.”उर्वह कहते हैं कि उमर (रज़िo) ने अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में इसी के मुताबिक़ फ़ैसला किया. (बुख़ारी ह० 2335)

रसूलुल्लाह ﷺ की हदीस का अदब

उर्वह (र०) ने किसी मसअले पर अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) से कहा कि ‘सय्यिदना अबू बक्र (रज़िo) और उमर (रज़िo) तो ऐसा नहीं करते थे.’ तो इब्न अब्बास (रज़िo) ने कहा ‘वल्लाह! मुझे लगता है तुम उस वक़्त तक बाज़ नहीं आओगे जब तक अल्लाह तुम्हे अज़ाब में न डाल दे. मैं तुम्हारे सामने नबी ﷺ की हदीस बयान करता हूँ और तुम अबू बक्र और उमर की बात करते हो.’ (तबरानी औसत 42/1, ख़तीब बग़दादी की अल फ़क़ीह वल मुतफ़क़्क़िह1/145)

अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) ने एक शख्स़ से कहा “ रसूलुल्लाह ﷺ ने ऐसा फ़रमाया और तुम जो कहते हो कि फ़लां आदमी ने ऐसा फ़रमाया तो क्या तुम इस बात से नहीं डरते कि तुम पर अज़ाब किया जाए और तुम ज़मीन में धंसा दिए जाओ. ” (सुनन दारमी ह० 445)

मस्जिदे नबवी में बाब -ए-जिब्रईल के पास एक दरवाज़े की तरफ़ इशारा करते हुए रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया “अगर हम यह दरवाज़ा औरतों के लिए छोड़ दें (यानी मर्द इससे दाख़िल न हों तो बेहतर है).” नाफ़ेअ (र०) कहते हैं कि ‘अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) उसके बाद मरते दम तक उस दरवाज़े से नहीं गुज़रे.’ (अबू दावूद ह० 462, 571)

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ख़ुरैम अच्छा आदमी है अगर इसके बाल (कंधों से) ज़्यादा लम्बे न हों और तहबन्द को (टखनों से) नीचे न लटकाए.” जब यह बात ख़ुरैम असदी (रज़िo) तक पहुंची तो उन्होंने फ़ौरन तहबन्द काट कर आधी पिंडली तक रख ली और छुरी से अपने बालों को काट कर छोटा कर दिया. (अबू दावूद ह० 4089)

सय्यिदना अली (रज़िo) कहते हैं कि ‘मुझे रसूलुल्लाह ﷺ ने एक रेशमी जोड़ा दिया. मैं उसे पहन कर निकला तो आप के चेहरे मुबारक पर ग़ुस्से के आसार देखकर उसके टुकड़े करके घर की औरतों को दे दिया.’ (बुख़ारी ह० 5840)

जाबिर (रज़िo) से रिवायत है कि एक बार जुमा के दिन रसूलुल्लाह ﷺ (ख़ुत्बे के लिए) मिम्बर पर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया “लोगों! बैठ जाओ.”  अब्दुल्लाह इब्न मसऊद (रज़िo) ने यह सुना तो मस्जिद के दरवाज़े पर ही बैठ गए. आप ﷺ ने देखा तो फ़रमाया “अब्दुल्लाह! मस्जिद के अन्दर आ कर बैठो.” (अबू दावूद ह० 1091)

जब सहाबा (रज़िo) ने किसी का अमल हदीस के ख़िलाफ़ पाया

अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) ने एक आदमी को देखा कि वह अपनी क़ुरबानी के ऊंट को बैठा कर ज़िबह कर रहा था तो आपने फ़रमाया ‘इसको उठा कर खड़ा करो और इसके (बाएं घुटने को) बांधकर ज़िबह करो. यही रसूलुल्लाह ﷺ की सुन्नत है.’ (बुख़ारी ह० 1713, मुस्लिम ह० 1320 )

एक बार अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) के सामने एक आदमी को छींक आई तो उसने कहा ‘अलहम्दु लिल्लाह वस्सलामु अला रसूलिल्लाह.’ यह सुनकर आपने कहा ‘मैं भी अल्लाह की तारीफ़ करता हूँ और उसको रसूल पर दुरूद भी भेजता हूँ, लेकिन रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें सिखाया है कि छींक आने पर हम यूं कहें ‘अलहम्दु लिल्लाहि अला कुल्लि हाल.’’ (तिरमिज़ी ह० 2738, मुस्तदरक हाकिम 2/265)

कअब इब्न हजर (रज़िo) मस्जिद में दाख़िल हुए तो देखा कि अब्दुर्रहमान इब्न उम्मे हकम बैठ कर ख़ुत्बा दे रहे थे. यह देखकर उन्होंने फ़रमाया ‘इस ख़बीस को देखो कि बैठ कर ख़ुत्बा दे रहा है, हांलाकि अल्लाह ने क़ुर्आन में फ़रमाया है कि ‘और जब किसी तिजारत या खेल को देखते हैं तो उसकी तरफ़ दौड़ जाते हैं और तुझको खड़ा हुआ छोड़ जाते हैं.’ (यानी आप ﷺ खड़े हो कर ख़ुत्बा देते थे). (मुस्लिम ह० 2001)

उमारा इब्न रुवैबह (रज़िo) ने मर्वान (हाकिम-ए-वक़्त) के बेटे बशीर को मिम्बर पर (ख़ुत्बे के दौरान) दोनों हाथों से इशारा करते हुए देखा तो फ़रमाया ‘अल्लाह इन दोनों हाथों को ख़राब कर दे, मैंने नबी ﷺ को इससे ज़्यादा करते नहीं देखा (और फिर अपनी शहादत की उंगली से इशारा किया)’. (मुस्लिम ह० 2016)

अब्दुल्लाह इब्न मुग़फ्फ़ल (रज़िo) अपने भतीजे के बग़ल में बैठे थे. उसने हाथ से कंकरी फेंकी, तब इब्न मुग़फ्फ़ल (रज़िo) ने उसे रोका और फ़रमाया कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इस तरह कंकरी फेंकने से मना किया है. क्योंकि इससे न तो शिकार होता है और न ही दुश्मन मरता है बल्कि (अगर किसी को लग जाए तो) दांत टूट जाता है या आंख फूट जाती है. उसने दुबारा ऐसा ही किया तो इब्न मुग़फ्फ़ल (रज़िo) ने ग़ुस्सा हो कर कहा ‘मैं तुझे हदीस बयान करता हूँ कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इससे मना किया और तू फिर वही काम कर रहा है. अब मैं तुझसे बात नहीं करूंगा.’ (मुस्लिम ह० 5050)

क्या तेरे लिए रसूलुल्लाह ﷺ की ज़िन्दगी बेहतरीन नमूना नहीं !

सईद इब्न यसार (रज़िo) बयान करते हैं कि मैं अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) के साथ सफ़र में था. मुझे जब सुब्ह होने का अंदेशा हुआ तो सवारी से उतर कर वित्र पढ़ी. जब अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) से मिला तो उन्होंने पूछा ‘कहाँ चले गए थे? ‘ मैंने कहा कि मेरी वित्र बची थी तो मैं सवारी से उतर कर वित्र पढ़ने चला गया था.’ तो उन्होंने फ़रमाया ‘क्या आपके लिए रसूलुल्लाह ﷺ की ज़िन्दगी बेहतरीन नमूना नहीं है? मैंने नबी ﷺ को देखा कि आप अपनी सवारी पर (भी) वित्र पढ़ लेते थे.’ (बुख़ारी ह० 999, 1000)

सईद इब्न जुबैर (र०) बयान करते हैं कि अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) ने फ़रमाया ‘अगर किसी ने अपने ऊपर कोई हलाल चीज़ हराम कर ली तो उसका कफ्फ़ारा देना होगा और क़ुर्आन की आयत तिलावत की ‘बेशक रसूलुल्लाह तुम्हारे लिए बेहतरीन नमूना हैं.’(बुख़ारी ह० 4911, 5266)

अगर अल्लाह के नबी ﷺ ऐसा न करते तो मैं भी न करता

उमर (रज़िo) ने हज्र-ए-असवद को चूमा और फ़रमाया ‘मैं जानता हूँ कि तू सिर्फ़ एक पत्थर है और तू न फ़ायदा पंहुचा सकता है, न नुक़सान. अगर मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को ऐसा करते हुए न देखा होता तो मैं भी कभी न करता.’ (बुख़ारी ह० 1597, मुस्लिम ह० 1270)

अनस इब्न सीरीन (र०) बयान करते हैं कि जब अनस (रज़िo) शाम (सीरिया,जॉर्डन वगैरह) से वापस आए तो हम उनसे ‘ऐनिल तमर’ के मक़ाम पर मिले. मैंने देखा कि आप गधे पर सवार हो कर नमाज़ पढ़ रहे थे और आपका मुंह क़िब्ले से बायीं तरफ़ था. इस पर मैंने कहा कि ‘मैंने आपको क़िब्ले के अलावा दूसरी तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ते देखा’, तो उन्होंने जवाब दिया कि ‘अगर मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को ऐसा करते हुए न देखा होता तो कभी ऐसा न करता.’ (बुख़ारी ह० 1100)

(यह नफ्ल नमाज़ थी जिसको सवारी पर बैठ कर पढ़ा जा सकता है और इस हालत में अगर सवारी क़िब्ले से हट जाए तब भी नमाज़ में कोई ख़लल नहीं पड़ता)

अबू हुरैरह (रज़िo) ने सूरह ‘अस्समा उन शक्क़त’ पढ़कर सज्दा किया. इस पर अबू सलमा (र०) ने इस बारे में सवाल किया. तो उन्होंने फ़रमाया कि ‘अगर नबी-ए-करीम ﷺ को सज्दा करते हुए न देखता तो मैं भी न करता.’ (बुख़ारी ह० 1074)

अबू सईद ख़ुदरी (रज़िo) एक बार जुमे के दिन मस्जिद में तशरीफ़ लाए और उस वक़्त मर्वान बिन हकम ख़ुत्बा दे रहे थे. उन्होंने 2 रक्अतें पढ़ना शुरू कर दीं. इतने में एक सिपाही आया ताकि आपको बैठा दे, मगर वह न बैठे यहाँ तक कि 2 रक्अतें पूरी पढ़ ली. जब आपने जुमा पढ़ लिया तब कुछ लोग आपके पास आए और कहा ‘अल्लाह आप पर रहम फ़रमाए, क़रीब था कि लोग आप पर टूट पड़ते (और आपसे झगड़ा करते) ’. आपने फ़रमाया ‘मैं तो इन दोनों रक्अतों को नहीं छोड़ सकता जबकि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को देखा है कि उन्होंने ख़ुद एक शख़्स को 2 रक्अतें पढ़ने का हुक्म दिया जबकि आप ﷺ ख़ुत्बा दे रहे थे.’ (तिरमिज़ी ह० 511, दारमी ह० 1593)

यह अमल तो सबसे बेहतरीन ज़ात (यानी रसूलुल्लाह ﷺ) ने किया था

हस्सान बिन साबित (रज़िo) मस्जिद में इस्लामी शेर पढ़ रहे थे. इस बीच उमर (रज़िo) का गुज़र हुआ तो उन्होंने नाराज़गी के अंदाज़ से घूरा. इस पर हस्सान बिन साबित (रज़िo) ने कहा ‘मैं इस मस्जिद में उस ज़ात की मौजूदगी में भी शेर पढ़ता था जो सबसे बेहतर थे (यानी नबी ﷺ)’. (बुख़ारी ह० 3212, अबू दावूद ह० 5013)

एक बार जुमे के दिन सय्यिदना अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) ने मुअज्ज़िन को अज़ान देने का हुक्म दिया. उस दिन बारिश हो रही थी. फिर इब्न अब्बास (रज़िo) ने मुअज्ज़िन से कहा कि ‘लोगों में ऐलान कर दो कि घरों में नमाज़ पढ़ लें.’ लोगों ने कहा कि यह अपने क्या (अजीब काम) कर दिया? तो उन्होंने फ़रमाया ‘यह काम तो उन्होंने भी किया था जो मुझसे अफ़ज़ल थे (यानी रसूलुल्लाह ﷺ). क्या आप यह चाहते हैं कि मैं लोगों को घरों से निकालूँ और मिट्टी, कीचड़, फिसलन में चलाऊं?’ (बुख़ारी ह० 616, 901)

इख़्तिलाफ़ी मसाइल में भी सहाबा (रज़िo) ने हदीस का दामन न छोड़ा

एक मय्यत की नानी अबू बक्र (रज़िo) के पास विरासत में हक़ मांगने आयी. अबू बक्र (रज़िo) ने फ़रमाया ‘अल्लाह की किताब में तेरा कोई हिस्सा नहीं है और नबी ﷺ की सुन्नत से मुझे (इस बारे में) कुछ मालूम नहीं. तुम जाओ, मैं लोगों से पूछ कर बताउंगा. बाद में मुग़ीरा बिन शुअबा (रज़िo) और मुहम्मद इब्न मसलमा (रज़िo) ने बताया कि उन लोगों ने रसूलुल्लाह ﷺ को ऐसे मामले में छठा हिस्सा देते हुए देखा था. तब अबू बक्र (रज़िo) ने भी उस औरत को छठा हिस्सा दिलाया. (अबू दावूद ह० 2894)

सय्यिदना उमर (रज़िo) मजूसियों (पारसियों) से जिज़्या नहीं लेते थे क्योंकि क़ुर्आन में जिज़्या वसूलने का ज़िक्र अहले किताब के लिए है. लेकिन जब अब्दुर्रहमान इब्न औफ़ (रज़िo) ने गवाही दी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने हजर के मजूसियों से जिज़्या लिया था तो उमर (रज़िo) ने भी लेना शुरू कर दिया. (बुख़ारी ह० 3156, 3157)

सईद इब्न मुसय्यिब (रह०) फ़रमाते हैं कि उमर (रज़िo) फ़रमाया करते थे कि दीयत (ख़ून बहा, ख़ून के बदले ख़ून) सिर्फ़ बाप की तरफ़ के रिश्तेदारों के लिए है, यहाँ तक कि ज़िहाक इब्न सुफ़यान (रज़िo) ने उनसे कहा कि ‘रसूलुल्लाह ﷺ ने मेरी तरफ़ पैग़ाम लिख कर भेजवाया था कि फ़लां की बीवी को उसके शौहर की दीयत में हिस्सा दिलाओ.’ फिर उमर (रज़िo) ने अपनी राय से रुजू कर लिया. (अबू दावूद ह० 2927, तिरमिज़ी ह० 2110, इब्न माजा ह० 2642)

सय्यिदना अली (रज़िo) के पास चन्द मुरतद लाए गए तो आपने उन्हें जलाने का हुक्म दिया. अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़िo) ने हदीस पेश की कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया था कि “किसी को आग का अज़ाब न दो.” अली (रज़िo) ने सुनकर कहा कि ‘इब्न अब्बास सच कहते हैं.’ (तिरमिज़ी ह० 1458)

उमर (रज़िo) एक बार अपने क़ाफ़िले के साथ शाम (सीरिया,जॉर्डन वगैरह) की तरफ निकले और रास्ते में ख़बर मिली कि वहां वबा (प्लेग) फैल गई है तो उन्होंने वहां न जाने का फ़ैसला लिया. लेकिन बाक़ी के लोगों में इख़्तिलाफ़ हो गया कि जाएं या न जाएं . इस पर उमर (रज़िo) ने मीटिंग बुलाई ताकि मालूम कर सकें कि इस बारे में कोई हदीस है या नहीं. अब्दुर्रहमान इब्न औफ़ (रज़िo) ने हदीस बयान की कि नबी ﷺ फ़रमाते थे कि “ जब तुम सुनो कि किसी इलाक़े में वबा फैल गई है तो वहां मत जाओ और जब तुम्हारे इलाक़े में वबा फैल जाए तो भागो भी नहीं.” इस पर सब ने इख़्तिलाफ़ छोड़ दिया और उमर (रज़िo) ने अल्लाह का शुक्र अदा किया (कि उनकी राय हदीस के मुआफ़िक़ निकली). (बुख़ारी ह० 5729)

सालिम बिन अब्दुल्लाह (र०) बयान करते हैं कि एक शामी (मुल्क शाम का रहने वाला) ने अब्दुल्लाह इब्न उमर (रज़िo) से हज्ज-ए-तमत्तो (हज्ज और उमरह एक साथ करने) के बारे में पूछा, तो इब्न उमर (रज़िo) ने फ़रमाया कि हलाल है. इस पर शामी ने कहा कि आपके वालिद (यानी उमर (रज़िo) ने तो इससे मना किया है. इस पर इब्न उमर (रज़िo) ने फ़रमाया ‘अगर मेरे वालिद किसी काम से मना करें और रसूलुल्लाह ﷺ ने वही काम किया हो तो इत्तिबाअ़ मेरे वालिद की होगी या रसूलुल्लाह ﷺ की?’ उस शामी ने कहा ‘रसूलुल्लाह ﷺ की.’ तो इब्न उमर (रज़िo) ने कहा ‘रसूलुल्लाह ﷺ ने हज्ज-ए-तमत्तो ही किया है.’ (तिरमिज़ी ह० 824)

मर्वान बिन हकम ने बयान किया कि उस्मान (रज़िo) हज्ज-ए-तमत्तो से मना करते थे. लेकिन अली (रज़िo) ने इसके बावजूद हज्ज-ए-तमत्तो का इहराम बांधा और फ़रमाया कि‘ मैं किसी एक शख़्स की बात पर रसूलुल्लाह ﷺ की हदीस को नहीं छोड़ सकता.’ (बुख़ारी ह० 1563, 1569)

सहाबा किराम (रज़िo) हदीस से दलील मांगते थे

सय्यिदना उमर (रज़िo) ने अबू मूसा अशअ़री (रज़िo) को बुला भेजा, जब वह इनके दरवाज़े पर आए, तीन बार सलाम किया और जवाब न मिलने पर वापस चले गए. उमर (रज़िo) ने पूछा कि वह वापस क्यों जा रहे थे ? उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया था कि “जब तुममें से कोई तीन बार इजाज़त मांगे और इजाज़त न मिले तो वापस चला जाए.” इस पर उमर (रज़िo) ने फ़रमाया ‘इस पर दलील पेश करो वरना मैं तुझे कोड़े लगाउंगा.’ तब अबू मूसा अशअरी (रज़िo) ने अबू सईद (रज़िo) के ज़रिये इस हदीस की तस्दीक़ करवायी. (बुख़ारी ह० 6245)

अब्दुल्लाह इब्न मसऊद (रज़िo) से उम्मे याक़ूब ने दलील मांगी थी कि मैंने तो सारा क़ुर्आन पढ़ा है, मुझे इसमें यह बात नहीं मिली जिसके मुताल्लिक़ आप कहते हैं कि अल्लाह ने फलां फलां औरत पर लानत की है. (बुख़ारी ह० 4886)

जब उमर (रज़िo) क़ाफ़िले के साथ मुल्के शाम की तरफ निकले और रास्ते में ख़बर मिली कि वहां वबा (प्लेग) फैल गई है तो उन्होंने वहां न जाने का फ़ैसला लिया. लेकिन इसमें इख़्तिलाफ़ होने पर उमर (रज़िo) ने मीटिंग बुलाई ताकि मालूम कर सकें कि इस बारे में कोई हदीस है या नहीं. जब अब्दुर्रहमान इब्न औफ़ (रज़िo) ने वह हदीस बयान की जिसमें नबी ﷺ ने ऐसे इलाक़े में लोगों को जाने से मना किया जहां वबा फैली हो, तब सबने इख़्तिलाफ़ छोड़ दिया. (बुख़ारी ह० 5729)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button