क्या हमारे नबी ﷺ का साया था? | Kya Humare Nabi ka saya tha?
بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله
Is mazmoon ko Roman Urdu me padhne ke liye yahan click karen.
अल्लाह के हबीब ﷺ का साया (Nabi ka saya) था या नहीं था, इस बारे में उम्मत में दो नज़रिये सामने आते हैं. एक गिरोह कहता है कि साया था, दूसरा कहता है कि साया नहीं था. इस पोस्ट में हम देखेंगे कि अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ क़ुर्आन और साबित शुदा हदीसों से क्या पता चलता है, इंशाअल्लाह.
क़ुर्आन से दलाइल | Qur’an Se Dalaail
रसूल अल्लाह ﷺ अल्लाह-तआला के अज़ीमुश्शान नबी और इन्सान थे. अल्लाह-तआला ने आपको सिलसिला इंसानियत ही से पैदा किया था और इन्सान होने के ऐतबार से यह बात ज़रूरी है कि इन्सान का साया, परछाई (shadow) होता है. क़ुर्आन-ए-मजीद में अल्लाह-तआला ने इरशाद फ़रमाया है;
وَلِلَّهِ يَسْجُدُ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَظِلَـٰلُهُم بِٱلْغُدُوِّ وَٱلْـَٔاصَالِ
और जितनी मख़लूक़ात आसमानों और ज़मीन में हैं, ख़ुशी और नाख़ुशी से अल्लाह-तआला के आगे सजदा करती हैं और उनके साये भी सुबह शाम सजदा करते हैं. (सूरह रअद #15)
एक और मक़ाम पर फ़रमाया;
أَوَلَمْ يَرَوْا۟ إِلَىٰ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن شَىْءٍ يَتَفَيَّؤُا۟ ظِلَـٰلُهُۥ عَنِ ٱلْيَمِينِ وَٱلشَّمَآئِلِ سُجَّدًا لِّلَّهِ وَهُمْ دَٰخِرُونَ
क्या उन्होंने अल्लाह की मख़लूक़ में से किसी को भी नहीं देखा? कि इसके साये दाएं-बाएं झुक-झुक कर अल्लाह के सामने सज्दा करते हैं और आजिज़ी का इज़हार करते हैं. (सूरह नहल #48)
➤ इन दो आयात से मालूम होता है कि ज़मीन-ओ-आसमान में अल्लाह ने जितनी मख़लूक़ पैदा की है उनका साया है और रसूल अल्लाह ﷺ भी तो अल्लाह की मख़्लूक़ हैं. लिहाज़ा आपका भी साया था. आप ﷺ के साये के मुताल्लिक़ कई अहादीस भी मौजूद हैं.
हदीसों से दलाइल | Hadeeso Se Dalaail
⬤ सय्यदना अनस (रज़िo) फ़रमाते हैं कि एक रात नबी करीम ﷺ ने हमें नमाज़ पढ़ाई और नमाज़ की हालत में अपना हाथ अचानक आगे बढ़ाया मगर फिर जल्द ही पीछे हटा लिया. हमने अर्ज़ किया ‘ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ आज आपने नमाज़ में ख़िलाफ़ मामूल एक नया अमल किया है. आप ﷺ ने फ़रमाया “नहीं! बल्कि बात यह है कि मेरे सामने अभी अभी जन्नत पेश की गई, मैंने इसमे बेहतरीन फल देखे तो जी में आया कि इसमें से कुछ उचक लूं. मगर फ़ौरन हुक्म मिला कि पीछे हट जाओ, मैं पीछे हट गया. फिर मुझ पर जहन्नम पेश की गई यहाँ तक कि इसकी रोशनी में मैंने अपना और तुम्हारा साया देखा. यह देखते ही मैंने तुम्हारी तरफ़ इशारा किया कि पीछे हट जाओ.” (सहीह इब्ने खुज़ैमा ह० 892, मुस्तदरक हाकिम 4/456)
⬤ एक और हदीस में है;
सय्यिदा ज़ैनब (रज़िo) और सय्यिदा सफ़िय्या (रज़िo) एक सफ़र में रसूल अल्लाह ﷺ के साथ थीं, सफ़िय्या (रज़िo) के पास एक ऊंट था और वो बीमार हो गया. जबकि ज़ैनब (रज़िo) के पास दो ऊंट थे. रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : तुम एक ज़्यादा ऊंट सफ़िय्या को दे दो.’ तो इन्होंने कहा मैं इस यहूदी को क्यों दूं? इस पर रसूल अल्लाह ﷺ नाराज़ हो गए. तक़रीबन तीन माह तक ज़ैनब (रज़िo) के पास न गए. यहाँ तक कि ज़ैनब (रज़िo) ने मायूस हो कर अपना सामान बांध लिया. ज़ैनब (रज़िo) फ़रमाती हैं कि अचानक देखती हूँ कि दोपहर के वक़्त नबी करीम ﷺ का साया आ रहा है. [मुस्नद अहमद (6/131, 132), तबक़ात इब्ने साद (8/127 ), मजमा अज़्ज़वायद (4/323)]
अक़ली दलाइल | Aqlee Dalaail
⬤ अक़्ली तौर पर भी मालूम होता है कि साया फ़क़त इस जिस्म का होता है जो ठोस हो और सूरज की किरनों को आगे गुज़रने न दे. लेकिन अगर वो जिस्म इतना साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ (transparent) हो कि वो सूरज की किरनों को रोक ही नहीं सकता तो इसका साया बेशक नज़र नहीं आता.
मसलन साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ शीशा अगर धूप में लाया जाये तो इसका साया दिखाई नहीं देता क्योंकि इसमें किरनों को रोकने की सलाहियत ही नहीं होती, बख़िलाफ़ उसके नबी करीम ﷺ का जिस्म अतहर निहायत ठोस था, उसकी बनावट शीशे की तरह नहीं थी कि जिससे सब कुछ गुज़र जाये.
लामुहाला आपका साया था. अगर जिस्म अतहर का साया मुबारक न था तो जब आप लिबास पहनते तो क्या उसका भी साया न था. अगर वो कपड़े इतने शफ़्फ़ाफ़ थे कि उनका साया न था तो फिर उनके पहनने से सतर वग़ैरह की हिफ़ाज़त कैसे मुम्किन होगी?
⬤ साये का इनकार करने वाले अक़्ली दलील भी देते हैं कि आप ﷺ नूर थे और नूर का साया नहीं होता. बेशक आप ﷺ के ज़रिये इन्सानियत गुमराही के अंधेरों से हिदायत की रौशनी में आई, इस लिहाज़ से आपको सिफ़त के तौर पर नूर कह दिया जाए तो कोई हर्ज नहीं. लेकिन आप ﷺ की पैदाइश नूर से होने या जिस्म का नूर होने की कोई दलील किताब-ओ-सुन्नत में मौजूद नहीं है.
इसी तरह नूर का साया न होने वाली बात भी सरासर ग़लत है. नूर से बनी मख्लूक़ का साया हदीस से साबित है. जब सय्यदना जाबिर (रज़िo) के वालिद अब्दुल्लाह (रज़िo) ग़ज़वा उहद में शहीद हो गए तो उनके घर वाले उनके इर्द गिर्द जमा हो गए और रोने लगे. तो रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया;
مَا زَالَتِ الْمَلاَئِكَةُ تُظِلُّهُ بِأَجْنِحَتِهَا حَتَّى رَفَعْتُمُوهُ ””
“जब तक तुम उन्हें यहां से उठा नहीं लेते उस वक़्त तक फ़रिश्ते इस पर अपने परों का साया किए रहेंगे.” (बुख़ारी ह० 1244)
⬤ इस मामले में एक और दलील यह भी दी जाती है कि आप ﷺ का साया इसलिए नहीं था कि अगर किसी का पैर आप ﷺ के साये पर पड़ जाता तो आप ﷺ की तौहीन हो जाती, इसलिए अल्लाह-तआला ने आपका साया पैदा ही नहीं किया. यह बात भी ख़िलाफ़े हक़ीक़त है क्योंकि साया पावं के नीचे बन ही नहीं सकता, जब भी कोई शख़्स साये पर पांव रखेगा तो साया उसके पांव के ऊपर हो जाएगा न कि नीचे.
ख़ुलासा | Khulasa
निचोड़ यह है कि नबी ﷺ का साया न होने पर क़ुर्आन, सहीह हदीस, इज्मा या सहाबा के क़ौल से कुछ भी नहीं मिलता. बल्कि चारों इमामों में से किसी एक इमाम से भी ऐसा कोई क़ौल साबित नहीं.
और फिर नबी ﷺ के सदियों बाद अल्लामा सुयूती, क़स्तलानी, जरक़ानी और मुल्ला अली क़ारी (र०) वग़ैरह के बे-सनद हवालों की कोई इल्मी हैसियत नहीं है. और हकीम तिरमिज़ी की तरफ़ मंसूब जिस रिवायत को अल्लामा सुयूती ने अल ख़साइस अलकुबरा (1/68) में ज़िक्र किया है. उसकी सनद में अब्दुर्रहमान बिन क़ैस अल ज़ाफ़रानी रावी है जो ज़ईफ़ (ग़ैर मोतबर) और और दूसरा रावी अब्दुल मलिक बिन अब्दुल्लाह बिन वलीद नामालूम है. ख़ुलासा यह है कि यह रिवायत ज़ईफ़ है.
लिहाज़ा किताब-ओ-सुन्नत के दलाइल के ख़िलाफ़ बे-अक़्ली की और बे-सनद बातें हक़ीक़त में कोई हैसियत नहीं रखतीं.
यह मज़मून मुहद्दिस ज़ुबैर अलीज़ई र० की अल-हदीस शुमारा # 40 पेज # 10 और मुबश्शिर अहमद रब्बानी ह० की आपके मसाइल और उनका हल के पेज # 39-40 से लिया गया है
जज़ाकल्लाह ख़ैर.