नबी की तरफ से क़ुर्बानी (जायज़ या नाजायज़?) | Nabi Ki Taraf Se Qurbani - Muttaqi
इबादत

नबी की तरफ से क़ुर्बानी (जायज़ या नाजायज़?) | Nabi Ki Taraf se Qurbani

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

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अल्लाह के नबी की तरफ से क़ुर्बानी जायज़ है या नाजायज़, यह समझने से पहले एक बुनियादी बात समझना ज़रूरी है.

इस्लाम में इबादत ‘तौक़ीफ़ी’ अमल है. यानी इबादत सिर्फ उसी तरह की जा सकती है जैसा अल्लाह और उसके रसूल ﷺ ने बताया है. इबादत में असल ‘मुमानियत’ है, यानी इबादत के नाम पर हर अमल मना है सिवाय वह अमल जिसकी दलील किताब-ओ-सुन्नत में मौजूद है. क़ुर्बानी भी इबादत है. नबी करीम ﷺ की तरफ से क़ुर्बानी करना साबित नहीं है. इस बारे में सिर्फ 2 रिवायतें मिलती हैं और दोनों ज़ईफ़ हैं. उनकी तहक़ीक़ मुलाहिज़ा हो.

क़ुर्बानी के अहम मसाइल जानने के लिए यह मज़मून पढ़िए.

रिवायत नंबर ① और उसका जायज़ा

अल्लाह के नबी की तरफ से क़ुर्बानी के बारे में सबसे पहले जो रिवायत पेश की जाती है, वह यह है:

हंश बिन मु’तमर (रह०) से रिवायत है: “मैंने अली (रज़ि०) को देखा कि आपने दो दुंबे ज़िबाह किए. मैंने पूछा: यह क्या है? फरमाया: मुझे रसूलुल्लाह ﷺ ने वसीयत की थी कि मैं उनकी तरफ से क़ुर्बानी करूं, तो मैं उनकी तरफ से क़ुर्बानी कर रहा हूं.” (सुनन अबू दाऊद: ह#2790)

इसकी सनद कई वजूहात से ज़ईफ़ है:

1- शरीक बिन अब्दुल्लाह क़ाज़ी हिफ़्ज़ में कमज़ोर और मुदल्लिस है.
2- अबू अल-हसना मजहूल (unknown) है.
3- हकम बिन उतैबा मुदल्लिस है.
4- हंश बिन मु’तमर अक्सर अईम्मा-ए-हदीस के नज़दीक ज़ईफ़ हैं.

रिवायत नंबर ② और उसका जायज़ा

अली बिन अबी तालिब (रज़ि०) ने ईद-उल-अज़हा के दिन एक भेड़ (sheep) मंगवाया और उसे ज़िबाह करते वक़्त यह अल्फाज़ कहे: “बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्मा मिन्क व लक व मिन मुहम्मद लक.”
“बिस्मिल्लाह, ऐ अल्लाह! यह क़ुर्बानी तेरी अता है और तेरी रज़ा के लिए है, मुहम्मद करीम ﷺ की तरफ से खालिस तेरे लिए क़ुर्बान की जा रही है.” (सुनन बैहक़ी ह# 19187)

इसकी सनद भी कई वजूहात से ज़ईफ़ है:

1- आसिम बिन शरीब मजहूल है. इमाम अबू हातिम (अल-जर्ह व अल-ता’दील: 6/487) और हाफ़िज़ ज़हबी (मीज़ान अल-इ’तिदाल: 2/352) ने उसे “मजहूल” कहा है.
2- अबू बक्र बिन रजा ज़ुबैदी की तौसीक़ (authentication) साबित नहीं.
3- अबुल-फ़ज़्ल, सुफ्यान बिन मुहम्मद बिन महमूद जौहरी की तौसीक़ नहीं मिली.
4- अबू नस्र अहमद बिन उमर बिन मुहम्मद इराक़ी की तौसीक़ नहीं मिल सकी.
 
खुलासा

किसी भी सही हदीस से रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ से क़ुर्बानी का सुबूत नहीं है. इसके अलावा किसी भी सहाबी, ताबई, या तबा’ ताबई से भी नबी करीम ﷺ की तरफ से क़ुर्बानी करना साबित नहीं है. लिहाज़ा ऐसा अमल दीन में ईजाद, यानी यह बिदअत है.

यह मज़मून मुहद्दिस गुलाम मुस्तफ़ा ज़हीर अमनपुरी की किताब ‘क़ुर्बानी के अहकाम व मसाइल’ के पेज# 37-38 से लिया गया है.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.
 

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