मुकम्मल नमाज़े जनाज़ा | Namaz Janaza Complete
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एक मुसलमान की ज़िन्दगी से जुड़ी आख़िरी नमाज़ जो वह ख़ुद नहीं बल्कि उसके दोस्त और रिश्तेदार पढ़ते हैं, वह है नमाज़े जनाज़ा (Namaz Janaza). यह नमाज़ आमतौर से एक आदमी साल में 3,4 बार ही पढ़ पाता है इसलिए इसका तरीक़ा और इससे जुड़े दूसरे मसाइल उसके ज़हन से निकल जाते हैं. इसी कमी को पूरा करने के लिए हम यह मज़मून ले कर आये हैं. आइये देखें कि अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ नमाज़े जनाज़ा का तरीक़ा और इससे मुताल्लिक़ दूसरे मसाइल क्या हैं. इंशाअल्लाह.
नमाज़े जनाज़ा की फ़ज़ीलत | Namaz Janaza Ki Fazeelat
❖ रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “ईमान की हालत में सवाब की नीयत से जो किसी मुसलमान के जनाज़ा के साथ जाता, उसके साथ रहता, उसका जनाज़ा पढ़ता और उसको दफ़न करके फ़ारिग़ होता है तो उसके लिए दो क़ीरात सवाब है. हर क़ीरात उहुद पहाड़ के बराबर है और जो (सिर्फ़) नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर वापस आ जाता है तो उसके लिए एक क़ीरात है.” (सहीह बुख़ारी ह० 47)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जिस मुसलमान के जनाज़ा में ऐसे चालीस आदमी शामिल हों जो अल्लाह के साथ शिर्क न करते हों तो अल्लाह तआ़ला उस (मय्यत के हक़) में उनकी सिफारिश क़ुबूल करता है.” (सहीह मुस्लिम ह० 2199)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमायाः “चार मुसलमान जिस मुसलमान की तारीफ करें और अच्छी गवाही दें, अल्लाह उसको जन्नत में दाख़िल करेगा.” हमने अर्ज़ किया “और तीन?” आप ﷺ ने फ़रमायाः “तीन भी” हमने अर्ज़ किया “और दो?” आप ﷺ ने फ़रमाया “दो भी.” फिर हमने एक के बारे में नहीं पूछा.” (सहीह बुख़ारी ह० 1368)
यहाँ मुसलमान की गवाही से मुराद वो मुस्लमान हैं जिनका अक़ीदा , अमल, अख़लाक़ व किरदार किताब व सुन्नत के मुताबिक़ हो. वल्लाहु आलम.
नमाज़े जनाज़ा का तरीक़ा | Namaz e Janaza Ka Tarika
⚫ नमाज़े जनाज़ा पढ़ने के लिए मय्यत की चारपाई इस तरह रखें कि मय्यत का सर शुमाल (उत्तर) की तरफ़ और पाँव जुनूब (दक्षिण) की तरफ़ हो. फिर बा वुज़ू होकर सफ़ें बांधें. वुज़ू का सही और सुन्नत के मुताबिक़ तरीक़ा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
⚫ अगर जनाज़ा मर्द का है तो इमाम उसके सर के बराबर और अगर औरत का है तो उसके दरमियान (कमर के बराबर) खड़ा होगा. (सहीह बुख़ारी ह० 1331, अबू दावूद ह० 3194)
⚫ नमाज़े जनाज़ा में सिर्फ़ क़ियाम है, रुकूअ़ और सज्दे नहीं हैं. इसमें आम तौर से चार तक्बीरात (अल्लाहु अक्बर) कही जाएंगी. (सहीह बुख़ारी ह० 1333, सहीह मुस्लिम ह० 905)
सय्यदना ज़ैद बिन अरक़म रज़ि० नमाज़े जनाज़ा में 4 तक्बीरात कहते थे. एक जनाज़ा में उन्होंने 5 तक्बीरात कहीं और फ़रमाया कि रसूलुल्लाह ﷺ इस तरह भी करते थे (सहीह मुस्लिम ह० 957). इससे पता चला कि नमाज़े जनाज़ा पाँच तक्बीरात से भी पढ़ी जा सकती है.
⚫ पहली तक्बीर (अल्लाहु अक्बर) कहते हुए रफ़अ़ यदैन करें (यानी दोनों हाथों को कन्धों या कानों तक उठायें) और अपना दायाँ हाथ अपनी बाएं ज़िराअ़ (हाथ की उंगली से कोहनी तक का हिस्सा) पर रखें. इसके बाद अऊज़ू बिल्लाह …. और बिस्मिल्लाह….पढ़ कर सूरह फ़ातिहा पढ़ कर कोई भी सूरह पढ़ें. (सहीह बुखारी ह० 1335, अबू दावूद ह० 3194)
⚫ फिर दूसरी तक्बीर कहते हुए रफ़अ़ यदैन करें और दुरूद शरीफ़ पढ़ें.
⚫ फिर तीसरी तक्बीर कहते हुए रफ़अ़ यदैन करें और मय्यत के लिए दुआ करें. नबी ﷺ ने फ़रमाया “जब तुम नमाज़े जनाज़ा पढ़ो तो मय्यत के लिए ख़ालिस तौर पर दुआ करो.” (अबू दावूद ह० 3199, इब्ने माजा ह० 1497). नमाज़े जनाज़ा की दुआ आगे आ रही है.
मुस्तहब यह है कि उन्हीं अल्फ़ाज़ में दुआ की जाए जो नबी ﷺ से साबित है.
⚫ फिर चौथी तक्बीर कह कर सिर्फ़ दाहिनी तरफ़ सलाम फेर दें. अबू हुरैरह रज़ि० फ़रमाते हैं कि बेशक नबी ﷺ ने एक मय्यत की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई. इस पर चार तक्बीरें कहीं और एक ही सलाम फेरा (मुसन्नफ़ अब्दुर रज्जाक 3/489, ह० 6428, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 11491).
इसके अलावा सहाबा किराम रज़ि० और ताबिईन से भी नमाज़े जनाज़ा में एक सलाम ही साबित है. जबकि इसके ख़िलाफ़ नबी ﷺ और सहाबा में किसी से भी दोनों तरफ़ सलाम फेरना सहीह सनद से साबित नहीं है.
नमाज़े जनाज़ा की दुआ | Namaz e Janaza Ki Dua
नमाज़े जनाज़ा की सबसे मशहूर दुआ यह है.
सय्यदना अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने एक जनाज़ा पर यह दुआ पढ़ी.
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَصَغِيرِنَا وَكَبِيرِنَا وَذَكَرِنَا وَأُنْثَانَا وَشَاهِدِنَا وَغَائِبِنَا اللَّهُمَّ مَنْ أَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَأَحْيِهِ عَلَى الإِيمَانِ وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَى الإِسْلاَمِ اللَّهُمَّ لاَ تَحْرِمْنَا أَجْرَهُ وَلاَ تُضِلَّنَا بَعْدَهُ ”
(अल्लाहुम्मग़्फ़िर लिहय्यिना व मय्यितिना व-सग़ीरिना व-कबीरिना व-ज़करिना व उन्साना व-शाहिदिना व-ग़ाइबिना. अल्लाहुम्मा मन अह़यइ तहू मिन्ना फ़अह़यिही अ़लल ईमान. व मन तवफ़्फ़इतहु मिन्ना फ़तवफ़्फ़हू अ़लल इस्लाम. अल्लाहुम्मा ला तहरिमना अजूरहू वला तुज़िल्लना बअ़दहू)
तर्जुमा: “ऐ अल्लाह! हमारे ज़िन्दा और मुर्दे को, छोटे और बड़े को, मर्द और औरत को, हाज़िर और ग़ायब को बख़्श दे. ऐ अल्लाह! हममें से जिसको तू ज़िन्दा रख उसे ईमान पर ज़िन्दा रख और हममें से जिसको मौत दे, इस्लाम पर दे. ऐ अल्लाह! हमें इस (मय्यत) के अज्र (सवाब) से महरूम न रख और उसके बाद हमें गुमराह न कर.” (अबू दावूद 3201, इसे इमाम इब्ने हिब्बान रह० ने सहीह कहा)
➤ इसके अलावा मय्यत के लिए और भी कई दुआएं नबी ﷺ से साबित हैं जो मुस्लिम ह० 2232, अबू दावूद 3202, वग़ैरह में मौजूद हैं. सय्यदना अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ि० के क़ौल और ताबईन रह० के अक़्वाल से मालूम होता है कि एक ही मय्यत पर कई दुआएं पढ़ी जा सकती हैं. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 11370, 11371)
नमाज़े जनाज़ा के मसाइल | Namaz Janaza Ke Masaail
⚫ नमाज़े जनाज़ा के लिए न अज़ान होगी और न इक़ामत और न ही सज्दा सह्व (भूल का सज्दा) किया जाएगा.
⚫ नमाज़े जनाज़ा में धीमी और बुलन्द आवाज़ दोनों तरह से क़िराअत करना दुरुस्त है.
सय्यदना अबू उमामा बिन सहल रज़ि० से रिवायत है कि नमाज़े जनाज़ा में सुन्नत तरीक़ा यह है कि इमाम पहली तक्बीर के बाद सूरह फ़ातिहा धीमी आवाज़ से पढ़े, फिर 3 तक्बीरात कहे और आख़िरी तक्बीर के साथ सलाम फेरे. (नसाई ह० 1991)
⚫ तल्हा बिन अब्दुल्लाह कहते हैं कि मैंने सय्यदना इब्ने अब्बास रज़ि० के पीछे नमाज़े जनाज़ा पढ़ी. उन्होंने सूरह फ़ातिहा और एक सूरत पढ़ी और बुलन्द आवाज़ से क़िराअत की, यहाँ तक कि हमने सुना. जब फ़ारिग़ हुए तो फ़रमाया कि “यह सुन्नत और हक़ है.” (नसाई ह० 1989)
⚫ नमाज़े जनाज़ा की तक्बीरात में रफ़अ़ यदैन करना चाहिए. सय्यदना इब्ने उमर रज़ि० से रिवायत है कि नबी अकरम ﷺ जब नमाज़े जनाज़ा पढ़ते तो हर तक्बीर के साथ रफ़अ़ यदैन करते और जब नमाज़ ख़त्म करते तो सलाम कहते थे. (दार कुत्नी ह० 2908)
⚫ नमाज़े जनाज़ा में भी सूरह फ़ातिहा ज़रूरी है. सय्यदना तल्हा बिन उबैदुल्लाह बिन औफ रज़ि० कहते हैं. कि “मैंने इब्ने अब्बास रज़ि० के पीछे नमाज़ पढ़ी तो आपने सूरह फ़ातिहा पढ़ी और फ़रमाया “मैंने यह इसलिए किया है कि तुम जान लो कि यह सुन्नत है.” (सहीह बुख़ारी ह० 1335) ताज्जुब है कि जो लोग उठते बैठते “फ़ातिहा” के नाम लेते हैं वह नमाज़ जनाज़ा में इसे पढ़ते ही नहीं.
⚫ क्या ग़ायबाना नमाज़े जनाज़ा जायज़ है? यानी अगर मय्यत सामने मौजूद न हो तो भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जा सकती है. नबी ﷺ को जब शाह-ए-हब्शा (इथियोपिया के राजा) नज्जाशी की मौत की ख़बर मिली तो आप ﷺ ने सहाबा के साथ जनाज़े की नमाज़ पढ़ी. (सहीह बुखारी ह० 3877, 3878, सहीह मुस्लिम ह० 2204)
⚫ क्या मस्जिद में नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जा सकती है? जब सय्यदना साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि० का इन्तक़ाल हुआ तो उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि० ने फ़रमाया कि उनका जनाज़ा मस्जिद में लाओ ताकि मैं भी नमाज़े जनाज़ा में शरीक हो जाऊं. लोगों ने ना-गवारी महसूस की तो आइशा रज़ि० ने फ़रमाया कि लोग कितनी जल्दी भूल जाते हैं. रसूलुल्लाह ﷺ ने सहल रज़ि० और उनके भाई की नमाज़े जनाज़ा मस्जिद में पढ़ाई थी. (सहीह मुस्लिम ह० 2252)
सय्यदना सिद्दीक़े अक्बर रज़ि० की नमाज़ भी मस्जिद में पढ़ी गई. सय्यदना फ़ारूक़े आज़म रज़ि० की नमाज़े जनाज़ा, सय्यदना सुहैब रज़ि० ने मस्जिद में ही पढ़ाई थी. (सुनन बैहक़ी 4/52)
⚫ क्या औरतें भी नमाज़े जनाज़ा में शामिल हो सकती हैं? ऊपर वाली हदीस (सहीह मुस्लिम ह० 2252) से यह भी मालूम हुआ कि औरतों के लिए नमाज़े जनाज़ा में शिरकत जायज़ है.
⚫ क्या मुर्दा पैदा होने वाले बच्चे का जनाज़ा पढ़ा जाएगा? सय्यदना मुग़ीरा बिन शोबा रज़ि० से रिवायत है रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “बच्चा मुर्दा पैदा हो तो उसकी नमाज़े जनाज़ा अदा की जाएगी और उसमें उसके वाल्दैन के लिए मग़्फ़िरत और रहमत की दुआ की जाएगी.” (अबू दावूद ह० 3180)
⚫ क्या दफ़नाने के बाद भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जा सकती है? एक सहाबी का इन्तक़ाल रात में हुआ तो लोगों ने दफ़ना दिया और रात की वजह से नबी ﷺ को इत्तला नहीं दी. सुबह जब आप ﷺको यह बात पता चली तो आप ﷺ उन सहाबी की क़ब्र पर गए और नमाज़ पढ़ी. (सहीह बुखारी ह० 1247, 1321)
⚫ रसूलुल्लाह ﷺ ने ख़ुदकुशी करने वाले की नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी. (सहीह मुस्लिम ह० 2262)
⚫ इसी तरह नबी ﷺ ने क़र्ज़दार की नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी. (सहीह बुखारी ह० 2289)
⚫ कबीरा गुनाह करने वाले शख़्स की नमाज़े जनाज़ा
सऊदी अरब के मशहूर आलिम शैख इब्ने बाज़ रह० फरमाते हैं कि खुदकुशी करने वाले को गुस्ल दिया जाएगा. उसका जनाज़ा भी पढ़ा जाएगा. उसे मुसलमानों के साथ ही दफ़न किया जाएगा. इसलिए कि वह गुनाहगार है, काफ़िर नहीं. खुदकुशी गुनाह है कुफ़्र नहीं. लेकिन बड़े आलिमे दीन और ऐसे लोगों को जिनकी खास अहमियत हो, उनको चाहिए कि उसकी नमाज़े जनाज़ा न पढ़े ताकि यह गुमान न हो कि वह उसके अमल से राज़ी हैं. (फ़तावा इस्लामिया न. 99)
अलबत्ता कोई गुनाहगार तौबा कर ले या उस पर दुनिया में ही हद (शरई सज़ा) जारी हो जाए तो बड़े आलिम को उसका नमाज़े जनाज़ा पढ़ना चाहिए. एक सहाबी ने रसूलुल्लाह ﷺ के सामने ज़िना का गुनाह क़ुबूल किया तो आप ﷺ ने उन पर हद (शरई सज़ा) जारी की. फिर उनका नमाज़े जनाज़ा पढ़ा और उनको दफ़न किया गया. (सहीह मुस्लिम ह० 1695)
मय्यत से मुतालिक वो काम जो सुन्नत से साबित नहीं
❂ मरने वाले के सर के क़रीब क़ुरआन मजीद रखना.
❂ मरने वाले के पास सूरह यासीन पढ़ना.
❂ मरने वाले का मुंह किबला की तरफ़ करना.
❂ मरने वाले के नाख़ून या नाफ़ के नीचे के बाल साफ़ करना.
❂ यह अक़ीदा रखना के जुमुअ’ के रोज़ मरने वाले को एक या दो घंटे के बाद कभी आज़ाब नहीं होगा.
❂ मरने वाले की चारपाई/बेड के आस पास बैठकर जिक्र करना.
❂ मरने वाले पर सूरह फातिहा पढ़ना.
❂ मरने वाले पर नात ख्वानी करना और उसकी पैसे वसूल करना.
❂ राहदारी (मय्यत उठाने से पहले अनाज वगैरह साथ रखना और तड़फीन के बाद ग़रीबों में तकसीम करना) की रस्म अदा करना.
❂ मरने वाले के पास सूरह बक़रह तिलावत करना.
❂ हिला (मय्यत उठाते वक्त मय्यत पर क़ुरआन मजीद रखना और रखने से पहले उसके बराबर घल्ला या पैसे मौलवी साहिब को देना) की रस्म अदा करना.
❂ बीवी के वफ़ात होने पर शोहर के लिए बीवी को ग़ैर महरम क़रार देना.
जनाज़े से मुतालिक वो काम जो सुन्नत से साबित नहीं
❂ जनाज़े पर फूल डालना या कोई दूसरी ज़ीनत करना.
❂ जनाज़े के ऊपर नक़्श-ओ-निगार वाली मुज़य्यन चादर डालना.
❂ हरे रंग की चादर पर कलिमा तय्यबह या दूसरी क़ुरआनी आयत लिख कर जनाज़े पर डालना.
❂ घर से जनाज़े निकलते वक़्त सदक़ा और ख़ैरात का एहतिमाम करना.
❂ जनाज़े को नेक लोगों की क़ब्रों का तवाफ़ करवाना.
❂ यह अक़ीदा रखना के नेक आदमी का जनाज़ा हल्का होता है और गुनाहगार का जनाज़ा भारी होता है.
❂ जनाज़ा ले जाने से पहले क़ुरआन मजीद के 2.5 पारों की तिलावत करना.
उम्मीद है कि इस मज़मून के ज़रिये नमाज़े जनाज़ा का तरीक़ा का सही तरीक़ा, नमाज़े जनाज़ा की दुआ और उससे जुड़े कई मसाइल वाज़ेह हो गए होंगे.
इससे मुताल्लिक़ कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.