सही अक़ीदा की अहमियत | Sahi Aqeeda Ki Ahmiyat - Muttaqi
अक़ीदा

सही अक़ीदा की अहमियत | Sahi Aqeeda Ki Ahmiyat

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

इंसानी ज़िंदगी में कामयाबी के लिए हम जिसे सबसे ज़्यादा अहम समझते हैं वो हैं आमाल. अक्सर लोगों की दावत इसी तरफ़ होती है. बंदा का अक़ीदा जो भी हो, उसकी परवाह नहीं की जाती, जब कि अगर हम देखें तो अल्लाह के रसूल ﷺ ने अपनी दावत के शुरुआती 13 साल इसी अक़ीदा की तरफ़ दावत देने में गुज़ारे और अक़ीदा और ईमान ही पर ज़ोर दिया. अगर बंदा के पास ईमान न हो, सिर्फ़ आमाल हों, तो वह कामयाब नहीं हो सकता. कामयाबी के लिए अमल के साथ अक़ीदा का सही होना शर्त है. 

Fehrist

अल्लाह ने नेक आमाल से पहले ईमान का ज़िक्र किया है

अल्लाह तआला ने फ़रमाया:

وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ۝۸۲

तर्जुमा: जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किए, जल्द ही हम उन्हें ऐसी जन्नत में दाखिल करेंगे जिस के नीचे से नहरें बह रही होंगी, वो उसमें हमेशा रहेंगे. (अल-बक़रह, 4:82)

आमाल की क़ुबूलियत की शर्त ईमान है

अल्लाह तआला ने फ़रमाया: 

مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْيِيَنَّهُ حَيَاةً طَيِّبَةً ۖ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ۝۹۷

तर्जुमा: मर्द और औरत में से जो कोई भी नेक अमल करे इस हाल में कि वह मोमिन हो, तो हम उसे पाकीज़ा ज़िंदगी अता करेंगे और हम उन्हें उनका उससे बेहतरीन बदला देंगे जो कुछ वो करते थे. (अन्-नहल, 16:97)

तमाम अरकान की अदायगी के साथ ईमान का होना लाज़िम है

अगर एक बंदा कोई अमल करता है जिसे वह नेक समझता है तो ज़रूरी है कि वह इसकी क़बूलियत के लिए भी कोशिश करे कि उसे इसका सवाब मिले. इसकी क़बूलियत के लिए बंदा को ईमान के तमाम अरकान पर यक़ीन के साथ अमल करना ज़रूरी है. 

ईमान के 6 अरकान हैं जैसा कि हदीस-ए-जिबरील से वाज़ेह होता है और वो ये हैं: 

(1) अल्लाह पर ईमान, (2) उसके फ़रिश्तों पर ईमान, (3) उसकी किताबों पर ईमान, (4) उसके रसूलों पर ईमान, (5) आख़िरत के दिन पर ईमान, (6) तक़दीर पर ईमान, चाहे वह अच्छी हो या बुरी. 

अल्लाह तआला ने फ़रमाया: 

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي أَنزَلَ مِن قَبْلُ ۚ وَمَن يَكْفُرْ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا ۝۱۳۶

तर्जुमा: ऐ ईमान वालो! ईमान लाओ अल्लाह पर, उसके रसूल पर, उसकी किताब पर जिसे उसने अपने रसूल पर नाज़िल किया, और उस किताब पर जिसे उनसे पहले उतारा गया; और जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन का इंकार करे तो वह बहुत दूर की गुमराही में चला गया. (अन्- निसा, 4:136)

ईमान के किसी भी रुक्न का इन्कार आमाल को बर्बाद कर देता है और उसके साथ कोई नेकी फ़ायदा नहीं देती

एक बंदा अगर अल्लाह और दूसरे अरकान पर ईमान रखता है लेकिन सिर्फ़ किसी एक रुक्न का इन्कार करता है तो वह कितने भी नेक आमाल कर ले, अल्लाह के यहां क़बूल नहीं होते और उन आमाल के करने पर उसे नेकी भी नहीं दी जाती. जैसे अगर कोई…

आख़िरत का इन्कार करे

आइशा रज़ि० बयान करती हैं कि मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! ज़माना-ए-जाहिलियत में इब्ने जुदआ़न, ख़ानदान वालों से अच्छा बरताव करता था, ग़रीबों को खाना खिलाता था, तो क्या ये आमाल उसे फ़ायदा देने वाले है? रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “नहीं, वो उसे फ़ायदा देने वाला नहीं, क्योंकि उसने किसी भी दिन यह नहीं कहा कि: ‘ऐ मेरे रब! मेरे गुनाहों को आख़िरत के दिन माफ़ कर देना’.” (मुस्लिम ह० 518)

तक़दीर का इन्कार करे

यह्या बिन यअ़मर ने इब्ने उमर (रज़ि०) से कहा: ऐ अबू अब्दुर्रहमान! हमारे यहां कुछ लोग निकले हैं जो क़ुरआन पढ़ते हैं और इल्म हासिल करते हैं… फिर उन्होंने उनके हालात बताए और कहा कि वो यह गुमान करते हैं कि तक़दीर कोई चीज़ नहीं और हर काम नए सिरे से हो रहा है (पहले इस बारे में न कुछ तय है और न अल्लाह को इसका इल्म है.) 

इब्ने उमर (रज़ि०) ने कहा: जब उनसे मिलना तो कहना कि मैं उनसे बरी हूं और वो मुझसे बरी हैं. और अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि०) ने क़सम खाते हुए कहा: अगर उनमें से किसी के पास उहुद पहाड़ के बराबर सोना हो और वह उसे खर्च करे, तब भी अल्लाह उसे क़बूल नहीं करेगा जब तक कि वह तक़दीर पर ईमान न ले आए. (मुस्लिम ह० 93)

अल्लाह को ऐसा ईमान चाहिए है जो शिर्क से ख़ाली हो

हमें सबसे पहले जिस चीज़ पर ईमान लाना है वह अल्लाह पर ईमान है और जब बंदा अल्लाह को अपना माबूद और रब मान लेता है तो उसके बाद उसके साथ किसी को भी शरीक करना हराम हो जाता है. बंदा अल्लाह को रब मानने के बाद किसी को भी शरीक न करे यही ईमान अल्लाह को पसंद है. जबकि एक बंदा अल्लाह को रब मानने के बाद भी शिर्क कर सकता है लेकिन हमें इससे बचना चाहिए ताकि अल्लाह हमारे आमाल को क़बूल करे और जन्नत में दाख़िल करे. 

अल्लाह तआला ने फरमाया: 

وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُم بِاللَّهِ إِلَّا وَهُم مُّشْرِكُونَ ۝۱۰۶

तर्जुमा: और उनमें से अक्सर लोग अल्लाह ईमान लाते तो हैं मगर वो मुश्रिक होते हैं. (यूसुफ, 12:106)

तौहीद तमाम अंबिया व रसूलों की दावत रही है

अल्लाह पर ईमान का सबसे अहम हिस्सा तौहीद है जो शिर्क की ज़िद (विपरीत, opposite) है और तमाम रसूलों ने इसी की तरफ़ दावत दी जैसा कि क़ुरआन की बेशुमार आयतें मौजूद हैं. नबी ﷺ का अमल भी इस पर रहा कि उन्होंने सबसे पहले तौहीद की तरफ़ बुलाया. 

अल्लाह तआला ने फरमाया: 

وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ ۝۳۵

तर्जुमा: हमने आपसे पहले जो भी रसूल भेजा उसको वही (प्रकाशना, Revelation) की कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, इसलिए तुम मेरी ही इबादत करो. (अल-अंबिया, 21:25)

सबसे बेहतर ज़िक्र कलिमा-ए-तौहीद है 

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया: “सबसे अफ़्ज़ल ज़िक्र “ला इलाहा इल्लल्लाह” है.” (तिर्मिज़ी ह० 3383, इब्ने माजा ह० 3800)

तौहीद की फ़ज़ीलत

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया: “अहले तौहीद में से कुछ लोगों को जहन्नम में अज़ाब दिया जाएगा, यहाँ तक कि वो उसमें जल कर कोयला हो जाएँगे. फिर उन पर अल्लाह की रहमत होगी और वह उससे निकाल दिए जाएंगे.” (तिर्मिज़ी ह० 2597)

मालूम हुआ कि तौहीद परस्त होना और दुरुस्त अक़ीदे वाला होना भी हमें जहन्नम से नहीं बचा सकता. लेकिन हाँ! हमेशा के लिए जहन्नम में रहने नहीं देगा. और अगर हमें जहन्नम से हमेशा के लिए बचना है तो ईमान के साथ-साथ नेक आमाल भी करने होंगे.

तौहीद गुनाहों को मिटा देता है

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया: “अल्लाह तआ़ला क़यामत के दिन मेरी उम्मत के एक शख़्स को छाँट कर निकालेगा और सारे लोगों के सामने लाएगा और उसके सामने (उसके गुनाहों के) 99 रजिस्टर फैलाएगा. हर रजिस्टर जहाँ तक नज़र जा सकती है, उतना बड़ा होगा. फिर (अल्लाह) सवाल करेगा: क्या तुम इसमें से किसी (जुर्म) का इन्कार करते हो? क्या मेरे दोनों हाफ़िज़ लिखने वालों (फ़रिश्तों) ने तुम पर कोई ज़ुल्म किया है? बंदा जवाब देगा: नहीं, ऐ मेरे रब!

अल्लाह कहेगा: क्या तुम्हारे पास कोई उज़्र (बहाना, excuse) है? वह कहेगा: नहीं, ऐ मेरे रब! अल्लाह कहेगा: (कोई बात नहीं), बेशक तुम्हारी एक नेकी मेरे पास है और बेशक आज तुम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा. फिर अल्लाह एक पर्चा निकालेगा, उसमें लिखा होगा: “अशहदु अन ला इलाहा इल्लल्लाह व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुह” (मैं गवाही देता हूँ कि नहीं कोई माबूद बरहक़ नहीं सिवाए अल्लाह तआला के, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और उसके रसूल हैं) 

अल्लाह तआ़ला फ़रमाएगा: जाओ, अपने आमाल के वज़न के मौक़े पर (तराज़ू पर) मौजूद रहो. वह कहेगा: ऐ मेरे रब! इन रजिस्टरों के सामने इस पर्चे की क्या हैसियत है? अल्लाह कहेगा: बेशक तुम्हारे साथ ज़ुल्म न होगा.”   

नबी ﷺ ने आगे बयान करते हुए कहा: “रजिस्टरों को एक पलड़े में रखा जाएगा और पर्चे को एक पलड़े में. तमाम रजिस्टर हल्के पड़ जाएँगे और पर्चा भारी हो जाएगा. यक़ीनन अल्लाह के नाम के साथ कोई चीज़ भारी नहीं हो सकती.” (तिर्मिज़ी ह० 2639)

शिर्क की बुराई और उसके नुक़सान का बयान

शिर्क सबसे बड़ा गुनाह है  

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया: “कबीरा गुनाहों में सबसे बड़ा गुनाह अल्लाह के साथ शिर्क करना है.“ (बुख़ारी ह० 2653)

शिर्क आमाल को बर्बाद कर देता है

हमने देखा कि शिर्क, तौहीद की ज़िद (विपरीत, opposite) है और आमाल की क़ुबूलियत के लिये तौहीद शर्त है. रहा शिर्क, तो चाहे इंसान कितना ही नेक अमल करे, शिर्क की वजह से कोई भी अमल अल्लाह के यहाँ क़ुबूल नहीं होगा बल्कि उसके सारे आमाल बर्बाद कर दिये जायेंगे. 

अल्लाह तआला ने फ़रमाया: 

وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ ۝۶۵

तर्जुमा: यक़ीनन आपकी तरफ़ वही की गयी है और उन (नबियों) की तरफ़ भी जो आपसे पहले (हुए) कि अगर आपने शिर्क किया तो यक़ीनी तौर पर आपके आमाल बर्बाद हो जायेंगे और आप लाज़मन नुक़सान उठाने वालों में से हो जाएंगे. (अज़-ज़ुमर, 39:65)

बेशक नबी की शफ़ाअ़त उन लोगों के लिये होगी जो अल्लाह के साथ शिर्क न करें  

ईमान की अहमियत इतनी ज़्यादा है कि क़यामत के रोज़ नबी ﷺ सिर्फ़ उन ही लोगों के लिये शफ़ाअ़त करेंगे जो अल्लाह के साथ शिर्क न करें. हम इस दौर में देखते हैं कि कई बदअक़ीदा लोग यह दावा करते हैं कि हर कोई किसी के लिये भी शफ़ाअ़त करेगा, जबकि नबी ﷺ भी सिर्फ़ उन ही लोगों के लिये शफ़ाअ़त करने का इख़्तियार रखते हैं जिन्होंने कभी शिर्क न किया होगा. 

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया: “हर नबी के लिये एक क़बूल होने वाली दुआ रखी गयी. हर नबी ने अपनी दुआ करने में जल्दी की और बेशक मैंने अपनी दुआ को अपनी उम्मत की शफ़ाअ़त के लिये छुपा रखा है. इस शफ़ाअ़त का हक़दार इंशा अल्लाह मेरी उम्मत का हर वह शख़्स होगा जो इस हाल में वफ़ात पाये कि उसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक न किया हो.” (मुस्लिम ह० 491)

जो तौहीद की पाबन्दी न करे तो उसे माफ़ नहीं किया जायेगा भले ही वह नबी का क़रीबी हो

एक अहम चीज़ जो हमें इस नुक्ते से मालूम होती है कि तौहीद परस्त के अलावा किसी को भी माफ़ नहीं किया जायेगा भले ही वह किसी बड़े पीर, वली या पैग़म्बर ही का क़रीबी क्यों न हो, क्योंकि अल्लाह तआला ने यह एलान कर दिया है: 

إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ

तर्जुमा: यक़ीनन अल्लाह तआला इस अमल को कभी नहीं माफ़ करेगा कि उसके साथ किसी को शरीक किया जाये. (अन्-निसा, 4:48) 

सईद बिन मुसैय्यब (रह०) अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि जब अबू तालिब की मौत का वक़्त आया तो रसूलुल्लाह ﷺ उनके पास तशरीफ़ लाए. आप ﷺ ने उनके पास अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या बिन मुगीरा को मौजूद पाया. रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “चचा! एक कलिमा ला इलाहा इल्लल्लाह कह दें, मैं अल्लाह के यहाँ आपके हक़ में इसका गवाह बन जाऊँगा.” अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन उमय्या ने कहा: अबू तालिब! आप अब्दुल मुत्तलिब के दीन को छोड़ देंगे? 

रसूलुल्लाह ﷺ लगातार उन्हें यही पेशकश करते रहे और यही बात दोहराते रहे यहाँ तक कि अबू तालिब ने इन लोगों से आख़िरी बात करते हुए कहा कि वह अब्दुल मुत्तलिब की मिल्लत पर (क़ायम) हैं और ला इलाहा इल्लल्लाह कहने से इन्कार कर दिया. तब रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “अल्लाह की क़सम! मैं आपके लिये अल्लाह तआला से मग़फ़िरत की दुआ करता रहूँगा जब तक कि मुझे आप (के बारे में) रोका न जाये.” 

इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फ़रमाई: “नबी और ईमान वालों के लिये जाइज़ नहीं कि मुशरिकीन के लिये मग़फ़िरत की दुआ करें, चाहे वह उनके रिश्तेदार ही क्यों न हों, जबकि उनके सामने वाज़ेह हो चुका कि वह (मुशरिकीन) जहन्नमी हैं. 

अल्लाह तआला ने अबू तालिब के बारे में यह आयत भी नाज़िल फ़रमाई और रसूलुल्लाह ﷺ को मुख़ातिब करके फ़रमाया: “(ऐ नबी!) बेशक आप जिसे चाहें हिदायत नहीं दे सकते लेकिन अल्लाह जिसे चाहे हिदायत दे देता है और वह सीधी राह पाने वालों के बारे में ज़्यादा जानने वाला है.” (अल- क़सस, 28:56) (मुस्लिम: 132)

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