सज्दा सह्व का तरीक़ा | Sajda Sahw Ka Tarika

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله
Is mazmoon ko Roman Urdu me padhne ke liye yahan click karen.
सज्दा सह्व यानी भूल का सज्दा. नमाज़ी से नमाज़ में भूल-चूक हो सकती है. अल्लाह तआ़ला ने नमाज़ में कमी और ज़्यादती को पूरा करने के लिए 2 ज़्यादा सज्दों को जायज़ ठहराया है जिस वजह से पूरी नमाज़ दुहराने की ज़रूरत नहीं पड़ती. लेकिन इसके ज़रिए कुछ ख़ास कमी-ज़्यादती को ही पूरा किया जा सकता है. सज्दा करने से सारी कमियां पूरी नहीं होती और हर कमी के लिए सज्दा सह्व करने की इजाज़त नहीं है.
इस मज़मून में हम अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ सज्दा सह्व का तरीक़ा (Sajda Sahw Ka Tarika) और उससे जुड़े कुछ मसाइल पढेगे. इंशाअल्लाह.
सय्यदना अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमायाः “जब तुम नमाज़ पढ़ते हो तो शैतान नमाज़ में शक और शुबह डालता है और याद नहीं रहता कि कितनी रकअ़तें पढ़ीं. अगर ऐसा हो तो बैठे-बैठे दो सज्दे करो.” (सहीह बुख़ारी ह० 1232, सहीह मुस्लिम ह० 389)
पाँच वक़्त की नमाज़ का सही, सुन्नत के मुताबिक़ और पूरा तरीक़ा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
सज्दा सह्व का तरीक़ा क्या है?| Sajda Sahw Ka Tarika Kya Hai?
सज्दा सह्व के 2 तरीक़े अल्लाह के हबीब ﷺ से सहीह सनद से साबित हैं.
एक तरीक़ा यह है कि नमाज़ी आखिरी रकअ़त में “अत-तहिय्यात” पढ़ने के बाद सिर्फ़ दाईं तरफ़ सलाम फेर कर 2 सजदे करेगा, फिर दोबारा “अत-तहिय्यात”, दुरूद शरीफ़ और दूसरी दुआएं पढ़कर आखिर में दोनों तरफ़ सलाम फ़ेरेगा। लेकिन ये तरीक़ा आक़ा ﷺ से सही सनद साबित नहीं है।
दूसरा तरीक़ा यह है कि नमाज़ी आख़िरी रकअ़त के तशह्हुद में सारी दुआएं पढ़ने के बाद 2 सज्दे करे और फिर बिना कुछ पढ़े फ़ौरन सलाम फेर दे. यानी ये सज्दे सलाम से ठीक पहले होंगे. यह तरीका रसूलुल्लाह ﷺ से सहीह सनद से साबित है.
तीसरा तरीक़ा यह है कि आख़िरी रकअ़त के तशह्हुद में सारी दुआएं पढ़ने के बाद दोनों तरफ़ सलाम फेरे, उसके बाद 2 सज्दे करके फिर सलाम फेर दे. इन दोनों तरीक़ों में सज्दे और सलाम के बीच में कुछ भी नहीं पढ़ा जाएगा. यह तरीका भी रसूलुल्लाह ﷺ से सहीह सनद से साबित है.
ये दोनों तरीक़े अलग-अलग तरह की ग़लतियों के लिए किये जाएंगे. शैख़ सालिह अल उसैमीन रह० मजमूउल फ़तावा 14/14-16 में फ़रमाते हैं कि आमतौर पर सज्दा सह्व इन तीन हालात में किया जाएगा:
1. ज़्यादती
2. कमी
3. शक
नमाज़ में ज़्यादती | Namaz Me Zyadati
मिसाल के तौर पर आदमी नमाज़ में एक रुकूअ़ का इज़ाफ़ा कर दे और एक ही रकअ़त में दो रुकूअ़ कर ले, या सज्दे का इज़ाफ़ा कर दे और दो की जगह तीन सज्दे कर ले, या क़ियाम में ज़्यादती कर दे. मसलन चार की जगह पाँच पढ़ ले और बाद में याद आ जाए. इस ज़्यादती की सूरत में सज्दा सह्व सलाम के बाद होगा जैसा कि हदीस में है कि नबी ﷺ ने ज़ुहर की नमाज़ में पाँच रकअ़तें पढ़ ली. फिर जब लोगों ने सलाम के बाद याद दिला या तो आप ﷺ ने सलाम के बाद सज्दा सह्व किया. (सहीह बुख़ारी ह० 1226, सहीह मुस्लिम ह० 91)
यहां यह कहा जा सकता है कि नबीﷺ ने इस मौक़े पर सलाम के बाद सज्दा सह्व इसलिए किया कि आप ﷺ को सलाम के बाद ही इसका इल्म हो सका, तो हम कहेंगे कि अगर हुक्म आपके अमल से मुख़्तलिफ़ होता तो आप ﷺ सहाबा से फ़रमा देते कि जब तुम्हें सलाम से पहले ही ज़्यादती का इल्म हो जाए तो सलाम से पहले ही सज्दा सह्व कर लो. लेकिन जब आप ﷺ ने ऐसा कुछ नहीं फ़रमाया तो इससे मालूम हुआ कि ज़्यादती की सूरत में सज्दा सह्व सलाम के बाद करना है.
उसकी एक दलील यह भी है की आप ﷺ ने नमाज़े ज़ुहर या अस्र में दो रकअ़त पर ही सलाम फेर दिया. फिर जब लोगों ने आप ﷺ को याद दिलाया तो आप ﷺ ने नमाज़ पूरी की और सलाम फेरा, फिर दो सज्दे किए और दुबारा फिर सलाम फेरा. (सहीह बुख़ारी ह० 482, 714, सहीह मुस्लिम ह० 573, अबू दावूद ह० 1008)
चूंकि नमाज़ के बीच में सलाम एक ज़्यादती थी इसलिए आप ﷺ ने सलाम के बाद सज्दा सह्व किया. हदीस के अलावा अक़्ल और नज़र का भी तक़ाज़ा यही है कि इस सूरत में सज्दा सह्व सलाम के बाद हो. इसलिए कि अगर नमाज़ में ज़्यादती हो जाए और सलाम से पहले ही सज्दा सह्व किया जाये तो फिर नमाज़ में दो इज़ाफ़े हो जाते हैं. लेकिन अगर हम सलाम के बाद ऐसा करते हैं तो सिर्फ एक इज़ाफ़ा होता है जो भूल से हुआ था.
नमाज़ में कमी | Namaz Me Kami
मसलन एक शख़्स पहले तशह्हुद में बैठे बग़ैर उठ जाये या सज्दा में सुब्हाना रब्बियल अअ़ला . . ” या रुकूअ़ में सुब्हाना रब्बियल अ़ज़ीम… ” कहना भूल जाये. इस सूरत में सलाम से पहले सज्दा सह्व करना चाहिए. इसलिए कि वाजिब छूटने की वजह से नमाज़ में अभी नुक़्स पाया जा रहा है. बस हिक्मत का ताक़ाज़ा यही है कि सलाम से पहले सज्दा सह्व कर लिया जाये ताकि नमाज़ से अलग होने से पहले ही इस नुक़्सान को पूरा कर लिया जाये. और उसकी दलील हज़रत अब्दुल्लाह बिन बुहैना रज़ि० की रिवायत है.
“नबी ﷺ ने नमाज़े ज़ुहर पढ़ाई और आप ﷺ दो रकअ़त के बाद तशह्हुद के लिए बैठे बग़ैर खड़े हो गए. फिर जब नमाज़ मुकम्मल कर ली और लोग आपके सलाम फेरने का इंतिज़ार करने लगे तो आप ﷺ ने बैठे हुए तक्बीर कही और दो सज्दे किए, फिर सलाम फेरा. (सहीह बुख़ारी ह० 1224, सहीह मुस्लिम ह० 570)
कमी या ज़्यादती के सिलसिले में शक | Kami Ya Zyadati Me Shak
मसलन यह शक हो जाए कि चार रकअ़त पढ़ी या तीन, तो उसकी दो सूरतें हैं:
1. आदमी को कमी या ज़्यादती में से किसी एक बात की तरफ़ ज़्यादा यक़ीन हासिल हो जाए. तो इस सूरत में वह गुमान ग़ालिब पर रह कर सलाम के बाद सज्दा सह्व कर लेगा जैसा कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि० से रिवायत है. आपने फ़रमाया “जब तुममें से किसी को नमाज़ में शक हो जाए तो वह सही सूरत-ए-हाल मालूम करने की कोशिश करे. फिर उस पर नमाज़ को पूरा करे. उसके बाद सलाम फेर कर दो सज्दे करे. (सहीह बुख़ारी ह० 401, सहीह मुस्लिम ह० 572 )
2. कमी या ज़्यादती में से किसी एक पहलू पर तसल्ली हासिल न हो तो कमी वाले पहलू पर रहकर नमाज़ मुकम्मल करे. फिर सलाम से पहले सज्दा सह्व कर ले. नबी ﷺ से इसी तरह मन्कू्ल है. (सहीह मुस्लिम ह० 57, इब्ने माजा ह० 1210, अबू दावूद ह० 1024) यानी अगर शक है कि तीन रकअ़त हुई या चार और किसी भी तरफ़ यक़ीन नहीं हो रहा हो तो तीन रकअ़त मान कर चलेंगे और चौथी रकअ़त पूरी करके सलाम से पहले सज्दा सह्व कर लेंगे.
मज़ीद बातें | Mazeed Bate
जब कोई दो रकअ़त के बाद बग़ैर तशह्हुद के खड़ा हो जाए तो अगर पूरा खड़ा नहीं हुआ है तो बैठ जाये और पूरी तरह खड़ा हो गया है तो वह न बैठे और आख़िर में सज्दा सह्व करे. (तिर्मिज़ी ह० 365)
लेकिन ध्यान रहे कि अगर कोई चार रकअ़त वाली नमाज़ में भूल कर पांचवीं रकअ़त के लिए खड़ा हो जाए तो उसे पांचवीं रकअ़त पूरी नहीं करना चाहिए, बल्कि जब भी याद आये, फ़ौरन बैठ जाये, क्योंकि वह ज़्यादा है. हाँ नमाज़ में ज़्यादती की वजह से वह सज्दा सह्व करेगा.
उम्मीद है कि सज्दा सह्व से जुड़े बुनियादी सवालों का जवाब मिल गया होगा. अगर कुछ और वज़ाहत चाहिए तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.