तरावीह: एक तार्रुफ़ | Taraweeh: Ek Tarruf - Muttaqi
इबादत

तरावीह: एक तार्रुफ़ | Taraweeh: Ek Tarruf

तरावीह, तहज्जुद, क़ियामे रमज़ान या क़ियामुल लैल एक ही नमाज़ के अलग-अलग नाम हैं. जो नमाज़ साल के 11 महीनों में तहज्जुद होती है वही रमज़ान में तरावीह बन जाती है. अहादीस में आम तौर से क़ियामे रमज़ान या क़ियामुल लैल अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल हुआ है. तरावीह लफ्ज़ का इस्तेमाल बाद में शुरू हुआ. इस मुख़्तसर मज़मून में हम देखेंगे कि तरावीह, नबी ﷺ के ज़माने में और उनके बाद कैसे पढ़ी जाती रही, क्या 20 रकअ़त तरावीह पर इज्मा है, वग़ैरह.

रसूलुल्लाह ﷺ के दौर में तरावीह

❖ अबू हुरैरह (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि “रसूलुल्लाह ﷺ हमें क़ियामे रमज़ान (तरावीह) की तरग़ीब दिया करते थे लेकिन इसकी ताकीद नहीं करते थे और फ़रमाते थे कि जिसने ईमान की हालत में सवाब की नियत से रमज़ान की रात में क़ियाम किया तो उसके पिछले गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे.” ﴾मुस्लिम ह० 1780﴿
➤ इस हदीस से मालूम हुआ कि यह नमाज़ मुस्तहब है, वाजिब नहीं.

❖ रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान के आख़िरी अशरे में सहाबा को 3 रातों तक तरावीह पढ़ाई, लेकिन चौथी रात नहीं पढ़ाई. चौथी रात आप ﷺ अपने हुजरे से बाहर निकले और फ़रमाया “ मुझे तुम्हारे यहाँ जमा होने का इल्म था लेकिन मुझे डर हुआ कि कहीं यह नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ न कर दी जाए.” ﴾बुख़ारी ह० 1129, 2012﴿
➤ इससे पता चला कि तरावीह की नमाज़ ख़ुद नबी ﷺ ने जमात से पढ़ाई, लेकिन उम्मत पर मशक्क़त की वजह से इसकी पाबंदी नहीं की.

❖ आइशा (रज़ि०) से पूछा गया कि नबी ﷺ की रमज़ान में (रात की) नमाज़ कैसी होती थी. तो उन्होंने फ़रमाया ‘रमज़ान हो या ग़ैर रमज़ान, रसूलुल्लाह ﷺ 11 रकअ़त से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे.’ ﴾बुख़ारी ह० 1147, 2013﴿

इस हदीस को इमाम बुख़ारी (रह०) ने ‘तहज्जुद’ (ह० 1147) और ‘तरावीह’ (ह० 2013) दोनों बाब में बयान किया है, जो इस बात की दलील है कि तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ के 2 नाम हैं.

इसके अलावा इस हदीस पर गुफ़्तगू करते हुए अनवर शाह कश्मीरी (रह०) लिखते हैं कि “तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ हैं और इनमें कोई फ़र्क़ नहीं है.” ﴾फ़ैज़ुल बारी (बुख़ारी की शरह) 2/420﴿

❖ जाबिर (रज़ि०) से रिवायत है कि ‘हमें रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान में (रात की) नमाज़ पढ़ाई, आपने 8 रकअ़त और वित्र पढ़ी.’ (सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 1070, सहीह इब्न हिब्बान ह० 2401,2402﴿

❖ उबई बिन कअ़ब (रज़ि०) से रिवायत है ‘मैंने रमज़ान में 8 रकअ़त और वित्र पढ़ी और नबी ﷺ को बताया तो आप ﷺ ने कुछ भी नहीं फ़रमाया. बस यह रज़ामंदी वाली सुन्नत बन गयी.’ ﴾मुस्नद अबू यअ़ला ह० 1801﴿

रसूलुल्लाह ﷺ के दौर के बाद तरावीह

❖ एक दिन उमर (रज़ि०) रमज़ान की रात मस्जिद में गए तो वहां देखा कि कुछ लोग अकेले नमाज़ पढ़ रहे थे और कुछ लोग इकठ्ठा किसी इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे थे. तो उमर (रज़ि०) ने फ़रमाया कि “मेरा ख़्याल है कि अगर इन सब को एक क़ारी के पीछे जमा करूं तो ज़्यादा अच्छा होगा.” फिर उमर (रज़ि०) ने उबई बिन कअ़ब (रज़ि०) को इमाम बनाया और लोगों को उनके पीछे जमा किया. ﴾बुख़ारी ह० 2010﴿

❖ अमीरुल मोमिनीन सय्यिदना उमर बिन ख़त्ताब (रज़ि०) ने उबई बिन कअ़ब (रज़ि०) और तमीम दारी (रज़ि०) को हुक्म दिया कि लोगों को (रमज़ान की रात में वित्र के साथ) 11 रकअ़त पढ़ाएं. ﴾मुवत्ता इमाम मालिक ह० 249, सुनन बैहक़ी 2/496, मिश्कात ह० 1302﴿

नोट:

❶ मुवत्ता इमाम मालिक (ह० 250) में हज़रत उमर (रज़ि०) का 20 रकअ़त तरावीह पढ़ाने का हुक्म देने वाली रिवायत ज़ईफ़ (ग़ैर मोतबर) है क्योंकि उस हदीस में ताबिई यज़ीद बिन रुमान (रह०) उमर (रज़ि०) की दौर-ए-ख़िलाफ़त के बारे में बयान करते हैं जबकि वह उमर (रज़ि०) के ज़माने में पैदा भी नहीं हुए थे.
इस रिवायत को कई उलमा ने ज़ईफ़ कहा है, जैसे अल्लामा ऐनी हनफ़ी ﴾उम्दतुल क़ारी (बुख़ारी की शरह) 11/127﴿, अल्लामा ज़ैलई हनफ़ी ﴾नस्बुर राया 2/154﴿, नैमवी ﴾आसारुस सुनन पेज 253﴿

❷ इसी तरह मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा में अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि०) से मर्वी है कि रसूलुल्लाह ﷺ रमज़ान में 20 रकअ़त और वित्र पढ़ाते थे.
इस रिवायत को भी कई उलमा ने ज़ईफ़/ गढ़ी हुई हदीस कहा है. जैसे, अल्लामा ऐनी हनफ़ी ﴾उम्दतुल क़ारी 1/128﴿, अल्लामा ज़ैलई हनफ़ी ﴾नस्बुर राया 1/153﴿, इब्न हमाम ﴾फ़त्हुल क़दीर 1/333﴿

उलमा के अक़वाल 8 रकअ़त तरावीह के बारे में

❖ मुल्ला अली क़ारी (रह०) “इन सब का नतीजा यह है कि क़ियामे रमज़ान (तरावीह) वित्र मिला कर 11 रकअ़त जमाअत के साथ सुन्नत है. यह आप ﷺ का अमल है.” ﴾मिर्क़ातुल मफ़ातीह (मिश्कात की शरह) 3/382﴿

❖ अल्लामा तहतावी (रह०) “क्योंकि नबी ﷺ ने 20 रकअ़त नहीं, बल्कि 8 रकअ़त पढ़ी हैं.” (हाशिया तहतावी 1/295﴿

❖ मौलाना अनवर शाह कश्मीरी (रह०) “इसके क़ुबूल करने से कोई छुटकारा नहीं है कि आप ﷺ की तरावीह 8 रकअ़त थी और किसी एक भी रिवायत से यह साबित नहीं है कि आप ﷺ ने रमज़ान में तरावीह और तहज्जुद अलग अलग पढ़े हों.” ﴾उर्फ़ुश शज़ी (तिर्मिज़ी की शरह) 2/208﴿

❖ मौलाना अब्दुल हई फ़रंगी महली लखनवी (रह०) “सहीह इब्न हिब्बान की रिवायत, जिसमें जाबिर (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि नबी ﷺ ने रमज़ान में सहाबा को 8 रकअ़त और वित्र पढ़ाई, बिलकुल सहीह है.” ﴾तअलीक़ुल मुमज्जद (मुवत्ता इमाम मुहम्मद की शरह) पेज 91﴿

❖ मौलाना अब्दुश शकूर लखनवी (रह०) “अगरचे नबी ﷺ से 8 रकअ़त तरावीह मस्नून है और एक ज़ईफ़ रिवायत में इब्न अब्बास (रज़ि०) से 20 रकअ़त भी मनक़ूल है.” ﴾हाशिया इल्मुल फ़िक़्ह पेज 195﴿

क्या 20 रकअ़त पर इज्मा है?

❖ इमाम तिर्मिज़ी (रह०) “…और उलमा का क़ियामे रमज़ान (यानी तरावीह की तादाद ) में इख़्तिलाफ़ है.” ﴾सुनन तिर्मिज़ी ह० 806 के तहत﴿

❖ अल्लामा ऐनी हनफ़ी (रह०) “ उलमा का इख़्तिलाफ़ है कि तरावीह की कितनी रकअ़त हैं. ” इसके बाद उन्होंने ताबिईन और तबा ताबिईन से तरावीह की अलग-अलग रकअ़त बयान की. जैसे, यज़ीद बिन अस्वद (रह०) से 47 रकअ़त, इमाम मालिक (रह०) से 38 रकअ़त, मदीना वालों का अमल 41 रकअ़त, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह०) के दौर में 39 रकअ़त, सईद बिन जुबैर (रह०) से 24 रकअ़त, अबू मिज्लस (रह०) से 16 रकअ़त, मु० बिन इस्हाक़ (रह०) से 13 रकअ़त, इमाम मालिक (रह०) से एक और क़ौल के मुताबिक़ 11 रकअ़त. ﴾उम्दतुल क़ारी 11/179 ह० 2010﴿

❖ इमाम क़ुर्तुबी (रह०) “तरावीह की तादाद में उलमा में इख़्तिलाफ़ है….अक्सर उलमा यह कहते हैं कि (तरावीह) 11 रकअ़त है, इन्होंने सय्यिदा आइशा (रज़ि०) की हदीस से दलील ली है.” ﴾अल मुफ़्हिम लिमा अश्कला मिन तल्ख़ीसि किताबि मुस्लिम 2/389﴿

❖ अल्लामा सुयूती (रह०) “बेशक तरावीह की तादाद में उलमा का इख़्तिलाफ़ है.” ﴾अल हावी लिल फ़तावा 1/348﴿

ख़ुलासा

इन सबका निचोड़ यह है कि जो लोग यह दावा करते हैं कि 20 रकअ़त पर उम्मत का इज्मा है, उनका दावा बेबुनियाद है. रकअ़त की तादाद में इख़्तिलाफ़ की वजह यह हो सकती है कि क़ियामे रमज़ान एक नफ़्ल इबादत है, इसलिए इन हज़रात ने कोई तादाद मुक़र्रर नहीं की थी.

हमारा भी यही कहना है कि अगर कोई 20, 39, 47 रकअ़त पढ़ता है तो जायज़ है लेकिन तरावीह की सुन्नत तादाद 11 रकअ़त (वित्र मिलाकर) ही है जैसा कि ख़ुद नबी ﷺ और उमर (रज़ि०) से साबित है.

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