तौहीद: एक मुख़्तसर तार्रुफ़ | Tauheed: Ek Mukhtasar Tarruf - Muttaqi
अक़ीदा

तौहीद: एक मुख़्तसर तार्रुफ़ | Tauheed: Ek Mukhtasar Tarruf

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया:

अहले तौहीद को जहन्नम में अज़ाब दिया जाएगा यहाँ तक कि वह उसमें कोयला हो जाएंगे. फिर उन पर अल्लाह की रहमत होगी और वह उससे निकाल दिए जाएंगे.” (तिर्मिज़ी ह० 2597)

हज़रत आइशा (रज़ि०) और अबू हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है कि जब रसूल अल्लाह ﷺ क़ुर्बानी करना चाहते तो दो बड़े, मोटे, सींग वाले, काले और सफ़ेद, ख़स्सी मेंढ़े लाते. उनमें से एक को अपनी उम्मत के उन लोगों की तरफ़ से ज़बह करते, जिन्होंने अल्लाह के साथ तौहीद की और आप ﷺ के बारे में गवाही दी कि आप ﷺ ने (अल्लाह का पैग़ाम) पहुँचा दिया, और दूसरा मेंढा अपनी तरफ़ से और आले मुहम्मद ﷺ की तरफ़ से ज़बह करते. (इब्ने माजा ह० 3122)

शैख़ उसैमीन (रह०) कहते हैं:

अहले इल्म ने क़ुरआन व अहादीस में ग़ौर- फ़िक्र के बाद ज़िक्र किया है कि तौहीद की तीन क़िस्में हैं:

(1) तौहीद-ए-रुबूबियत
(2) तौहीद-ए-उलूहियत
(3) तौहीद अल-अस्मा व सिफ़ात

ये तीनों क़िस्में अल्लाह तआ़ला ने अपनी किताब में एक ही आयत में ज़िक्र कर दी हैं:

رَّبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا فَاعْبُدْهُ وَاصْطَبِرْ لِعِبَادَتِهِ ۚ هَلْ تَعْلَمُ لَهُ سَمِيًّا

तर्जुमा: आसमानों का, ज़मीन का, और जो कुछ इनके दरमियान है सब का रब वही है, तो उसी की बंदगी कर और उसकी इबादत पर जम जा, क्या तेरे इल्म में उसका हमनाम, हमपल्ला और भी है? (सूरह मरयम, 19:65)

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान, (आसमानों का, ज़मीन का, और जो कुछ इनके दरमियान है सब का रब वही है) यह तौहीद-ए-रुबूबियत है. इसी तरह अल्लाह तआ़ला का यह फ़रमान (तो उसी की बंदगी कर और उसकी इबादत पर जम जा) तौहीद-ए-उलूहियत है. और यह कहना कि क्या तेरे इल्म में उसका हमनाम, हमपल्ला और भी है? तौहीद अस्मा व सिफ़ात है. (फ़तावा नूर अला दर्ब शैख़ उसैमीन, सवाल: 300)

Fehrist

1. तौहीद-ए-रुबूबियत का माना

शैख़ उसैमीन (रह०) फरमाते हैं:

तौहीद रुबूबियत यह है कि अल्लाह को पैदा करने, बादशाहत और कायनात के चलाने और इसमें तदबीर करने में एक मानना. (मजमूअ फ़तावा व रसाइल इब्ने उसैमीन, 1/18)

पैदा करने और बनाने वाला अल्लाह ही है

अल्लाह तआ़ला का इरशाद है

اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ

तर्जुमा: अल्लाह तमाम चीज़ों का ख़ालिक़ है, और वो हर चीज़ पर निगेहबान है. (सूरह अज़-ज़ुमर, 39: 62)

बादशाहत

अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:

لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ ۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

तर्जुमा: अल्लाह ही की बादशाहत है आसमानों और ज़मीन पर और जो कुछ इसमें है उन पर, और वह हर चीज़ पर क़ादिर है. (सूरह अल-माइदा, 5:130)

मामलात की तदबीर करना

अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है:

يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الْأَرْضِ

तर्जुमा: वह आसमान से ज़मीन के मामलात की तदबीर और देख-रेख करता है. (सूरह अस-सजदा, 5:32)

अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ۖ هَلْ مِن شُرَكَائِكُم مَّن يَفْعَلُ مِن ذَٰلِكُم مِّن شَيْءٍ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ

तर्जुमा: यह अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, और रोज़ी भी दी, फिर वही तुम्हें मौत भी देता है, फिर वही तुम्हें दोबारा ज़िंदा भी करेगा. क्या तुम्हारे शरीकों में से कोई है जो इस तरह से कुछ भी कर सके? अल्लाह की ज़ात पाक है, और जिन चीज़ों को वह उसका शरीक ठहराते हैं, वह उनसे बहुत बुलंद है. (सूरह अर-रूम, 30:40)

अल्लाह तआ़ला इरशाद फरमाता है:

إِن يَمْسَسْكَ اللَّهُ بِضُرٍّ فَلَا كَاشِفَ لَهُ إِلَّا هُوَ ۖ وَإِن يَمْسَسْكَ بِخَيْرٍ فَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

तर्जुमा: और अगर अल्लाह तआ़ला तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुँचाए तो उसे दूर करने वाला उसके सिवा कोई नहीं, और अगर वह तुम्हें कोई ख़ैर और नफ़ा वाली चीज़ पहुँचाए तो वह हर चीज़ पर क़ादिर है. (सूरह अल-अनआ़म, 6:17)

يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ

तर्जुमा: वह रात को दिन में और दिन को रात में दाख़िल करता है, और चाँद और सूरज को उसी ने काम में लगा दिया है. हर एक अपनी मुक़र्ररह मुद्दत पर चल रहा है. यही है तुम्हारा अल्लाह जो तुम सबका पालने वाला है, और उसी की सल्तनत और बादशाहत है. और जिन्हें तुम उसके सिवा पुकार रहे हो, वे तो खजूर की एक गुठली के छिलके के भी मालिक नहीं हैं. (सूरह अल-फ़ातिर, 13:35)

तौहीद-ए-रुबूबियत और अहल-ए-मक्का 

कुरैश-ए-मक्का तौहीद-ए-रुबूबियत का इक़रार करते थे. 

सूरह अल-अ़न्कबूत में अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۖ فَأَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ

तर्जुमा: और अगर आप उनसे पूछें कि आसमानों और ज़मीन को किसने पैदा किया, सूरज और चाँद को किसने बनाया, तो वे ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह ने. तो फिर वे कहाँ भटकते जा रहे हैं? (सूरह अल-अ़न्कबूत, 29:61)

सूरह मोमिनून में अल्लाह तआ़ला का इरशाद है:

قُلْ لِّمَنِ الْاَرْضُ وَ مَنْ فِیْهَاۤ اِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ۝۸۴ سَیَقُوْلُوْنَ لِلّٰهِ ؕ قُلْ اَفَلَا تَذَكَّرُوْنَ۝۸۵ قُلْ مَنْ رَّبُّ السَّمٰوٰتِ السَّبْعِ وَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِیْمِ۝۸۶ سَیَقُوْلُوْنَ لِلّٰهِ ؕ قُلْ اَفَلَا تَتَّقُوْنَ۝۸۷ قُلْ مَنْۢ بِیَدِهٖ مَلَكُوْتُ كُلِّ شَیْءٍ وَّ هُوَ یُجِیْرُ وَ لَا یُجَارُ عَلَیْهِ اِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ۝۸۸ سَیَقُوْلُوْنَ لِلّٰهِ ؕ قُلْ فَاَنّٰی تُسْحَرُوْنَ۝۸۹ بَلْ اَتَیْنٰهُمْ بِالْحَقِّ وَ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ۝۹۰

तर्जुमा: पूछिए तो सही कि ज़मीन और इसकी तमाम चीज़ें किसकी हैं? अगर तुम बहुत जानकार हो तो बताओ? बहुत जल्द वे जवाब देंगे कि यह सब अल्लाह के लिए हैं. तो उनसे कह दीजिए कि फिर तुम नसीहत क्यों नहीं लेते? उनसे पूछिए कि सातों आसमानों और अर्श-ए-अज़ीम का पालनहार कौन है? वे फ़ौरन जवाब देंगे कि यह सब अल्लाह के लिए हैं. आप कह दीजिए कि फिर तुम लोग डरते क्यों नहीं हो? उनसे यह भी पूछिए कि तमाम चीज़ों की बादशाहत किसके हाथ में है, और जो पनाह देता है, जिसके मुक़ाबले में कोई पनाह नहीं दी जा सकती, अगर तुम जानते हो तो बताओ? वे झट से जवाब देंगे कि यह तमाम खूबियाँ अल्लाह की हैं. आप कह दीजिए कि फिर तुम पर कौन सा जादू चल गया है? हक़ीक़त यह है कि हमने उन्हें हक़ पहुँचा दिया है, और बेशक वे झूठे हैं. (सूरह अल-मोमिनून, 23: 84-90)

मुशरिकीन क़ुरैश के शिर्क की कैफ़ियत

अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَضُرُّهُمْ وَلَا يَنفَعُهُمْ وَيَقُولُونَ هَٰؤُلَاءِ شُفَعَاؤُنَا عِندَ اللَّهِ ۚ قُلْ أَتُنَبِّئُونَ اللَّهَ بِمَا لَا يَعْلَمُ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ

तर्जुमा: वे अल्लाह के अलावा ऐसी चीज़ों की इबादत करते हैं जो न तो उन्हें फ़ायदा पहुँचा सकती हैं और न ही नुक़सान. और वे यह कहते हैं कि ये सब अल्लाह के पास सिफ़ारिश करेंगी. आप उनसे कह दीजिए कि क्या तुम अल्लाह को ऐसी बात की ख़बर दे रहे हो जिसका ज़मीन और आसमान में किसी को भी इल्म नहीं है? अल्लाह की ज़ात पाक है और उन सभी चीज़ों से बहुत बुलंद है जो वे शरीक ठहराते हैं. (सूरह यूनुस, 10:18)

अल्लाह तआ़ला का इरशाद है:

وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَىٰ إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ

तर्जुमा: और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर दूसरों को अपना वली और मददगार बना लिया है, वे कहते हैं: “हम उनकी इबादत करते हैं बस इसलिए कि वे हमें अल्लाह के क़रीब कर दें.” अल्लाह उनके बीच उस मामले का फ़ैसला कर देगा जिस पर वे झगड़ रहे हैं. अल्लाह तआ़ला झूठों और काफ़िरों को हिदायत नहीं देता. (सूरह अज़-ज़ुमर, 39:3)

2- तौहीद-ए-उलूहियत / इबादत

तौहीद-ए-उलूहियत / इबादत क्या है?

1. जिन्नों और इंसानों की पैदाइश का मक़सद ही इबादत है

अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ

तर्जुमा: मैंने जिन्नों और इंसानों को सिर्फ़ इसलिए पैदा किया कि वे मेरी इबादत करें. (सूरह अज़-ज़ारियात, 51:56)

2. इबादत का माना 

शरई माना 

इब्ने तैमिया (रह०, वफ़ात 728 हि०) ने फ़रमाया, “इबादत में वे सभी चीज़ें शामिल हैं जो अल्लाह को पसंद हैं और जिन पर अल्लाह राज़ी हो, चाहे वे ज़ाहिरी अमल और अक़वाल (कथन) हों या बातिनी (छुपे हुए).” (अल-उबूदिया, पेज 3)

الا لَهَ (अल -इलाह) के माना

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है:

وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ

तर्जुमा: आपसे पहले हमने कई रसूल भेजे, हमने उन सबको यही पैग़ाम दिया कि मेरे सिवा कोई भी माबूद नहीं है, इसलिए मेरी ही इबादत करो! (सूरह अल-अंबिया, 21:25)

इबादत का शिर्क से पाक होना जरूरी है

सूरह अन-निसा में अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

وَاعْبُدُوا اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا

तर्जुमा: और अल्लाह की ही इबादत करो, उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ. (सूरह अन-निसा, 4:36)

नफ़ी और इस्बात का होना (नकारना और मानना)

नबी ﷺ ने फरमाया: 

तर्जुमा: जिसने ला इलाहा इल्लल्लाह कहा और अल्लाह के अलावा तमाम इबादत की जाने वाली चीज़ों का इनकार किया, उसका खून और माल हराम हो जाता है, और उसका हिसाब लेने की ज़िम्मेदारी अल्लाह पर है. (मुस्लिम ह० 130(23))

अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

فَمَن يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِن بِاللَّهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ لَا انفِصَامَ لَهَا ۗ

तर्जुमा: इसलिए जो शख़्स अल्लाह तआ़ला के सिवा दूसरे माबूदों का इंकार करके अल्लाह तआ़ला पर ईमान लाए, उसने उस मज़बूत कड़े को थाम लिया जो कभी नहीं टूटेगा. (सूरह अल-बक़रह 2:256)

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है:

وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَن يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَىٰ

तर्जुमा: और जिन लोगों ने ताग़ूत (झूठे माबूदों) की इबादत से परहेज़ किया और पूरी तरह अल्लाह तआ़ला की तरफ़ मुतवज्जा रहे, वे खुशख़बरी के मुस्तहिक़ हैं. (सूरह अज़-ज़ुमर, 39:17)

3.  तौहीद अल-अस्मा व सिफ़ात

तौहीद अल अस्मा व सिफ़ात क्या है?

तर्जुमा: अल्लाह तआ़ला के अस्मा (नाम) व सिफ़ात में अल्लाह तआ़ला को एक माना जाए इस एतिबार से कि जिन अस्मा-सिफ़ात को अल्लाह ने अपने लिए अपनी किताब में या रसूल ﷺ ने साबित किया है, बंदा उन पर उसी तरह ईमान लाए जैसा कि अल्लाह और उसके रसूल ने इरादा किया है और जैसा कि अल्लाह की शान है, उसके लिए बिना किसी मिसाल को साबित किये क्योंकि कि अल्लाह के लिए मिसाल कहना शिर्क है. (मजमूअ़ फ़तावा व रसाइल इब्न उसैमीन, 1/27)

अल्लाह तआ़ला की सिफ़ात में सलफ़ का मनहज (तरीक़ा)

इब्ने तैमिया (रह०) कहते हैं:

सलफ़ का तरीक़ा यह है कि वह अल्लाह तआ़ला को बग़ैर तहरीफ़ व तअ़तील के और बिला तकयीफ़ व तम्सील (मिसाल) के उन्ही सिफ़ात से नवाज़ते हैं जो सिफ़ात अल्लाह ने अपने लिए बयान की या उसके रसूल ﷺ ने उसके लिए बयान की है. लिहाज़ा जिन सिफ़ात को अल्लाह ने अपने लिए साबित किया है, उसका इनकार नहीं करते और न ही उसकी सिफ़ात की मिसाल मख़लूक़ की सिफ़ात से देते हैं. इसलिए कि इनकार करने वाला मुअत्तिल (जो सिरे से ज़ात का इंकार कर दे) हो जाता है और मुअत्तिल अदम की, यानी कोई ज़ात मौजूद नहीं, की इबादत करता है. तशबीह देने वाला एक मिसाल बना देता है और मिसाल बनाने वाला बुत की इबादत करता है. और सलफ़ का मस्लक यह है कि सिफ़ात बग़ैर तम्सील के साबित करते हैं और बिला तअ़तील अल्लाह की सिफ़ात को पाकी के साथ बयान करते हैं, जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया: “लैस कमिस्लिही शैइ” (उसके जैसी कोई चीज़ नहीं). (मजमूअ़ फ़तावा इब्ने तैमिया, 8/432)

अल्लाह और उसके रसूल ज़्यादा जानते हैं

अल्लाह तआ़ला का इरशाद है:

وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

तर्जुमा: अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते हो. (सूरह आले-इमरान, 3:66) 

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया: 

“यक़ीनन तुममें सबसे ज़्यादा अल्लाह से डरने वाला और अल्लाह के बारे में सबसे ज़्यादा जानने वाला मैं हूँ.” (बुख़ारी ह० 20)

अल्लाह की अस्मा व सिफ़ात में बिगाड़

अल्लाह के अस्मा व सिफ़ात में इल्हाद करने की बुराई

अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

وَلِلَّهِ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَىٰ فَادْعُوهُ بِهَا ۖ وَذَرُوا الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي أَسْمَائِهِ ۚ سَيُجْزَوْنَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

तर्जुमा: अच्छे अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं, सो उन नामों से अल्लाह को पुकारो और ऐसे लोगों से ताल्लुक़ भी न रखो जो इसके नामों में कजरवी (बदलाव, बिगाड़) करते हैं उन लोगों को उनके किये की ज़रूर सज़ा मिलेगी. (सूरह अल-अअ़राफ, 7 :170)

इल्हाद की क़िस्में

1.  التعطيل: अत- तअ़तील (अस्मा व सिफ़ात में किसी को छोड़ देना)

2.  التمثيل: अत-तम्सील (अल्लाह के लिए मिसालें बयान करना)

3.  التکییف: अत- तकयीफ़ (बयान करना, जैसे-किस तरह?)

4.  التحريف: अत-तहरीफ़ (अस्मा व सिफ़ात में कुछ भी बदलना)

तअ़तील का हराम होना

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है:

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ

तर्जुमा: जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इंकार किया उनके लिए बहुत सख़्त अज़ाब है. (सूरह आले-इमरान, 3:4)

अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:

اِنَّ الَّذِیْنَ یَكْفُرُوْنَ بِاللّٰهِ وَ رُسُلِهٖ وَ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یُّفَرِّقُوْا بَیْنَ اللّٰهِ وَ رُسُلِهٖ وَ یَقُوْلُوْنَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَّ نَكْفُرُ بِبَعْضٍ ۙ وَّ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّتَّخِذُوْا بَیْنَ ذٰلِكَ سَبِیْلًۙا۝۱۵۰ اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْكٰفِرُوْنَ حَقًّا ۚ وَ اَعْتَدْنَا لِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابًا مُّهِیْنًا۝۱۵۱

तर्जुमा: जो लोग अल्लाह और उसके पैग़म्बरों के साथ कुफ़्र करते हैं और जो लोग ये चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के दरमियान फ़र्क़ रखें और जो लोग कहते हैं कि कुछ नबियों पर तो हमारा ईमान है और कुछ पर नहीं, और चाहते हैं कि इसके और उसके दरमियान कोई राह निकालें. यक़ीन मानो कि ये सब लोग असली काफ़िर हैं और काफ़िरों के लिए हमने ज़िल्लत वाली सज़ा तैयार कर रखी है. (सूरह निसा, 4:150-151)

तम्सील का हराम होना

अल्लाह तआ़ला का इरशाद है:

لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ

तर्जुमा: अल्लाह के जैसी कोई चीज़ नहीं और वह देखने और सुनने वाला है. (सूरह अश-शूरा, 42:11)

सूरह नहल में अल्लाह तआ़ला का यूं इरशाद है:

فَلَا تَضْرِبُوا لِلَّهِ الْأَمْثَالَ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

तर्जुमा: अल्लाह के लिए मिसालें मत बयान करो, क्यूंकि अल्लाह सब कुछ जानता है और तुम नहीं जानते. (सूरह अन-नहल, 16:74)

तकयीफ़ और तहरीफ़ भी हराम हैं

अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया:

وَلَا تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ إِلَّا الْحَقَّ

तर्जुमा: तुम अल्लाह पर हक़ के सिवा कुछ न कहो. (सूरह अन-निसा, 4:171)

सूरह बक़रह के अल्फ़ाज़ मुलाहिज़ा हों

أَفَتَطْمَعُونَ أَن يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِن بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ

तर्जुमा: क्या तुमको ये उम्मीद है कि वो लोग ईमान ले आएँगे, हालाँकि उनका एक गिरोह अल्लाह का कलाम सुनता है और अक़्ल व सूझ-बूझ के बावजूद उसमें तब्दीली कर डालता है, और वो जानते भी हैं. (सूरह अल-बक़रह, 2:75)

इमाम मालिक (रह०) से जिस वक़्त इस्तवा की कैफ़ियत के तअल्लुक़ से पूछा गया तो फ़रमाया: “इस्तवा मालूम है लेकिन कैफ़ियत मझहूल है, और इसके तअल्लुक़ से सवाल करना बिदअ़त है, और मैं तुझे बिदअ़ती समझता हूँ. (फ़तावा इब्ने तैमिया, 5/144)

यह पोस्ट शैख़ अबू ज़ैद ज़मीर के उर्दू मज़मून ‘तौहीद एक मुख़्तसर तार्रुफ़’ से लिया गया है.

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