वुज़ू का तरीक़ा | Wazu Ka Tarika - Muttaqi
तहारत

वुज़ू का तरीक़ा | Wazu Ka Tarika

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नमाज़ के लिए वुज़ू ज़रूरी है. अगर वुज़ू ठीक तरह से नहीं हुआ तो नमाज़ भी नहीं होगी. अक्सर देखा जाता है कि लोग नमाज़ की तरह वुज़ू भी एक दूसरे को देख कर सीख लेते हैं. इस बारे में किसी जानकार से पूछने की या तो ज़रूरत नहीं समझते या झिझकते हैं. आइये हम अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ वुज़ू की फ़ज़ीलत, वुज़ू का तरीक़ा (Wazu ka tarika), वुज़ू किन चीज़ो से टूटता है और वुज़ू से मुताल्लिक़ कुछ अहम बातें देखते हैं. इंशाअल्लाह. लेकिन ध्यान रहे कि बड़ी नापाकी से पाकी हासिल करने के लिए ग़ुस्ल ज़रूरी है.

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वुज़ू की फ़ज़ीलत | Wuzu Ki Fazeelat

हज़रत उस्मान रज़ि० फ़रमाते हैं कि नबी ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: जो शख्स वुज़ू करता है और अच्छी तरह करता है तो उसके गुनाह उसके जिस्म से निकल जाते हैं यहाँ तक कि उसके नाख़ूनों से भी निकल कर झड़ जाते हैं.” (अबू दावूद ह० 1523, नसाई ह० 1338)

हज़रत इब्ने उमर रज़ि० रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “वुज़ू के बिना नमाज़ क़ुबूल नहीं की जाती.” (मुस्लिम ह० 224)

हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : “जिस शख़्स का वुज़ू टूट जाए तो जब तक वह वुज़ू न करे अल्लाह तआ़ला उसकी नमाज़ क़ुबूल नहीं करता.” (बुख़ारी ह० 135, मुस्लिम ह० 225)

वुज़ू किन चीज़ों से टूट जाता है? | Wuzu Kin Chizon Se Toot Jata Hai?

  1. पेशाब या पाखा़ना करने से. (बुख़ारी ह० 302)
  2. पेट की हवा ख़ारिज होने से. (बुख़ारी ह० 137, 187)
  3. गहरी नींद, जो लेटने या टेक लगाने से हो. (सुनन तिर्मिज़ी ह० 96, मुस्नद अली बिन जाअ़द 3/336)
    अलबत्ता सिर्फ़ बैठ कर ऊंघने से नहीं टूटता. (मुस्लिम ह० 835)
  4. मज़ी निकलने से. (बुख़ारी ह० 132, 178, 269)
  5. इस्तिहाज़ा से, यानी वह ख़ून जो हैज़ (माहवारी, पीरियड्स) के अलावा किसी बीमारी की वजह से आता है. (बुख़ारी ह० 228)
  6. शर्मगाह को हाथ लगाने से. (तफ़्सील आगे आ रही है)
  7. ऊँट का गोश्त खाने से. (तफ़्सील आगे आ रही है)

वज़ाहत

शर्मगाह को हाथ लगाने से वुज़ू टूटना

नबी ﷺ ने फ़रमाया: जो शख्स अपनी शर्मगाह को हाथ लगाए तो वह वुज़ू करे. (मुवत्ता इमाम मालिक, 1/42, अबू दाऊद H# 181)

लेकिन दूसरी हदीस में एक सहाबी ने पूछा कि अगर नमाज़ में अपनी शर्मगाह को छू लें तो? तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि वह तुम्हारे जिस्म का ही एक टुकड़ा है. (अबू दावूद ह० 182) यानी जिस तरह जिस्म के दूसरे हिस्सों को छूने से वुज़ू नहीं टूटता वैसे ही इसको छूने से भी नहीं टूटेगा.

इस बुनियाद पर उलमा के एक गिरोह का मानना है कि अगर कपड़े के ऊपर से शर्मगाह को छुआ जाए तो वुज़ू नहीं टूटेगा.

जबकि दूसरे गिरोह का मानना है कि अगर शहवत की हालत में शर्मगाह छुएगा तब वुज़ू टूटेगा. क्योंकि आम हालत में शर्मगाह भी जिस्म के दूसरे हिस्से की तरह ही है. यही क़ौल बेहतर मालूम होता है.

ऊँट का गोश्त खाने से वुज़ू टूटना

एक सहाबी ने रसूलुल्लाह ﷺ से मालूम किया कि बकरी का गोश्त खाने के बाद वुज़ू करें? आप ﷺ ने फ़रमाया कि चाहो तो कर लो. फिर उन्होंने मालूम किया कि हम ऊँट का गोश्त खाने के बाद वुज़ू करें? तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि हाँ, तुम ऊँट का गोश्त खा कर वुज़ू करो. (मुस्लिम ह० 802)

क़ै, नकसीर और ख़ून बहने से वुज़ू

क़ै या नकसीर आने से वुज़ू टूट जाने वाली रिवायत को, जो इब्ने माजा (ह० 1221) में है, इमाम अहमद और अन्य मुहद्दिसीन ने ज़ईफ़ कहा है. बल्कि इस सिलसिले की तमाम रिवायात सख्त ज़ईफ़ हैं. इसलिए “बराअत अस्लिया” पर अमल करते हुए (यह कहा जा सकता है कि) ख़ून निकलने से वुज़ू फ़ासिद नहीं होता.

इसकी तस्दीक़ उस वाक़्ये से भी होती है जो ग़ज़्वा ज़ात-रिक्राअ में पेश आई जब एक अंसारी सहाबी रात को नमाज़ पढ़ रहे थे तो किसी दुश्मन ने उन पर तीन तीर चलाए जिनकी वजह से वह सख्त ज़ख़्मी हो गए और उनके जिस्म से ख़ून बहने लगा मगर इसके बावजूद वह अपनी नमाज़ में मशग़ूल रहे.’ (अबू दावूद ह० 198, इसे इमाम हाकिम (1/156) और ज़हबी ने सहीह कहा है)

यह हो ही नहीं सकता कि रसूलुल्लाह ﷺ को इस वाक़्ये का पता न हुआ हो या आप को पता हुआ और आपने उन्हें नमाज़ लौटाने या ख़ून बहने से वुज़ू टूट जाने का मसला न बताया, मगर हम तक यह ख़बर न पहुंची हो.

इसी तरह जब हज़रत उमर रज़ि० ज़ख़्मी किए गए तो आप इसी हालत में नमाज़ पढ़ते रहे हालांकि आपके जिस्म से ख़ून जारी था. (मुवत्ता इमाम मालिक 1/39, बैहक़ी 1/357)

➤ इससे मालूम हुआ कि ख़ून बहने से वुज़ू नहीं टूटता है.

मज़ी निकलने से वुज़ू

हज़रत मिक्रदाद रज़ि० ने रसूलललाह ﷺ से मालूम किया कि मज़ी निकलने से गुस्ल वाजिब होता है या नहीं? तो आप ﷺ ने फ़रमाया: “मज़ी निकलने से गुस्ल वाजिब नहीं होता, अपना लिंग धो डाल और वुज़ू कर.” (बुख़ारी ह० 132, 178, 269, मुस्लिम ह० 303)

हवा निकलने से वुज़ू

रसूलुल्लाह ﷺ के सामने एक ऐसे शख़्स की हालत बयान की गई जिसे ख़्याल आया कि नमाज़ में उसकी हवा निकली है तो नबी ﷺ ने फ़रमाया: “नमाज़ उस वक़्त तक न तोड़ो जब तक (हवा निकलने की) आवाज़ न सुन ले या उसे बदबू महसूस हो.” (बुख़ारी ह० 187)

इस हदीस से मालूम हुआ कि जब तक हवा निकलने का पक्का यक़ीन न हो जाए वुज़ू नहीं टूटता. इसलिए जिसे पेशाब की बूंदों या वहम की बीमारी हो उसे भी जान लेना चाहिए कि वुज़ू एक हक़ीक़त है. एक यक़ीन है. यह यक़ीन से ही टूटता है, शक या वहम से नहीं.

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: “अगर नमाज़ में वुज़ू टूट जाए तो नाक पर हाथ रख कर लौटो।” (अबू दाउद 1141, इसे हाकिम और ज़हाबी ने सहीह कहा है)

वुज़ू का सुन्नत तरीक़ा | Wazu Ka Tarika Sunnat Ke Mutabiq

  1. वुज़ू करने से पहले दिल में वुज़ू करने की नियत करें.
  2. वुज़ू के लिए पाक पानी लें.
  3. वुज़ू के शुरू में बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ना चाहिये क्योंकि रसूल अल्लाह ﷺ ने सहाबा किराम रज़ि० से फ़रमाया: बिस्मिल्लाह कह कर वुज़ू करो. (नसाई ह० 78, इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 144)
    नबी अकरम ﷺ ने फ़रमाया जो शख़्स वुज़ू के शुरू में बिस्मिल्लाह नहीं कहता उसका वुज़ू नहीं. (अबू दावूद ह० 101)
    अगर बिस्मिल्लाह भूल गए और वुज़ू के दौरान याद आया तो फ़ौरन पढ़ ले, वुज़ू दुबारा करने की ज़रूरत नहीं क्योंकि भूल माफ़ है.
  4. नबी ﷺ ने फ़रमाया कि अगर मुझे अपनी उम्मत पर मशक़्क़त का डर न होता तो मैं हर नमाज़ के साथ मिस्वाक का हुक्म देता. (बुख़ारी ह० 887, मुस्लिम ह० 252)
  5. पहले अपने दोनों हाथ कलाई तक तीन बार धोएं. (बुख़ारी ह० 159, मुस्लिम ह० 268)
  6. हाथों को धोते वक़्त हाथों की उंगलियों के बीच ख़िलाल करें. (अबू दावूद ह० 142, तिर्मिज़ी ह० 38)
  7. फिर एक चुल्लू लेकर आधे से कुल्ली करें और आधा नाक में डालें और नाक को बाएं हाथ से साफ़ करें. यह अमल तीन बार करें. (बुख़ारी ह० 191, 199, मुस्लिम ह० 235)
    कुल्ली और नाक में पानी डालने के लिए अलग-अलग पानी लेने का सुबूत भी एक और हदीस में मिलता है. (तारीख़ अल कबीर ला इब्ने अबी ख़ैसमा पेज# 588 ह० 1410, सनद हसन)
  8. फिर तीन बार मुंह धोएं. (बुख़ारी ह० 185-186, 192, मुस्लिम ह० 235)
  9. फिर एक चुल्लू लेकर उसे ठोढ़ी के नीचे दाख़िल करके दाढ़ी का ख़िलाल करें. (तिर्मिज़ी ह० 31)
  10. फिर दायां हाथ कुहनी तक तीन बार धोएं, उसके बाद बायां हाथ कुहनी तक तीन बार धोएं. (बुख़ारी ह० 1934, मुस्लिम ह० 236)
  11. फिर सर का मसह करें. इसका तरीक़ा यह है कि दोनों हाथ सर के अगले हिस्से से शुरू करके गुद्दी तक ले जाएं. फिर पीछे से आगे उसी जगह ले आएं जहां से मसह शुरू किया था. (बुख़ारी ह० 185, मुस्लिम ह० 235)
  12. आप ﷺ ने सर का मसह एक बार किया. (बुख़ारी ह० 186, मुस्लिम ह० 235)
  13. फिर कानों का मसह इस तरह करें कि शहादत की उंगलियां दोनों कानों के सुराख़ों से गुज़ार कर कानों की पीछे अंगूठों के साथ मसह करें. (इब्ने माजा ह० 439, तिर्मिज़ी ह० 36)
    अगर बा-वुज़ू हो कर सर पर अमामा (पगड़ी) बांधा हो तो दुबारा वुज़ू करने की सूरत में इस पर मसह जायज़ है बशर्ते कि उसे खोला न हो.
    सय्यदना अबू उमामा रज़ि० अमामे पर मसह करते थे. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 222, सनद हसन)
    सय्यदना अबू मूसा अशअरी रज़ि० ने टोपी पर मसह किया. (तारीख़ अल कबीर इमाम बुख़ारी 1/428, सनद सहीह)
  14. फिर दायां पांव टख़नों तक तीन बार धोएं और बायां पांव भी टख़नों तक तीन बार धोएं. (बुख़ारी ह० 1934, मुस्लिम ह० 226)
    नबी ﷺ का इरशाद है “ख़ुश्क एड़ियों पर आग का अज़ाब है. वुज़ू ख़ूब अच्छी तरह किया करो.” (मुस्लिम ह० 570, अबू दावूद ह० 97)

वुज़ू से मुताल्लिक़ कुछ अहम बातें | Wuzu Se Mutalliq Kuch Aham Baate

वुज़ू के दौरान पानी बर्बाद न करें.
जब वुज़ू करें तो हाथों और पैरों की उंगलियों का ख़िलाल करना न भूलें. (तिर्मिज़ी ह० 39, इब्ने माजा ह० 447)
पैरों की उंगलियों का ख़िलाल, हाथ की छुन्गली (छोटी उंगली) से करना चाहिये. (अबू दावूद ह० 148, तिर्मिज़ी ह० 40)
वुज़ू के दौरान जिस्म के हिस्सों को एक बार या दो बार धोना भी नबी ﷺ से साबित है. (बुख़ारी ह० 157, 158) लेकिन ध्यान रहे कि वुज़ू वाले हिस्सों में से कोई हिस्सा सूखा न रह जाए.
वुज़ू के दौरान जिस्म के हिस्सों को तीन बार से ज़्यादा न धोए. तीन बार से ज़्यादा धोने वाले को नबी ﷺ ने ज़्यादती और ज़ुल्म करने वाला बताया. (अबू दावूद ह० 135)
वुज़ू वाले किसी हिस्से पर आटा, मिट्टी, तारकोल या इसी तरह की कोई और चीज लगी हो तो उसे खुरच कर निकाल दें, क्योंकि इनकी मौजूदगी में वह हिस्सा सूखा रह जाने का ख़तरा है. अलबत्ता अगर किसी बीमारी की वजह से वहां कुछ लगा हो तो फिर उस पर मसह कर ले.
नाख़ूनों पर पेंट या नेल पॉलिश वग़ैरह लगी हो तो वुज़ू के वक़्त रिमूवर की मदद से उसे हटाकर नाख़ून साफ कर लें क्योंकि नेल पॉलिश से पानी नाख़ून तक नहीं पहुंचता. हाँ मेहंदी चूँकि नाख़ून और पानी के दरमियान रुकावट नहीं बनती, इसलिए मेहंदी लगे होने पर वुज़ू दुरुस्त है.
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि० ने फ़रमाया कि अगर घाव पर पट्टी बंधी हुई हो तो वुज़ू करते वक़्त पट्टी पर मसह कर लें और आस पास के हिस्से को धो लें. (बैहक़ी 1/228)
वुज़ू के दौरान बातचीत की मनाही के बारे में कोई हदीस नहीं है. इसलिए ज़रूरत के मुताबिक़ बातें की जा सकती हैं. अलबत्ता गंदी और बेहूदा बातें उसी तरह मना हैं जिस तरह आम हालात में मना होती हैं.
अगर किसी बर्तन जैसे लोटा, मग वग़ैरह में पानी लेकर वुज़ू किया जाए तो बर्तन में बच जाने वाले पानी को खड़े होकर पी लें या किसी और मक़सद के लिए इस्तेमाल कर लें, मगर इसे बिना वजह बर्बाद न करें.
हज़रत अली रज़ि० ने एक बार वुज़ू किया. फिर बाक़ी बचे पानी को खड़े होकर पी लिया और फ़रमाया कि लोग खड़े होकर पानी पीने को बुरा समझते हैं हालांकि नबी अकरम ﷺ भी इसी तरह करते थे जिस तरह मैंने किया है. (बुख़ारी ह० 5616)

ग़ौर तलब रहे | Ghaur Talab Rahe

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “कानों का ताल्लुक़ सर से है.” (सुनन दार क़ुतनी 1/98). इसे इब्ने जौज़ी रह० वग़ैरह ने सहीह कहा है.
इसका मतलब यह है कि कानों के मसह के लिए नए पानी (यानी दुबारा पानी) की ज़रूरत नहीं. और यह मतलब भी हो सकता है कि कानों का हुक्म चेहरे वाला नहीं कि उन्हें धोया जाए. बल्कि उनका हुक्म सर वाला है यानी उनका मसह किया जाए.
कानों के मसह के लिए नए पानी लेने वाली रिवायत को हाफ़िज़ इब्ने हजर रह० ने शाज़ कहा है. यानी यह हदीस सहीह नहीं है.
हाफ़िज़ इब्ने क़य्यिम रह० फ़रमाते हैं कि (गुद्दी के नीचे) गर्दन के (अलग) मसह के बारे में कोई सहीह हदीस नहीं है.
गर्दन के मसह की रिवायत के मुताल्लिक़ इमाम नववी रह० फ़रमाते हैं : “यह हदीस बिल इत्तिफ़ाक़ ज़ईफ़ है.”

वुज़ू की दुआ | Wazu Ki Dua

वुज़ू करने की दुआओं (Wazu Karne Ki Dua) को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है,

1. वुज़ू शुरू करने से पहले की दुआ
2. वुज़ू के दरमियान की दुआ
3. वुज़ू के बाद की दुआ

वुज़ू शुरू करने से पहले की दुआ | Wazu Shuru Karne Se Pahle Ki Dua

रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं: जिसने वुज़ू से पहले बिस्मिल्लाह नहीं कहा उसका वुज़ू नहीं.” (इब्ने माजा ह० 397)

इससे पता चला कि वुज़ू शुरू करते वक़्त बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ना चाहिए.

वुज़ू के दरमियान की दुआ | Wazu Ke Darmiyan Ki Dua

किस भी सहीह या ज़ईफ़ हदीस से वुज़ू के दौरान कोई भी दुआ का सुबूत नहीं मिलता. बल्कि सहाबा में भी किसी से इस बारे में किसी दुआ का सुबूत नहीं है.

लेकिन हैरानी वाली बात है कि कुछ हज़रात वुज़ू के दौरान हर हिस्से को धोते हुए पहला कलमा या और कोई भी ख़ुद से बनाई हुई दुआ पढ़ने की ताकीद करते हैं जो कि सरासर ग़लत और क़ुर्आन और हदीस के ख़िलाफ़ है.

इमाम नववी रह० फ़रमाते हैं “जहाँ तक वुज़ू के दौरान जिस्म के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को धोते वक़्त कही जाने वाली दुआओं का ताल्लुक़ है, तो ऐसी कोई बात नबी से साबित नहीं है.” (अल अज़्कार पेज 30)

वुज़ू के बाद की दुआ | Wazu Ke Bad Ki Dua

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जो शख़्स पूरा वुज़ू करे और फिर कहे:
أَشْهَدُ أَنْ لَّا إِلَّا اللهُ وَحْدّهُ لَا شَرِكَ لَهُ, وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ

“मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं. वह अकेला है. उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं.” तो उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाते हैं कि जिससे चाहे दाख़िल हो.’ (सहीह मुस्लिम ह० 553)

अबू दावूद (ह० 170) की एक रिवायत में इस दुआ को आसमान की तरफ़ निगाह उठाकर पढ़ने का ज़िक्र है मगर यह रिवायत ज़ईफ़ (ग़ैर मोतबर) है, इसमें एक रावी अबू अक़ील का चचाज़ाद भाई ना मालूम है.

वुज़ू के बाद यह दुआ भी पढ़ सकते हैं

سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ أَسْتَغْفِرُكَ وَأَتُوبُ إِلَيْكَ
“ऐ अल्लाह! तू अपनी सारी तारीफ़ों के साथ (हर बुराई से) पाक है मैं गवाही देता हूं कि तेरे सिवा कोई सच्चा माबूद (उपास्य) नहीं है मैं तुझसे माफ़ी मांगता हूं और तेरे सामने तौबा करता हूं.” (अबू दावूद ह० 4859)

कुछ लोग तिर्मिज़ी शरीफ़ की एक दुआ “अल्लाहुम्मज अ़़लनी मिनत्तव्वाबीन व जअलनी मिनल मुता तह्हिरीन” भी बताते हैं मगर ख़ुद इमाम तिर्मिज़ी रह० ने इसे मुज़तरिब (ज़ईफ़ की एक क़िस्म) क़रार दिया है. (तिर्मिज़ी ह० 55)

इसके अलावा जो भी दुआएं सहीह हदीसों से साबित हैं पढ़ी जा सकती हैं.

यह था वुज़ू का तरीका (wazu ka tarika) और उससे जुड़ी कई और मालूमात. उम्मीद है कि इससे आपके इल्म में इज़ाफ़ा हुआ होगा. इससे मुताल्लिक़ कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.

जज़ाकल्लाह ख़ैर.

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