वित्र की नमाज़ का तरीक़ा | Witr Namaz Ka Tarika - Muttaqi
इबादत

वित्र की नमाज़ का तरीक़ा | Witr Namaz Ka Tarika

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

Is mazmoon ko Roman Urdu me padhne ke liye yahan click kare.

पाँच वक़्त की नमाज़ का सही, सुन्नत के मुताबिक़ और पूरा तरीक़ा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.

नमाज़े वित्र का वक़्त क्या है?| Namaz e Witr Ka Waqt Kya Hai?

◉ उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि० ने फ़रमाया कि रसूलुल्लाह ﷺ ने वित्र रात के हर हिस्से में पढ़ी है, रात के शुरू में, बीच में और आख़िर में, आपके वित्र के औकात सहरी तक जाते थे. (मुस्लिम ह० 1737)
यानी नबी ﷺ ने वित्र की नमाज़ हर वक़्त अदा की हैं.

◉ रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि “जिसे डर हो कि वह रात के आख़िरी हिस्से में नहीं उठ सकेगा वह रात के शुरू में ही वित्र पढ़ ले फिर सो जाए. और जिसको यक़ीन हो कि रात को उठ जाएगा, वह आख़िर में वित्र पढ़े. इसलिए कि आख़िर रात की क्रिराअत में फ़रिश्ते हाज़िर होते हैं और यह अफ़्ज़ल है.” (मुस्लिम ह० 1767)

◉ आप ने फ़रमाया: “वित्र रात की तमाम नमाज़ों के बाद पढ़ा करो.” (बुख़ारी ह० 998)

◉ सय्यदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने सय्यदना अबू बक्र रज़ि० से पूछा कि तुम किस वक़्त वित्र की नमाज़ अदा करते हो? सय्यदना अबू बक्र रज़ि० ने कहा कि इशा की नमाज़ के बाद रात के शुरुआती हिस्से में. आप ﷺ ने सय्यदना उमर रज़ि० से पूछा कि तुम कब वित्र पढ़ते हो? तो उन्होंने कहा कि रात के आख़िरी पहर. नबी रहमत ﷺ ने फ़रमाया “अबू बक्र, तुमने मज़बूत कड़ा पकड़ लिया और उमर, तुमने कुव्वत को इख़्तियार किया.” (इब्ने माजा ह० 1202)

➤ अब यहाँ एक सवाल यह पैदा हो सकता है कि वित्र को देर से पढ़ने की वजह से अगर नमाज़ के बीच में फ़ज्र की अज़ान शुरू हो जाए तो क्या करना चाहिए? इसके जवाब में सऊदी अरब के मशहूर आलिम, शैख़ मुहम्मद बिन सालेह उसैमीन रह० फ़रमाते हैं “जब वित्र पढ़ते हुए अज़ान शुरू हो जाए तो नमाज़ मुकम्मल कर लेनी चाहिए, इसमें कोई हर्ज नहीं है.” (फ़तावा इस्लामिया 1/ 449)

वित्र में कितनी रकअ़तें पढ़ना चाहिए? | Witr Me Kitni Rak’ate Padhna Chahiye?

वित्र में कितनी रकअ़तें होती हैं? इस बारे में भी हिन्द-ओ-पाक की अक्सरियत यही समझती है कि वित्र सिर्फ़ 3 रकअ़तों वाली नमाज़ है. हालांकि नबी ﷺ से अलग-अलग मौक़ों पर वित्र की 1,3,5,7,9 रकअ़तें साबित हैं.

एक रकअ़त वित्र | Ek Rak’at Witr

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “वित्र, आख़िर रात में एक रकअ़त है.” (मुस्लिम ह० 1757)

उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि० रिवायत करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ हर दो रकअ़त के बाद सलाम फेरते और एक रकअ़त वित्र पढ़ते. (इब्ने माजा ह० 1177)

तीन रकअ़त वित्र | Teen Rak’at Witr

अबू अय्यूब रज़ि० रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमायाः “वित्र हर मुसलमान पर हक़ है. बस जो शख़्स पांच रकअ़त वित्र पढ़ना चाहे तो पांच रकअ़त पढ़े और जो तीन रकअ़त वित्र पढ़ना चाहे तो वह तीन रकअ़त पढ़े और जो एक रकअ़त वित्र पढ़ना चाहे तो एक रकअ़त वित्र पढ़ें!” (अबू दावूद ह० 1422, इब्ने माजा ह० 1190)

पाँच रकअ़त वित्र | Panch Rak’at Witr

रसूलुल्लाह ﷺ रात को (कुल) तेरह रकअ़त पढ़ते और उनमें पांच रकअ़त वित्र पढ़ते थे (और उन पांच वित्रों में) आख़िरी रकअ़त के अलावा किसी में भी (तशह्हुद के लिए) न बैठते. (मुस्लिम ह० 1720)

मालूम हुआ कि अगर वित्र की पाँच रकअ़तें पढ़ना हो तो पांच रकअ़तों के दौरान बीच में तशह्हुद (अत्तहिय्यात) के लिए नहीं बैठना चाहिए. बल्कि पांचों रकअ़तें पढ़ कर आख़िरी क़अ़दा में अत्तहिय्यात, दुरूद और दुआ पढ़कर सलाम फेरना चाहिए. यानी पूरी पाँच रकअ़तों में सिर्फ़ एक ही तशह्हुद होगा.

सात और नौ रकअ़त वित्र | Sat Aur Nau Rak’at Witr

एक बहुत लम्बी हदीस में उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि०, सहाबा रज़ि० को नबी ﷺ की वित्र की नमाज़ के बारे में बताते हुए फ़रमाती हैं, “…..आप ﷺ वुज़ू करते और नौ रकअ़त वित्र पढ़ते. इनमें आप ﷺ आठवीं रकअ़त के अलावा किसी रकअ़त में न बैठते……फिर सलाम फेरे बग़ैर खड़े हो जाते और नवीं रकअ़त में बैठते और अल्लाह का ज़िक्र, हम्द और दुआ करके सलाम फेरते जो हमें सुनाते. फिर जब आप ﷺ की उम्र बढ़ी और जिस्म भारी हो गया तो आप ﷺ सात वित्र पढ़ने लगे. (मुस्लिम ह० 1739)

इस हदीस से पता चला कि 7 या 9 रकअ़त वित्र में सिर्फ़ 2 तशह्हुद होंगे. पहला तशह्हुद सलाम फेरने से पहले वाली रकअ़त में और दूसरा तशह्हुद आख़िरी रकअ़त में जिसमें सलाम फेरना है.

वित्र वाजिब है या सुन्नत? | Witr Wajib Hai Ya Sunnat?

वित्र के वाजिब या सुन्नत (मुअक्किदा) होने में इख़्तिलाफ़ है. इमाम अबू हनीफ़ा रह० के नज़दीक यह वाजिब है. जम्हूर (अक्सरियत) के यहाँ यह सुन्नते मुअक्किदा है, जिसमें इमाम मालिक रह०, शाफ़ई रह०, अहमद रह० वग़ैरह शामिल हैं. यही बात ज़्यादा सही मालूम होती हैं क्योंकि सहाबा किराम रज़ि० से भी यही साबित है.

◉ सय्यदना अली रज़ि० फ़रमाते हैं कि “वित्र की नमाज़ फ़र्ज़ नमाज़ों की तरह वाजिब नहीं बल्कि यह सुन्नत है जिसे रसूलुल्लाह ﷺ ने तुम्हारे लिए जारी फ़रमाया है.” (सुनन नसाई ह० 1677, सुनन तिर्मिज़ी ह० 454)

◉ अब्दुर्रहमान बिन अबू अमरह रह० (ताबिई) ने उबादा बिन सामित रज़ि० से वित्र के बारे में सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि “वित्र अच्छा अमल है. इसे नबी ﷺ ने अदा किया और मुसलमानों ने भी अदा किया है लेकिन यह वाजिब नहीं है.” (मुस्तदरक हाकिम 1/300)

वित्र की नमाज़ को मग़रिब की नमाज़ की तरह पढ़ने की मनाही | Witr Ko Maghrib Ki Tarah Padhne Ki Manahi

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “तीन वित्र न पढ़ो, पांच या सात वित्र पढ़ो और मग़रिब की मुशाबिहत (तरह) न करो.”(सहीह इब्ने हिब्बान ह० 2429, इमाम हाकिम, जहबी और इब्ने हिब्बान रह० ने इसे सहीह कहा)

मग़रिब में भी फ़र्ज़ की 3 रकअ़तें होतीं हैं. इसलिए अगर कोई 3 रकअ़त वित्र पढ़ना चाहे तो उसको चाहिए कि वह वित्र की 3 रकअतों को मग़रिब की नमाज़ की तरह न पढ़े.

3 रकअ़त वित्र नमाज़ का तरीक़ा | Witr Ki Namaz Ka Tarika

ऊपर बयान की गयी हदीस से पता चला कि तीन रकअ़त वित्र को मग़रिब की तरह नहीं पढ़ना है. यानी जिस तरह तीन रकअ़त मग़रिब में दो तशह्हुद होते हैं, तीन रकअ़त वित्र में दो तशह्हुद नहीं होना चाहिए. अगर वित्र की दो रकअ़त पढ़कर सलाम फेरा जाए और फिर एक रकअ़त पढ़ी जाए तो मग़रिब की मुशाबिहत नहीं होगी जिसकी मनाही नबी ﷺ ने की है.

इब्ने उमर रज़ि० रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ (वित्र की) दो और एक रकअ़त को सलाम के साथ जुदा करते और यह सलाम हमें सुनाते थे. (सहीह इब्ने हिब्बान ह० 2426, हाफ़िज़ इब्ने हजर रह० ने इसे क़वी कहा है)

यानी आप ﷺ तीन वित्र भी इस तरह पढ़ते थे कि दो रकअ़तें पढ़ कर सलाम फेरते और फिर उठ कर तीसरी रकअ़त अलग पढ़ते. तीन रकअ़त वित्र का सिर्फ़ यही तरीक़ा नबी ﷺ से साबित है.

जिन रिवायतों में एक सलाम से तीन रकअ़त वित्र पढ़ने का ज़िक्र आया है, वो सब ज़ईफ़ हैं. फिर भी अगर कोई उस पर अमल करना चाहे तो उसकी शक्ल यह होगी कि 3 रकअ़त एक साथ पढ़ी जाये और दूसरी रकअ़त में तशह्हुद के लिए बैठे बिना सीधे खड़े हो जाये और तीसरी रकअ़त पूरी करे और उसमें तशह्हुद के लिए बैठे.

इसी तरह 2 तशह्हुद से 3 रकअ़त वित्र पढ़ने वाली मरफ़ू (यानी नबी ﷺ की तरफ़ मन्सूब) रिवायतें गढ़ी हुई  हैं. (अल इस्तिआ़ब 4/471)

बक्र बिन अब्दुल्लाह रह० (ताबिई) फ़रमाते हैं “बेशक अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि० ने दो रकअ़तें पढ़ीं और सलाम फेरा. फिर कहा ‘मेरी फ़लां ऊंटनी ले आओ.’ फिर आप खड़े हुए और एक वित्र पढ़ी.” (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 4806)

तीन रकअ़त वित्र में कौन सी सूरतें पढ़ना चाहिए? | 3 Rakat Witr Me Kaun Si Suraten Padhna Chahiye?

उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ तीन रकअ़त वित्र की पहली रकअ़त में सब्बि हिस्मा रब्बिकल अअ़ला, दूसरी में क़ुल या अय्युहल काफ़िरून और तीसरी में क़ुल हु अल्लाहु अहद, पढ़ते थे. (तिर्मिजी ह० 462, इमाम जहबी और इब्ने हिब्बान रह० ने इसे सहीह कहा है)

वित्र नमाज़ की दुआ | Witr Namaz Ki Dua

सय्यदना हसन बिन अली रज़ि० रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने मुझे कुछ कलिमात सिखाए जिनको मैं (क़ुनूत) वित्र में पढ़ता हूँ.

اللَّهُمَّ اهْدِنِي فِيمَنْ هَدَيْتَ وَعَافِنِي فِيمَنْ عَافَيْتَ وَتَوَلَّنِي فِيمَنْ تَوَلَّيْتَ وَبَارِكْ لِي فِيمَا أَعْطَيْتَ وَقِنِي شَرَّ مَا قَضَيْتَ إِنَّكَ تَقْضِي وَلاَ يُقْضَى عَلَيْكَ وَإِنَّهُ لاَ يَذِلُّ مَنْ وَالَيْتَ وَلاَ يَعِزُّ مَنْ عَادَيْتَ تَبَارَكْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَيْتَ

(अल्लाह॒म्मह दिनी फ़ीमन हदैत. व आ़फ़िनी फ़ीमन आ़फ़ैत. व-तवल्लनी फ़ीमन तवल्लैत व बारिक ली फ़ीमा अअ़तैत. व क़िनी शर्रमा क़ज़ैत. फ़ इन्नका तक़ज़ी वला युक़ज़ा अ़लैक. व इन्नहु ला यज़िल्लु मव्‌-व-अलैत. वला यइ़ज्ज़ू मन आ़दैत. तबारक-त रब्बना व-तआ़लैत)

तर्जुमा: “ऐ अल्लाह! मुझे हिदायत देकर उन लोगों में शामिल फ़रमा जिन्हें तूने हिदायत से नवाज़ा है और मुझे आफ़ियत देकर उन लोगों में शामिल फ़रमा जिन्हें तूने आफ़ियत बख्शी है, और जिन लोगों को तूने अपना दोस्त बनाया है उनमें मुझे भी शामिल करके अपना दोस्त बना ले. जो कुछ तूने मुझे अता फ़रमाया है उसमें मेरे लिए बरकत डाल दे और जिस शर व बुराई का तूने फ़ैसला फ़रमाया है उससे मुझे महफ़ूज़ रख और बचा ले. यक़ीनन फ़ैसले तू ही करता है तेरे ख़िलाफ़ कोई फ़ैसला नहीं होता और जिसका तू दोस्त बना वह कभी ज़लील नहीं हो सकता और वह शख़्स इज़्ज़त नहीं पा सकता जिसे तू दुश्मन कहे. ऐ हमारे रब! तू (बड़ा) ही बरकत वाला और बुलन्द व बाला है.”

(अबू दावूद ह० 1425, इसे इमाम तिर्मिज़ी ह० 464 के तहत हसन और इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 1095 में सहीह कहा है)

➤ दुआ ए क़ुनूत के बारे में नबी ﷺ से साबित शुदा हदीसों में सबसे सहीह हदीस यही है.

◉ क़ुनूत-ए-वित्र में एक दुआ जो हिन्द-ओ-पाक में काफ़ी मशहूर है, यानी अल्लाहुम्मा इन्ना नस्त ईनुका.…, यह दुआ नबी ﷺ से सहीह सनद से साबित नहीं है, बल्कि सय्यदना उमर रज़ि० से मौक़ूफ़न साबित है (सुनन कुबरा बैहक़ी 2/211).
यानी यह उमर रज़ि० का अपना ख़ुद का अमल था. इसलिए इसका पढ़ना भी दुरुस्त है. लेकिन जो दुआ नबी ﷺ से साबित है उसको पढ़ना अफ़्ज़ल है.

◉ दुआ ए क़ुनूत के आख़िर में “व सल्लल्लाहु अलन नबी” पढ़ना भी सहीह है. हालांकि इस बारे में नबी ﷺ की तरफ़ मंसूब रिवायत सहीह नहीं है लेकिन उबइ बिन काब रज़ि० का अपना अमल साबित है कि वह दुआ ए क़ुनूत में नबी ﷺ पर दुरूद भेजते थे. (सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 1100)

◉ रसूलुल्लाह ﷺ दुआ-ए-कुनूत को रूकूअ़ से पहले पढ़ते थे. (नसाई ह० 1700, इब्ने माजा ह० 1182, इसे इब्ने तुर्कमानी और इब्नुस्सकन रह० ने सहीह कहा है)

◉ वित्र में रूकूअ़ के बाद कुनूत पढ़ने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं और जो रिवायात सहीह हैं उनमें वज़ाहत नहीं कि आप ﷺ का रूकूअ़ के बाद वाला कुनूत, कुनूते वित्र था या कुनूते नाज़ला (यानी वह दुआ जो ख़ौफ़ के वक़्त पढ़ी जाती है). लिहाजा सही तरीक़ा यही है कि वित्र में कुनूत रूकूअ़ से पहले किया जाए.

◉ कुनूते नाज़ला में रूकूअ़ के बाद कुनूत पढ़ना मस्नून है और उस दौरान दोनों हाथों को दुआ की तरह उठाना भी साबित है. (मुस्नद अहमद 3/137 ह० 12429)

और इसी पर क़ियास करते हुए कुनूते वित्र में भी हाथ उठाना जायज़ है. लेकिन हाथ न उठाना बेहतर है.

एक रात में कई वित्र पढ़ने की मनाही | Ek Rat Me Kai Witr Padhne Ki Manahi

सय्यदना तलक़ बिन अली रज़ि० ने एक दफ़ा रमज़ान में क़ियाम किया और वित्र पढ़ लिया. फिर अपनी मस्जिद में गए तो अपने साथियों को नमाज़ पढ़ाई लेकिन वित्र नहीं पढ़ाई और कहा मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को यह फ़रमाते सुना “एक रात में वित्र की नमाज़ दो दफ़ा नहीं है.” (अबू दावूद ह० 1439, इमाम इब्ने खुज़ैमा और इब्ने हिब्बान रह० ने सहीह और हाफ़िज़ इब्ने हजर ने हसन कहा)

इस रिवायत से मालूम हुआ कि वित्र के बाद नफ़्ल पढ़ी जा सकती हैं लेकिन एक रात में दो दफ़ा वित्र नहीं पढ़ना चाहिए. अगरचे बेहतर यही है कि वित्र को सबसे आख़िर में अदा करे.

वित्र की क़ज़ा | Witr Ki Qaza

नबी रहमत ﷺ ने फ़रमायाः “कोई शख़्स वित्र पढ़े बग़ैर सो जाए या वित्र पढ़ना भूल जाए तो उसे जब याद आए या जाग जाए तो वह वित्र पढ़ ले.” (अबू दावूद ह० 1431, इमाम हाकिम और हाफ़िज़ ज़हबी ने इसे सहीह कहा)

वित्र की क़ज़ा नमाज़ का तरीक़ा | Witr Ki Qaza Namaz Ka Tarika

वित्र की क़ज़ा नमाज़ का कोई ख़ास तरीक़ा नहीं है। जिस तरीक़े से वित्र की नमाज़ अपने वक़्त पर अदा की जाती है, बिल्कुल वही तरीक़ा, क़ज़ा पढ़ने के लिए भी है।

यह मज़मून, मुहद्दिस जुबैर अलीज़ई रह० की किताब हदियतुल मुस्लिमीन, शफ़ीक़ुर रहमान हफ़ि० की नमाज़े नबवी के साथ-साथ और भी कई जगहों से जमा करके तैयार किया गया है.

जज़ाकल्लाह ख़ैर.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button