ईद की नमाज़ का तरीक़ा | Eid Ki Namaz Ka Tarika
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ईदैन यानी ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा के मौक़ा पर सूरज निकलने के बाद खुले मैदान में पढ़ी जाने वाली नमाज़ को ‘सलातुल ईदैन’ या ‘नमाज़ ईदैन’ कहा जाता है. यह दो रकअ़त नमाज़ है जो जहरी (बुलंद आवाज़ वाली) क़िराअत के साथ बा-जमाअ़त अदा की जाएगी. दोनों नमाज़ों का तरीक़ा एक जैसा है. इस पोस्ट में हम अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ नमाज़े ईद का हुक्म, किस वक़्त पढ़ी जाये, ईद की नमाज का तरीक़ा (Eid Ki Namaz Ka Tarika) और उससे जुड़े कई मसाइल पढेंगे. इंशाअल्लाह.
नमाज़े ईद का हुक्म | Namaze Eid Ka Hukm
नमाज़-ए-ईद वाजिब है क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ ने इसकी हमेशा पाबंदी फ़रमाई और साथ-साथ इसके लिए सबको घर से निकलने का हुक्म भी दिया.
उम्मे अतिया रज़ि० बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें हुक्म दिया कि हम ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा में नौजवान पर्दे वाली, माहवारी वाली और कुंवारी लड़कियों भी साथ ले चलें, अलबत्ता माहवारी वाली नमाज़ से दूर रहें मगर इस मौक़ा पर मुसलमानों की दुआ में शरीक हों. वह कहती हैं कि मैंने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! हममें से किसी के पास पर्दे के लिए चादर न हो तो? आप ﷺ ने फ़रमाया: उसकी बहन को चाहिए कि उसे अपनी चादर ओढ़ा कर ले जाये. (सहीह बुख़ारी ह० 974,ـ सहीह मुस्लिम ह० 2056)
नमाज़े ईद का वक़्त | Eid Namaz Time
सय्यदना अब्दुल्लाह बिन बसर रज़ि० ईदुल फ़ित्र के दिन नमाज़ के लिए गए. इमाम ने नमाज़ में देर कर दी तो वह फ़रमाने लगेः “रसूलुल्लाह ﷺ के जमाने में हम इस वक़्त तक नमाज़ से फ़ारिग़ हो चुके थे और यह नफ़्ल नमाज़ का वक़्त होता था”. रावी कहता है कि यह चाश्त का वक़्त था. (अबू दावूद ह० 1135, इब्ने माजा ह० 1317)
यानी ईद की नमाज़, सूरज निकलने पर मकरूह वक़्त ख़त्म होने के बाद जितनी जल्दी हो सके पढ़ लेना चाहिए.
नमाज़ ईद का तरीक़ा | Eid Ki Namaz Ka Tarika
यह नमाज़ जमाअ़त के साथ ही अदा की जाती है. इस नमाज़ का तरीक़ा बाक़ी नमाज़ों की तरह ही है, बस इसमें पूरी नमाज़ में 12 तक्बीरात (यानी अल्लाहु अक्बर) ज़्यादा कहे जाएंगे. पहली रकअ़त में क़िराअत से पहले एक के बाद एक, 7 तक्बीरात और दूसरी में क़िराअत से पहले एक के बाद एक, 5 तक्बीरात ज़्यादा कही जाएंगी.
1. ईदैन की नमाज़ बग़ैर अज़ान और इक़ामत के पढ़ाई जाएगी. (सहीह मुस्लिम ह० 2048)
2. ईद की नमाज़ की नियत (eid ki namaz ki niyat): आमाल की क़ुबूलियत के लिए नियत ज़रूरी है इसलिए ईद की नमाज़ के लिए भी नियत कर लें, लेकिन ध्यान रहे कि नियत दिल के इरादे का नाम है न कि ज़बान से दुहराने का.
3. फिर तक्बीर (अल्लाहु अक्बर) कहते हुए रफ़अ़ यदैन करें, यानी दोनों हाथों को कन्धों (सहीह बुखारी ह० 735) या कानों तक उठायें. (सहीह मुस्लिम ह० 865)
4. और अपना दायाँ हाथ अपनी बाएं ज़िराअ़ (हाथ की उंगली से कोहनी तक का हिस्सा) पर रखें. (सहीह बुखारी ह० 740)
5. इसके बाद सना यानी सुब्हाना कल्लाहुम्मा पढ़ें.
6. फिर इमाम एक के बाद एक 7 तक्बीरात (अल्लाहु अक्बर) कहेगा. मुक़्तदी को भी आहिस्ता से तक्बीर कहना है और हर तक्बीर पर रफ़अ़ यदैन करके हाथ बांध लेना है.
7. फिर आम नमाज़ों की तरह क़ियाम, क़िराअत, रुकूअ़ और सुजूद किया जाएगा और इस तरह पहली रकअ़त पूरी होगी.
8. फिर दोनों सजदों के बाद जब दूसरी रकअ़त के लिए खड़े होंगे तो कुछ भी क़िराअत करने से पहले इमाम एक के बाद एक 5 तक्बीरात कहेगा और मुक़्तदी को भी आहिस्ता से तक्बीर कहना है और हर तक्बीर पर रफ़अ़ यदैन करके हाथ बांध लेना है.
ध्यान रहे कि दोनों रकअ़तों में ज़ायद तक्बीरें क़िराअत से पहले कहना है. (इब्ने माजा ह० 1277)
9. फिर आम नमाज़ों की तरह क़ियाम, क़िराअत, रुकूअ़ और सुजूद करके सलाम फेरा जाएगा. इस तरह ईद की नमाज़ मुकम्मल हो जाएगी.
उम्मुल मोमिनीन आइशा रज़ि० से रिवायत है बेशक रसूलुल्लाह ﷺ ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा की नमाज़ की पहली रकअ़त में 7 तक्बीरात कहते और दूसरी रकअ़त में 5 तक्बीरात कहते. (अबू दावूद ह० 1149, इब्ने माजा ह० 1280)
ऐसा ही सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि० और अबू हुरैरह रज़ि० से भी साबित है. (मुवत्ता मालिक ह० 445, मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 2/79, सुनन बैहक़ी 3/288)
नोट: ईद की नमाज़ में बोली जाने वाली हर ज़ायद (ज़्यादा) तक्बीर के साथ रफ़अ़ यदैन करना चाहिए क्योंकि सय्यदना अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ि० कहते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ हर उस तक्बीर में हाथ उठाते जो रुकूअ़ में जाने से पहले कहते, यहाँ तक कि आपकी नमाज़ मुकम्मल हो जाती. (अबू दावूद ह० 722)
नमाज़े ईद में कौन सी सूरह पढ़ना चाहिए? Namaz Eid Me Kaun Si Surah Padhna Chahiye?
नोमान बिन बशीर रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ दोनों ईद और जुमे में “सब्बी हिस्मा रब्बिकल अअला” और “हल अताका हदीसुल ग़ाशियह” की तिलावत किया करते थे और जब ईद और जुमा एक ही दिन पड़ते तब भी दोनों नमाज़ों में इन्हीं की क़िराअत करते थे. (सहीह मुस्लिम ह० 2030)
उबैदुल्लाह बिन उत्बा रज़ि० से रिवायत है कि अबू वाक़िद लैसी रज़ि० ने बताया कि सय्यदना उमर बिन ख़िताब रज़ि० ने मुझसे पूछा कि रसूलुल्लाह ﷺ ने ईद के दिन क्या क़िराअत की थी? मैंने बताया कि “इक़तरबस साअ़” और “क़ाफ़, वल क़ुर्आनिल मजीद”. (सहीह मुस्लिम ह० 2060)
ईदैन के अहकाम और मसाइल | Eidain Ke Ahkaam Aur Masaail
⚫ क्या ईदैन के दिन ग़ुस्ल करना ज़रूरी है? ईदैन के दिन ग़ुस्ल करना मुस्तहब अमल है. हालांकि इस दिन ग़ुस्ल करने के बारे में नबी ﷺ से कुछ भी सहीह हदीस से साबित नहीं है. लेकिन इस बारे में सय्यदना अली रज़ि० का क़ौल (सुनन बैहक़ी 3/278 में) और इब्ने उमर रज़ि० का अमल (मुवत्ता मालिक ह० 438 में) सहीह सनद से मौजूद है.
⚫ क्या सदक़ा फ़ित्र नमाज़ के लिए निकलने से पहले अदा कर देना चाहिए? रसूलुल्लाह ﷺ ने हुक्म फ़रमाया कि ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के लिए घर से निकलने से पहले सदक़ा फ़ित्र अदा किया जाए. (सहीह बुख़ारी ह० 1503, सहीह मुस्लिम ह० 986)
इस हदीस से मालूम हुआ कि ईदगाह जाने के रास्ते में या वहां पहुंच कर सदक़ा फ़ित्र अदा करना सही नहीं है, बल्कि नमाज़े ईद के लिए निकलने से पहले ही अदा कर देना चाहिए.
⚫ ईदगाह की तरफ़ पैदल जाए या सवारी पर? इस मस्अले में सराहत के साथ नबी ﷺ से कोई भी हदीस साबित नहीं है. ईदगाह की तरफ़ पैदल जाने के ताल्लुक़ से कुछ रिवायतें मौजूद हैं लेकिन सारी की सारी ज़ईफ़ हैं. इमाम बुख़ारी रह० ने हदीस न० 957 पर एक बाब (अध्याय, chapter) बनाया है ईद की नमाज़ के लिए पैदल और सवार हो कर जाना. इसलिए ईदगाह की तरफ़ पैदल और सवार हो कर दोनों तरह जाना जायज़ है.
⚫ रसूलुल्लाह ﷺ ईदगाह के लिए एक रास्ते से जाते और दूसरे रास्ते से वापस आते थे. (सहीह बुख़ारी ह० 986)
⚫ ईदैन का ख़ुत्बा कब होगा? ख़ुत्बा नमाज़ के बाद होगा (सहीह बुख़ारी ह० 963)
⚫ क्या ख़ुत्बा सुनना वाजिब है? ख़ुत्बा सुनना वाजिब नहीं बल्कि सुन्नत है. एक बार नबी ﷺ ने ईद की नमाज़ पढ़ाई और फ़रमाया कि जो (ख़ुत्बे के लिए) बैठना चाहे वो बैठे और जो जाना चाहे वो चला जाए. (इब्ने माजा ह० 1290)
⚫ ख़ुत्बे के लिए अलग से मिम्बर का इंतेज़ाम नहीं होगा. रसूलुल्लाह ﷺ मिम्बर के बग़ैर ज़मीन पर खड़े हो कर ईदैन का ख़ुत्बा देते थे. (इब्ने माजा ह० 1288, मुस्नद अहमद 3/31)
⚫ ईदगाह की तरफ़ जाते हुए और वहां पहुंच कर इमाम के आने तक तक्बीरात कहनी चाहिये. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 2/70, मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 5628)
⚫ तक्बीरात के मुताल्लिक़ ख़ुद नबी ﷺ से सहीह सनद से कुछ भी साबित नहीं है. हाँ, सहाबा किराम में से सलमान फ़ारसी रज़ि०, अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि० और सलफुस सालिहीन से सहीह सनद से तक्बीरात के मुख़्तलिफ़ अल्फ़ाज़ साबित हैं. उनमें से कोई भी पढ़ सकते हैं.
⚫ सबसे मशहूर अल्फ़ाज़ ये हैं; (الله اكبر، الله اكبر، لا إله إلا الله و الله اكبر، الله اكبر ولله الحمد) “अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर ला इलाह इल्लल्लाह, वल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द’’.
तर्जुमा: अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह के सिवा कोई इबादत के. लायक़ नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है और तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 2/67 ह० 5649)
वैसे तो यह रिवायत ज़ईफ़ है. लेकिन इन अल्फ़ाज़ को मस्नून समझे बिना इसको पढ़ने में कोई हर्ज नहीं है क्योंकि इसके ज़रिए अल्लाह की बड़ाई बयान करने का मक़्सद पूरा हो जाता है. हालांकि जो अल्फ़ाज़ सहाबा किराम से साबित हैं उनका इस्तेमाल करना अफ़्ज़ल है.
⚫ तक्बीराते ईद की शुरुआत कब होंगी और कब ख़त्म की जाएंगी? ईदुल फ़ित्र में चाँद नज़र आते ही तक्बीराते ईद की शुरुआत हो जायेगी (सूरह बक़रह 2: 180, तफ़्सीर तबरी 3/479). और जब ईदगाह में इमाम पहुँच जाएगा तो तक्बीरात का सिलसिला ख़त्म कर दिया जाएगा. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा 2/70)
ईदुल अज़्हा में तक्बीरात की शुरुआत कब की जाये, इस बारे में नबी ﷺ से कोई भी सहीह हदीस साबित नहीं है. सय्यदना अली रज़ि० (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा) और इब्ने अब्बास रज़ि० (मुस्तदरक हाकिम 1/299) से सहीह सनद से क़ौल मिलते हैं जिससे पता चलता है कि इसकी शुरुआत नौ ज़ुल हिज्जा को फ़ज्र से होगी और ख़ात्मा मिना के आख़िरी दिन (तेरह ज़ुल हिज्जा) की अस्र में होगा.
⚫ क्या औरतें भी ईदगाह जा सकती हैं? ईदगाह में औरतों की शिरकत लाज़िमी है, अगर वो हैज़ या निफ़ास के दिन गुज़ार रही हों तब भी. हैज़ या निफ़ास वाली औरतें नमाज़ से दूर रहें लेकिन दुआ, तक्बीरात और ख़ुत्बा में ज़रूर शिरकत करें. (सहीह बुख़ारी ह० 974, सहीह मुस्लिम ह० 2056)
⚫ क्या ईदगाह में नमाज़ से पहले या बाद में नफ़्लें पढ़ी जा सकती हैं? ईदगाह में नमाज़े ईद से पहले या बाद में नफ़्लें पढ़ना दुरुस्त नहीं है. सय्यदना इब्ने अब्बास रज़ि० बयान करते हैं कि बेशक रसूलुल्लाह ﷺ ने ईदगाह में ईद की दो रकअ़तों के अलावा न पहले कोई नफ़्ल पढ़ी न बाद में. (सहीह बुख़ारी ह० 964, 989, सहीह मुस्लिम ह० 884)
⚫ ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के लिए जाने से पहले ताक़ (यानी एक, तीन, पाँच वग़ैरह) खजूर खाना सुन्नत है. (सहीह बुख़ारी ह० 963)
⚫ ईदुल अज़्हा के दिन नमाज़ के बाद खाना सुन्नत है. बेहतर यह है कि क़ुर्बानी के गोश्त में से खाया जाए. (सुनन तिर्मिज़ी ह० 542, इब्ने माजा ह० 1756)
⚫ लेकिन ईदुल अज़्हा के दिन नमाज़ से पहले खाना मना नहीं है. एक सहाबी ने नमाज़ से पहले क़ुर्बानी की और उसका गोश्त खा कर नमाज़ अदा की. जब आप ﷺ को इसकी ख़बर हुई तो आप ﷺ ने उनको क़ुर्बानी दुबारा करने का हुक्म दिया लेकिन नमाज़ से पहले खाने से मना नहीं किया. (सहीह बुख़ारी ह० 955)
⚫ ईद की नमाज़ के बाद ईद की मुबारकबाद कैसे दी जाए? मुबारकबाद के अल्फ़ाज़ के बारे में नबी से कुछ भी साबित नहीं है. लेकिन जुबैर बिन नुफ़ैर रह० बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ के सहाबा किराम ईद के दिन एक दूसरे से मुलाक़ात करते तो ये अल्फ़ाज़ कहते تَقَبَّلَ اللّهُ مِنَّ وَ مِنْكُ तक़ब बलल्लाहु मिन्ना व मिन्क .
तर्जुमा: अल्लाह हमारे और आपके लिए (यह इबादत) क़ुबूल फ़रमाए. (सलातुल ईदैन लिल महामिली 2/218 ह० 147, तारीख़ दिमश्क़ 24/154)
⚫ जब ईद और जुमा एक दिन आ जाये तो जिस शख़्स ने ईद पढ़ ली हो उस पर जुमा वाजिब नहीं रहता. वह जुमे की बजाए अकेले ज़ुहर की नमाज़ पढ़ सकता है. (अबू दावूद ह० 1070, 1071)
⚫ अगर चाँद दिखने की ख़बर इतनी देर में मिले कि उस दिन नमाज़ पढ़ना मुम्किन न हो तो उस दिन का रोज़ा तोड़ कर नमाज़ अगले दिन पढ़ी जाएगी. एक क़ाफ़िला रसूलुल्लाह ﷺ के पास आया. उन्होंने इस बात की गवाही दी कि उन्होंने कल चांद देखा था. आप ﷺ ने सहाबा किराम रज़ि० को हुक्म दिया कि वह रोज़ा इफ़्तार कर दे और कल सुबह ईदगाह की तरफ़ निकल आएं. (अबू दावूद ह० 1157)
तो यह था ईद की नमाज़ का तरीक़ा और उससे जुड़े कई अहम मसाइल. उम्मीद है कि आप हज़रात को यह मज़मून अच्छा लगा होगा. अगर कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट में पूछ सकते हैं.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.