हदीस आने के बाद 'अगर मगर' | Hadees Ane Ke Bad Agar-Magar - Muttaqi
इस्लाह

हदीस आने के बाद ‘अगर मगर’ | Hadees Ane Ke Bad Agar-Magar

بسم الله والحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله

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सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि0) से  किसी ने पूछा कि आदमी जब तवाफ़ कर रहा होता है तो हज्र-ए-अस्वद को चूमना चाहिए या इशारा करना चाहिए? यानी इस्तिलाम करना चाहिए.( इस्तिलाम के दो मानी हो सकते हैं; हाथ लगाना और इशारा करना)

सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर (र०) ने फ़रमाया
رَاَیتُ رَسُوْلَ اللہ ﷺ یسْتَلِمُہُ وَیقَبِّلُہُ
मैंने देखा कि नबी ﷺ हज्र-ए-अस्वद को चूमते भी थे और हज्र-ए-अस्वद की तरफ़ इशारा भी करते थे. (यानी इस्तिलाम भी करते थे).

वह आदमी कहने लगा
أَرَأَيْتَ إِنْ زُحِمْتَ؟
ऐ अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि0)! आपका क्या ख़्याल है कि अगर भीड़, हुजूम हो जाये तो क्या करें?

तो अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि0) फ़रमाते हैं;
إِجْعَلْ أَرَأَيْتَ بِالْيَمَنِ
यह ”अगर मगर’ को दफ़ा करो. इसको यमन में छोड़ दो (शायद इसलिए कि वह शख्स यमन का था). (यानी यहां अगर मगर नहीं चलेगा और हदीस के मुक़ाबले में अगर मगर नहीं है)
رَاَیتُ رَسُوْلَ اللہ ﷺ یسْتَلِمُہُ وَیقَبِّلُہُ
मैंने देखा है कि नबी करीम ﷺ हज्र-ए-अस्वद को चूमते भी थे और इशारा भी करते थे.
(सहीह बुख़ारी ह# 1611)

यह है सहाबा किराम (रज़ि0) के ईमान का दर्जा और जज़्बा, और यही वजह है कि अल्लाह ने उन्हें सर्टीफ़िकेट दिया है,
 لَقَدْ رَضِيَ اللہُ عَنْھُم وَرَضُوْا عَنْہُ
अल्लाह उनसे राज़ी वो अल्लाह से राज़ी.

जज़ाकल्लाह ख़ैर.

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