नबी ﷺ का हाज़िर और नाज़िर होना | Nabi Ka Hazir Aur Nazir Hona - Muttaqi
अक़ीदा

नबी ﷺ का हाज़िर और नाज़िर होना | Nabi Ka Hazir Aur Nazir Hona

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अहले सुन्नत वल जमाअ़त के क़ुर्आन और सुन्नत के मुवाफ़िक़ इत्तिफ़ाक़ी अक़ीदे को छोड़ते हुए कुछ लोगों ने नबी ﷺ के हाज़िर और नाज़िर होने (nabi ka hazir aur nazir hona) का अक़ीदा गढ़ रखा है.

इस अक़ीदे के मुताबिक़ नबी अकरम ﷺ वफ़ात के बाद अपने जिस्म के साथ मदीना मुनव्वरा में अपनी क़ब्र में तशरीफ़ फ़रमां हैं और तमाम कायनात आप ﷺ के सामने हाज़िर है जिसे आप ﷺ मुलाहिज़ा फ़रमां रहे हैं. आप ﷺ जब चाहें, जहाँ चाहें तशरीफ़ ले जा सकते हैं. आप ﷺ एक वक़्त में कई जगहों पर एक साथ तशरीफ़ ले जाना चाहें तो यह भी मुम्किन है.

यह अक़ीदा सहाबा किराम रज़ि०, चारों इमाम और मुहद्दीसीन से बिलकुल साबित नहीं है. बल्कि अक़ीदे पर लिखी गयी सबसे पहली किताबों में से एक, अकीद तुत तहाविया जो इमाम तहावी रह० की लिखी हुई है, उसमें भी ऐसा कोई अक़ीदा नहीं मिलता. इसी तरह इमाम इब्ने तैमिया रह० की अकीद तुल वासितिया में भी ऐसा कोई अक़ीदा नहीं है.

इस बातिल अक़ीदे के ख़िलाफ़ हम बहुत मुख्तसर अंदाज़ में क़ुर्आन और हदीसी दलायल ज़िक्र कर रहे हैं. आप हज़रात तास्सुब से दूर रह कर मुताला फ़रमाएं.

क़ुर्आनी दलाएल | Qur’ani Dalaail

“ये बातें ग़ैब (परोक्ष) की ख़बरों में से हैं जो हम आपके पास वह़्य (प्रकाशना) भेज रहे हैं. और आप (ऐ नबी ﷺ!) उस वक़्त उनके पास नहीं थे, जब वो अपनी क़लमों को (क़ुरआ, गुटिया के तौर पर) फेंक रहे थे कि उनमें कौन मरयम अ० की परवरिश करेगा, और न ही आप उस वक़्त उनके पास थे जब वो झगड़ रहे थे.” (आल-ए-इमरान 3: 44)
➤ इस आयत-ए-करीमा की तफ़्सीर में मशहूर सुन्नी मुफ़स्सिर हाफ़िज़ इब्ने कसीर रह० (701-774 हि०) फ़रमाते हैं:

مَا کُنْتَ عِنْدَہُمْ یَا مُحَمَّدُ فَتُخْبِرَہُمْ عَنْہُمْ مُعَایِنَۃً عَمَّا جَرٰی، بَلْ أَطْلَعَکَ اللّٰہُ عَلٰی ذٰلِکَ کَأَنَّکَ کُنْتَ حَاضِرًا وَّشَاہِدًا لِّمَا کَانَ مِنْ أَمْرِہِمْ، حِینَ اقْتَرَعُوا فِي شَأْنِ مَرْیَمَ أَیُّہُمْ یَکْفُلُہَا

”यानी ऐ मुहम्मद ﷺ! आप उनके पास नहीं थे कि उनके बारे में इस वाक़्ये का आँखों देखा हाल बयान करते. बल्कि अल्लाह तआ़ला ने आपको इस बारे में यूं इत्तिला दी कि जैसे आप मरयम अ० के  मामले में उनकी क़ुरआ अंदाज़ी में हाज़िर और चश्मदीद गवाह थे. (तफ़्सीर इब्ने कसीर 2/42)

”और (ऐ नबी ﷺ!  तूर पहाड़ के) पश्चिम की तरफ़ जबकि हमने मूसा अ० को हुक्म की वह़्य (प्रकाशना) पहुंचाई थी, न तो आप मौजूद थे और न आप देख रहे थे. (अल क़सस 28: 44)
➤ हाफ़िज़ इब्ने कसीर रह० इस आयत की तफ़्सीर में फ़रमाते हैं:

مَا کُنْتَ حَاضِرًا لِّذٰلِکَ، وَلٰکِنَّ اللّٰہَ أَوْحَاہُ إِلَیْکَ

”यानी (ऐ नबी ﷺ!) आप इस वाक़्ये के वक़्त हाज़िर न थे बल्कि अल्लाह ने वही के ज़रिए आपको उसकी ख़बर दी है. (तफ़्सीर इब्ने कसीर 6/240)

”और न आप तूर की तरफ़ थे जब कि हमने आवाज़ दी. बल्कि (यह ख़बर) आपके परवरदिगार की तरफ़ से एक रहमत है. इसलिए कि आप उन लोगों को होशियार कर दें जिनके पास आपसे पहले कोई डराने वाला नहीं पहुंचा, ताकि वो नसीहत हासिल कर लें. (अल क़सस 28: 46)

”और (ऐ नबी ﷺ!) न आप मदयन के रहने वालों में से थे कि उनके सामने हमारी आयतों की तिलावत करते, बल्कि हम ही रसूलों के भेजने वाले हैं. (अल क़सस 28: 45)

”(ऐ नबी ﷺ कह दीजिए कि) मुझे उन बुलंद क़द्र फ़रिश्तों (की बातचीत का) कोई इल्म ही नहीं जबकि वो झगड़ रहे थे. (साद 38: 69)

”ये बातें ग़ैब की ख़बरों में से हैं जिसकी हम आपकी तरफ़ वही कर रहे हैं. आप उनके पास न थे जब कि उन्होंने अपनी बात ठान ली थी और वो फ़रेब करने लगे थे. (यूसुफ़ 12: 102)
सुन्नी इमाम और मुफ़स्सिर इब्ने जरीर तबरी रह० (224-310 हि०) इस आयत की तफ़्सीर में लिखते हैं:

یَقُولُ: وَمَا کُنْتَ حَاضِرًا عِنْدَ إِخْوَۃِ یُوسُفَ، إِذْ أَجْمَعُوا، وَاتَّفَقَتْ آرَاؤُہُمْ، وَصَحَّتْ عَزَائِمُہُمْ عَلٰی أَنْ یُلْقُوا یُوسُفَ فِی غَیَابَۃِ الْجُبِّ

”अल्लाह तआ़ला फ़रमा रहा है कि (ऐ नबी ﷺ!) आप उस वक़्त यूसुफ़ अ० के भाइयों के पास हाज़िर नहीं थे जब उन्होंने यूसुफ़ अ० को गहरे कुएँ में फेंकने का पूरा इरादा कर लिया था और इस बारे में उनकी राय मुत्तफ़िक़ हो गई थी और उनके इरादे पुख़्ता हो गए थे. (तफ़्सीर तबरी 13/98)

हदीसों से दलाएल | Hadees Se Dalaail

सय्यदा आइशा रज़ि० का बयान है ”एक रात मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को गुम पाया. मैंने समझा कि आप किसी बीवी के घर चले गए होंगे तो मैंने तलाश किया…. (सहीह मुस्लिम ह० 1089)

सय्यदा आइशा रज़ि० का बयान है ”एक रात मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को बिस्तर पर नहीं पाया तो उनको तलाश करने लगी……… (सहीह मुस्लिम ह० 1090)
अंदाज़ा लगाइए कि आप की चहेती बीवी अपने घर और बिस्तर पर नबी को उनकी हयात में नहीं ढूंढ पा रही हैं तो बाक़ी लोगों का आप की वफ़ात के बाद उनको हाज़िर समझना कितनी बेवकू़फ़ाना बात है!

सय्यदना अबू हुरैरह रज़ि० बयान करते हैं: ”वह मदीना मुनव्वरा के एक रास्ते में नबी अकरम ﷺ से मिले. उस वक़्त वह जनाबत (नापाकी) की हालत में थे, लिहाज़ा चुपके से खिसक गए और जा कर ग़ुस्ल किया. नबी अकरम  ﷺ ने उन्हें तलाश किया. जब वह आए तो आप ﷺ ने फ़रमाया: अबू हुरैरह! आप कहाँ थे? (सहीह मुस्लिम ह० 824)

सय्यदना अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद फ़रमाते हैं कि हम एक रात रसूलुल्लाह ﷺ के साथ थे. अचानक आप ﷺ कहीं गुम हो गए. हमने आपको वादियों और घाटियों में तलाश किया…. (सहीह मुस्लिम ह० 1007)

नबी अकरम ﷺ ने फ़रमाया: ”अबू बक्र रज़ि० मेरे पास आए और कहने लगे, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! आप कहाँ थे? मैंने आपको आपके घर में तलाश किया था. मैंने कहा क्या: “क्या आपको मालूम है कि मैं आज रात बैतुल-मक़दिस गया था?” (मोअजम अल-कबीर तबरानी 7/283 ह० 7142, मुस्नद अल बज़्ज़ार 3484, दलायलुन नुबूव्वा बैहक़ी 2/107-109)

जंग उहुद के मौक़ा पर रसूल-ए-अकरम ﷺ ने सय्यदना साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि० से फ़रमाया !أَیْنَ کُنْتَ الْیَوْمَ یَا سَعْدُ
”साद आज आप कहाँ थे?” (मुस्तदरक हाकिम 3/26 ह० 4314 – सनद हसन)

सय्यदना मुग़ीरह बिन शोबा रज़ि० का बयान है: “मैं नबी अकरम ﷺ के साथ एक सफ़र में था. आप ﷺ ने फ़रमाया: ऐ मुग़ीरह! (पानी वाला) बर्तन पकड़ो. मैंने बर्तन पकड़ लिया. फिर आप ﷺ चलते गए यहाँ तक कि मुझसे छिप गए और क़ज़ा-ए-हाजत (पेशाब-पाख़ाना) से फ़ारिग़ हुए. (सहीह बुख़ारी ह० 363, सहीह मुस्लिम ह० 629)
◆ क्या जो शख़्स दूसरों से इतना दूर हो जाये कि उनकी आँखों से ओझल हो जाये, वह हर जगह हाज़िरो नाज़िर हो सकता है?

हज़रात !आप इन क़ुर्आनी आयात-ए-मुबारका और सहीह अहादीस-ए-नबवी पर ग़ौर करें और ख़ुद फ़ैसला करें कि रसूलुल्लाह ﷺ के हाज़िर और नाज़िर होने का अक़ीदा क़ुर्आन और सुन्नत के मुवाफ़िक़ है या मुख़ालिफ़?

अल्लाह ने ख़ुद आप ﷺ के मुख़्तलिफ़ जगहों पर मौजूद न होने की बात की है. इसी तरह ख़ुद रसूल-ए-अकरम ﷺ सहाबा किराम रज़ि० से सवाल फ़रमाते थे कि ‘أَیْنَ کُنْتَ؟ (आप कहाँ थे)? सहाबा किराम रज़ि० भी आप ﷺ से पूछ लेते थे कि ‘أَیْنَ کُنْتَ؟ (आप कहाँ थे)? अगर नबी अकरम ﷺ हर जगह हाज़िर और नाज़िर होते तो आप ﷺ को और सहाबा किराम को यह जुमला कहने की क्या ज़रूरत थी!

फिर हाज़िर- नाज़िर का अक़ीदा रखने वाले यही हज़रात इल्म-ए-ग़ैब का अक़ीदा भी रखते हैं. भला जो किसी जगह मौजूद हो, वहां की बात उसके लिए ग़ैब कैसे हुई! और अगर इल्म-ए-ग़ैब था तो यह पूछने की क्या ज़रूरत थी कि आप कहाँ थे?

इल्म और अक़्ल का क्या तक़ाज़ा है? क़ुर्आन और हदीस किस तरफ़ रहनुमाई करते हैं? हक़ और इन्साफ़ की पुकार क्या है? फ़ैसला आप पर है!!!

अक़ीदा हाज़िर-ओ-नाज़िर पर एक आयत से इस्तिदलाल | Aqeeda Hazir-O-Nazir Par Ek Ayat Se Istidalal

कुछ लोग नबी करीम ﷺ के हर जगह हाज़िर-नाज़िर होने पर एक आयत पेश करते हैं:

“(ऐ नबी!) क्या आप जानते हैं कि आपके रब ने हाथी वालों का क्या हश्र किया?” (अल फ़ील: 1)

रुइयत (देखना) दो तरह की होती है, बसरी (यानी आँखों के ज़रिए) और इल्मी (यानी इल्म के ज़रिए). ऊपर वाली आयत में मुराद रुइयत इल्मी है. यानी अल्लाह तआ़ला, नबी ﷺ को उस वाक़्ये की इत्तिला दे रहे हैं. जबकि कुछ लोग इस आयत में रुइयत बसरी मुराद लेते हैं और यह एहसास कराने की कोशिश करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने हाथी वालों की हलाकत का आँखों देखा हाल बयान किया है. यह क़ुर्आन के माना और मफ़्हूम में वाज़ेह तब्दीली है.

इमाम बुख़ारी रह०, सहीह बुख़ारी हदीस न० 4700 से पहले लिखते हैं: “अलम तरा (क्या तुमने नहीं देखा) का माना अलम तअ़़लम  (क्या तुमने नहीं जाना) है. जैसे अलम तरा कइफ़ा, अलम तरा इलल लज़ीन ख़रजू में है.”
लिहाज़ा इस आयत में भी रुइयत इल्मी मुराद है,

❖ अब ज़रा इस फ़रमान बारी तआ़ला पर भी ग़ौर कीजिए.
اَوَ لَمۡ یَرَ الۡاِنۡسَانُ  اَنَّا خَلَقۡنٰہُ مِنۡ نُّطۡفَۃٍ  فَاِذَا ہُوَ  خَصِیۡمٌ  مُّبِیۡنٌ

“क्या इन्सान जानता नहीं कि हमने उसे एक नुत्फ़े (वीर्य) से पैदा किया है और अब वह खुल्लम खुल्ला झगड़ता फिर रहा है?” (यासीन: 77) क्या कोई इस आयत में یَرَ यर का माना देखना कर सकता है? यक़ीनन यहां रुइयत इल्मी मुराद है.

❖ एक और आयत देखिए;
اَلَمۡ یَرَوۡا کَمۡ اَہۡلَکۡنَا مِنۡ قَبۡلِہِمۡ مِّنۡ قَرۡنٍ

“क्या वो (कुफ़्फ़ार) जानते नहीं कि हमने उनसे पहले कितनी क़ौमों को हलाक किया?” (अल अनआ़म: 6).

क्या इस आयत में भी रुइयत बसरी ही मुराद ली जाएगी? कोई है, जो यहां भी रुइयत बसरी मुराद लेकर कुफ़्फ़ार मक्का के हर जगह हाज़िर-ओ-नाज़िर होने का अक़ीदा पेश करेगा?

इस जैसी और बहुत सी आयात मौजूद हैं, हर आयत में रुइयत इल्मी ही मुराद है. हमारी अपील है कि आप किताब-ओ-सुन्नत के ख़िलाफ़ और इन्सानी अक़्ल से दूर, अक़ीदा हाज़िर-ओ-नाज़िर को छोड़ कर सही इस्लामी अक़ीदे को इख़्तियार कर लें ताकि अइम्मा अहले सुन्नत की मुख़ालिफ़त लाज़िम ना आए.

अल्लाह तआ़ला हमें हक़ को समझने और इसी पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन

यह मज़मून मुहद्दिस ग़ुलाम मुस्तफ़ा ज़हीर हफ़िज़हुल्लाह के 2 मज़ामीन का मुख़्तसर अंदाज़ है.

http://mazameen.ahlesunnatpk.com/masla-hazir-o-nazir

http://mazameen.ahlesunnatpk.com/gum-paya/

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