मुकम्मल नमाज़ का तरीक़ा | Namaz Ka Tarika Complete
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﷽
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नमाज़ सबसे अफ्ज़ल इबादत है. ईमान लाने के बाद सबसे पहली चीज़ जो फ़र्ज़ होती है वह नमाज़ है. आख़िरत के मैदान में सबसे पहला सवाल नमाज़ का ही होगा. इसलिए हमारे लिए नमाज़ का सही तरीक़े से पढ़ना बहुत ज़रूरी है. आइये देखते हैं कि अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ हमारे नबी ﷺ की मुकम्मल नमाज़ का सही तरीक़ा (Namaz Ka Tarika) क्या है. इंशाअल्लाह.
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते हुए देखते हो.” (बुख़ारी ह० 631)
सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ का तरीक़ा | Sunnat Ke Mutabiq Namaz Ka Tarika
नमाज़ के कई अरकान हैं. हम तफसील से हवालों के साथ रसूलुल्लाह ﷺ की नमाज़ का पूरा तरीक़ा देखेंगे. हर रुक्न के साथ उसका पूरा हवाला दिया गया है ताकि जो हज़रात तहक़ीक़ करना चाहे तो उनके लिए आसानी रहेगी. इंशाअल्लाह.
क़ियाम का सुन्नत तरीक़ा | Qiyam Ka Sunnat Tarika
❖ हर अमल की तरह नमाज़ के लिए भी नियत ज़रूरी है. नियत दिल के इरादे का नाम है. नमाज़ शुरु करते वक़्त ज़बान से नियत करना रसूलुल्लाह ﷺ या किसी भी सहाबी (रज़ि०) से साबित नहीं है. इसके अलावा चारों इमामों से भी किसी से इसका सुबूत नहीं मिलता. लिहाज़ा ऐसा करना बिदअ़त है.
(यह भी पढ़िए: नियत के बारे में हमारे बुज़ुर्गाने दीन क्या कहते हैं?)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके रफ़अ़ यदैन (दोनों हाथ उठाया) करते और फ़रमाते ‘अल्लाहु अक्बर’ (इब्ने माजा ह० 803)
सहाबा किराम बा-जमाअ़त नमाज़ में दूसरे के कंधे से कन्धा और टख़ने से टख़ना मिलते थे. (अबू दावूद ह० 662)
❖ रफ़अ़ यदैन करते वक़्त आप ﷺअपने दोनों हाथ कंधों तक उठाते, (बुख़ारी ह० 736, मुस्लिम ह० 861)
और कभी कभी कानों तक भी उठाते थे. (मुस्लिम ह० 865)
लिहाज़ा दोनों तरीक़े जायज़ हैं, लेकिन रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों से कानों को छूना या पकड़ना किसी भी सहीह हदीस से साबित नहीं है.
❖ फिर आप ﷺ अपना दायां हाथ बाएं हाथ पर रखते थे.
❖ लोगों को (रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ़ से) यह हुक्म दिया जाता था कि नमाज़ में दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर रखें. (बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता इमाम मालिक ह० 377)
ज़िराअ़: कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]
❖ सय्यिदना वाइल इब्ने हुज्र (रज़ि०) फ़रमाते हैं “फिर आप ﷺ ने अपना दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर रखा.” (अबू दावूद ह० 727, नसाई ह० 890)
साअ़द: कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 769]
❖ फिर आप ﷺ आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ते. (मुस्लिम ह० 892, अबू दावूद ह० 775, नसाई ह० 900)
❖ फिर आप ﷺ ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ (बुख़ारी ह० 6115, मुस्लिम ह० 6646, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589) और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ते. (नसाई ह० 906, सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा ह० 499)
❖ फिर आप ﷺ सूरह फ़ातिहा पढ़ते. (बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892)
रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते थे “जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.” (बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874)
और यह भी फ़रमाते “इमाम के पीछे क़िराअत मत किया करो सिवाय सूरह फ़ातिहा के क्योंकि जो सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.” (अबू दावूद ह० 823, तिरमिज़ी ह० 311)
❖ आप ﷺ जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहते थे. (अबू दावूद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 )
❖ फिर आप ﷺ कोई सूरह पढ़ते और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ते. (मुस्लिम ह० 894)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ (4 रकअ़त फ़र्ज़ की) पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरह भी या क़ुर्आन का कुछ हिस्सा पढ़ते (बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दावूद ह० 859)
❖ और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ते और कभी कभी कोई सूरह भी मिला लेते थे. (बुख़ारी ह० 776, मुस्लिम ह० 1013, 1014)
नोट: रसूलुल्लाह ﷺ क़िराअत के बाद रुकूअ़ से पहले ‘सकता’ (यानी कुछ देर के लिए वक्फ़ा) भी फ़रमाया करते थे. (अबू दावूद ह० 777, 778, इब्ने माजा ह० 845)
रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा | Rukoo Ka Sunnat Tarika
❖ फिर रसूलुल्लाह ﷺ रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहते और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ते और अपनी कमर झुकाते और अपनी उंगलियां खोल लेते थे. (बुख़ारी ह० 828, अबू दावूद 731)
❖ आपका ﷺ सर न तो पीठ से ऊंचा होता और न नीचा, बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर होता (अबू दावूद ह० 730)
❖ और दोनों हाथ अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखते. (अबू दावूद ह०734)
❖ आप ﷺ रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ने का हुक्म देते थे. (मुस्लिम ह० 1814, अबू दावूद ह० 869)
❖ इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए. (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 2571)
(इसके साथ साथ और भी कई अज़्कार जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़े जा सकते हैं)
क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा | Qauma Ka Sunnat Tarika
रुकूअ़ के बाद खड़े होने की हालत को क़ौमा कहते हैं.
❖ फिर जब आप ﷺ रुकूअ़ से सर उठाते तो कहते ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हामिदह, रब्बना लकल हम्द’ (बुख़ारी ह० 789)
‘(इसके अलावा और भी कई अज़्कार, जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़े जा सकते हैं)
❖ एक बार रसूलुल्लाह ﷺ के पीछे एक शख्स़ ने पढ़ा ‘रब्बना वलकल हम्द, हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह ’ तो इस पर आप ﷺ ने फ़रमाया “मैंने 30 से ज़्यादा फ़रिश्तों को इसका सवाब लिखने में जल्दी करते और एक दूसरे से सब्क़त लेते हुए देखा.” (बुख़ारी ह० 799)
(यानी ये अलफ़ाज़ पढ़ना बेहतर है और सवाब का ज़रिया है)
सज्दा का सुन्नत तरीक़ा | Sajda Ka Sunnat Tarika
❖ फिर आप ﷺ तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकते थे. आप ﷺ फ़रमाते थे “मुझे 7 हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म दिया गया है, पेशानी (माथा) और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर.” (बुख़ारी ह० 812)
❖ और फ़रमाते कि “जब तुम सज्दा करो तो ऊंट की तरह न बैठो (बल्कि) अपने दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखो.” (अबू दावूद ह० 840)
नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी अहादीस ज़ईफ़ हैं. (देखिये अबू दावूद ह० 838)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखते, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर करते और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन) पर रखते थे. (अबू दावूद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105)
❖ सर को दोनों हाथों के बीच रखते (अबू दावूद ह०726)
❖ और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाते. (नसाई ह० 890)
❖ और हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखते और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखते. (सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227)
❖ आप ﷺ सज्दे में अपने हाथ (ज़मीन) पर रखते तो न तो उन्हें बिछाते और न बहुत समेटते और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखते. (बुख़ारी ह० 828)
❖ आप ﷺ ने फ़रमाया कि “सज्दे में एतदाल करो और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाओ.” (बुख़ारी ह० 822)
(इस हदीस के तहत औरतें भी आती हैं कि वो भी सज्दे में बाज़ू न बिछाए क्योंकि मर्दों और औरतों की नमाज़ के तरीक़े में कोई फ़र्क़ नहीं है और इस बारे में जो भी रिवायात पेश की जाती हैं वो सख्त़ ज़ईफ़ हैं )
❖ आप ﷺ सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेते (सुनन बैहक़ी 2/116, सहीह इब्ने खुज़ैमा ह० 654)
और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेते. (नसाई ह० 1102)
नोट: रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” (सुनन दार क़ुत्नी 1/348)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ सजदों में यह दुआ पढ़ने का हुक्म देते थे ‘सुब्हाना रब्बियल आला’ (मुस्लिम ह० 1814, अबू दावूद ह० 869)
इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए (मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबा ह० 2571)
(इसके साथ साथ और भी कई अज़्कार जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़े जा सकते हैं)
जलसा का सुन्नत तरीक़ा | Jalsa Ka Sunnat Tarika
सजदे के बाद बैठने की हालत को जलसा कहते हैं.
❖ रसूलुल्लाह ﷺ तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाते और दायां पांव खड़ा कर और बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाया करते थे. (बुख़ारी ह० 827, अबू दावूद ह० 730)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ते थे ‘रब्बिग़ फ़िरली रब्बिग़ फ़िरली ’ (अबू दावूद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्ने माजा ह० 897)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठते और इसको न सिर्फ़ नमाज़ के सुकून का हिस्सा क़रार देते बल्कि इसका हुक्म भी फ़रमाते थे. (बुख़ारी ह० 757) (इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथों के सहारे खड़े होते थे. (बुख़ारी ह० 823, 824)
तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा | Tashahhud Ka Sunnat Tarika
❖ रसूलुल्लाह ﷺ जब भी तशह्हुद के लिए बैठते तो अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर रखते और कभी-कभी घुटनों पर भी रखते थे. (मुस्लिम ह० 1308, 1310)
❖ फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा (circle) बना लेते. आप ﷺ अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका देते और उंगली से इशारा करते हुए उसके साथ तशह्हुद में दुआ करते, (मुस्लिम ह० 1308, अबू दावूद ह० 991, इब्ने माजा ह० 912)
❖ और उंगली को (आहिस्ता-आहिस्ता ) हरकत भी देते और उसकी तरफ़ देखते रहते थे. (नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्ने माजा ह० 912)
नोट: ‘ला इलाह ’ पर उंगली उठाना और ‘इल्लल्लाह ’ पर झुका देना किसी भी हदीस से साबित नहीं है. इसके ख़िलाफ़ सहीह अहादीस से यह साबित हुआ कि पूरे तशह्हुद में हल्क़ा बना कर शहादत की उंगली को हरकत देते रहना चाहिए.
❖ पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना जायज़ अमल है (नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204) लेकिन अगर कोई सिर्फ़‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाए तो यह भी दुरुस्त है जैसा कि अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद (रज़ि०) की रिवायत से पता चलता है. (मुस्नद अहमद ह० 4382)
❖ रसूलुल्लाह ﷺ आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाते और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेते. (बुख़ारी ह० 828, अबू दावूद ह० 730) (इसको तवर्रुक कहते हैं )
❖ तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना चाहिए. (बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908)
❖ दुरूद के बाद जो दुआएं सहीह अहादीस और क़ुर्आन से साबित हैं, पढ़ना चाहिए. (बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897)
❖ इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना चाहिए. (बुख़ारी ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295)
नोट: फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सर पर हाथ रख कर दुआ,अज़्कार पढ़ने का सुबूत किसी भी सहीह हदीस से नहीं है. इससे मुताल्लिक़ जो हदीस पेश की जाती है वो ज़ईफ़ है.
तो यह था अल्लाह के हबीब ﷺ का नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा (namaz ka tarika) जो सहीह हदीसों से साबित है. हमें भी इसी तरीक़े से नमाज़ पढ़ना चाहिए ताकि अल्लाह के यहाँ क़ुबूल हो.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.