तयम्मुम का तरीक़ा | Tayammum Ka Tarika
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नापाकी से पाकी हासिल करने का एक तरीक़ा तयम्मुम है. तय्यम्मुम भी उसी की एक मिसाल है. नापाकी से पाकी हासिल करने का एक तरीक़ा तय्यम्मुम है. इस पोस्ट में हम अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ तयम्मुम का तरीक़ा (Tayammum Ka Tarika), इसकी शुरुआत इस्लाम में कैसे हुई, इसकी इजाज़त कब है, वग़ैरह के बारे में जानेंगे. इंशाअल्लाह.
तयम्मुम का माना | Tayammum Meaning
तयम्मुम का लफ़्ज़ी माना है, इरादा करना जैसा कि क़ुर्आन मजीद में है;
وَلَا تَيَمَّمُوا۟ ٱلْخَبِيثَ مِنْهُ تُنفِقُونَ
“और इनमें से बुरी चीज़ों के ख़र्च करने का इरादा न करना.” (सूरह बक़रह: 267)
अल्लाह ने दीन में काफ़ी आसानी रखी है. तहारत के सिलसिले में भी अल्लाह ने ईमान वालों के लिए एक आसानी कर दी है. वह यह कि अगर पानी न मिले तो वुजू या गुस्ल की नीयत करके ख़ास तरीक़े से पाक मिट्टी कै साथ चेहरे और दोनों हाथों का मसह करना ही तहारत के लिए काफ़ी है. इसी को तयम्मुम कहते है.
तयम्मुम की इजाज़त कब है? Tayammum Ki Ijazat Kab Hai?
तयम्मुम कई हालात में जायज़ है. कुछ आम सूरतें ये हैं जिनमें तयम्मुम की इजाज़त है:
⚫ जब यह ख़ौफ़ हो कि कोई दुश्मन या ख़तरनाक जानवर पानी के क़रीब है.
⚫ घर में पानी नहीं है और बाहर कर्फ्यू लगा है.
⚫ पानी सिर्फ़ इतना हो जो सिर्फ़ पीने के लिए ही काफ़ी हो.
⚫ जब पानी का इस्तिमाल आपकी सेहत के लिए ख़तरनाक हो.
⚫ जब कुंए/नदी से पानी निकालने का कोई ज़रिया न हो (पानी निकालने के लिए रस्सी या बाल्टी न हो)
⚫ जब आपके पास पानी ख़रीदने के लिए इतने पैसे न हों जितने में बेचा जा रहा है.
⚫ मुसाफ़िर को सफ़र में पानी न मिले या पानी के मक़ाम तक पहुंचने पर नमाज़ के चले जाने का ख़तरा हो.
⚫ जब पानी का नामो निशान न हो और कोई बताने वाला न हो कि पानी कहाँ से मिलेगा.
तयम्मुम की शुरूआत कैसे हुई? | Tayammum Ki Shuruat Kaise Hui?
उम्मुल मोमिनीन आइशा (रज़ि०) से रिवायत है कि “हम रसूलुल्लाह ﷺ के साथ सफ़र पर निकले. जब बैदा या ज़ाते अल हबीश तक पहुंचे तो मेरे गले का हार टूट कर गिर गया, रसूलुल्लाह ﷺ उसको ढूँढने के लिए ठहर गए, लोग भी ठहर गए. वहां पानी न था, अबू बक्र (रज़ि०) मेरे पास आए. उन्होंने गुस्सा किया और मुझे बुरा भला कहा.
रसूलुल्लाह ﷺ मेरी रान (thigh) पर सिर रख कर सोते रहे यहां तक कि सुबह हो गई और पानी बिल्कुल न था. जब अल्लाह तआला ने तयम्मुम की आयत नाज़िल फरमाई तो सय्यदना असीद बिन ख़ज़ीर अंसारी (रज़ि०) कहने लगे ‘ऐ अबू बक्र की औलाद! यह तुम्हारी पहली बरकत नहीं है (यानी इससे पहले भी तुम्हारी वजह से अल्लाह तआ़ला ने मुसलमानों को फ़ायदा दिया).’ फिर हमने ऊँट को उठाया तो उसके नीचे से हार निकला. (बुख़ारी ह० 334, मुस्लिम ह० 816)
जनाबत की हालत में तयम्मुम | Janabat Ki Halat Me Tayammum
सय्यदना इमरान (रज़ि०) रिवायत करते हैं कि हम रसूलुल्लाह ﷺ के साथ सफ़र में थे. आप ﷺ ने लोगों को नमाज़ पढ़ाई. जब नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो अचानक आपकी नज़र एक आदमी पर पड़ी जो लोगों से अलग बैठा हुआ था और उसने लोगों के साथ नमाज़ नहीं पढ़ी थी. रसूलुल्लाह ﷺ ने उससे पूछाः ऐ फ़लां! लोगों के साथ नमाज़ पढ़ने से तुझे किस चीज़ ने रोका? उसने कहा मुझे जनाबत पहुंची और पानी न मिल सका. आप ﷺ ने फरमायाः तुझ पर मिट्टी (से तयम्मुम करना) लाज़िम है. पस वह तेरे लिए काफ़ी है. (बुख़ारी ह० 344, मुस्लिम ह० 1563)
ज़ख़्म या मर्ज़ की हालत में तयम्मुम | Zakhm Ya Marz Ki Halat Me Tayammum
अगर किसी कमज़ोर या बीमार शख्स पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाए और बहुत ज़्यादा सर्दी हो या पानी बहुत ठन्डा हो और गुस्ल करना उसके लिए नुक़सान देह हो तो उसे तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए.
एहतलाम वाला शख्स, हायज़ा (माहवारी) और निफ़ास (बच्चे की पैदाइश के बाद आने वाले ख़ून) से फ़ारिग़ होने वाली औरतें भी ज़रुरत के वक़्त तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ सकती हैं. इसलिए कि तयम्मुम, उज़्र या मजबूरी की हालत में वुज़ू और गुस्ल दोनों के बराबर है.
❖ सय्यदना इब्ने अब्बास (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि सर्दी का मौसम था. एक आदमी को गुस्ल जनाबत की ज़रूरत पेश आई. उसने इस बारे में मालूम किया तो उसे गुस्ल करने को कहा गया. उसने गुस्ल किया जिससे उसकी मौत हो गई.
जब रसूलुल्लाह ﷺ को इसकी ख़बर दी गई तो आप ﷺ ने फरमायाः “उन लोगों ने उसे मार डाला. अल्लाह उनको मारे. बेशक अल्लाह तआ़ला ने मिट्टी को पाक करने वाला बनाया (यानी वह तयम्मुम कर लेता)” (इब्ने खुज़ैमा ह० 273, अबू दावूद ह० 337)
❖ सय्यदना अम्र बिन आस (रज़ि०) को ग़ज़्वा ज़ाते सलासिल में भेजा गया. वह बयान करते हैं एक सख्त सर्दी की रात मुझे एहतलाम हो गया. मुझे डर था कि अगर मैंने गुस्ल किया तो कहीं हलाक न हो जाऊं. लिहाज़ा मैंने तयम्मुम किया और अपने साथियों के साथ नमाज़ फ़ज्र पढ़ ली.
जब हम रसूलुल्लाह ﷺ के पास आए तो इस बात का ज़िक्र किया गया, आप ﷺ ने पूछा “अम्र तुमने अपने साथियों के साथ हालते जनाबत में नमाज़ अदा कर ली.” मैंने कहा “मुझे अल्लाह का यह फरमान याद आ गया: “और अपनी नफ़्सों को क़त्ल मत करो, बेशक अल्लाह निहायत मेहरबान है.” मैंने तयम्मुम किया और नमाज़ पढ़ ली.” यह सुन कर रसूलुल्लाह ﷺ हंस पड़े और कुछ न कहा. (अबू दावूद ह० 334)
तयम्मुम का तरीका़ क्या है? Tayammum Ka Tarika Kya Hai?
1. सबसे पहले तयम्मुम करने की नीयत यानी इरादा दिल से करें.
2. फिर पाक ज़मीन पर एक बार हाथ मारें,
3. फिर हथेली पर फूंक मार कर गर्द-ग़ुबार उड़ा दे.
4. फिर दोनों हथेलियों से अपने चेहरे का एक बार मसह करें,
5. फिर बायीं हथेली से दाहिनी हथेली के पीछे वाले हिस्से का मसह करें.
6. फिर दाहिनी हथेली से बायीं हथेली के पीछे वाले हिस्से का मसह करें.
सय्यदना अम्मार (रज़ि०) बयान करते हैं कि वह सफ़र की हालत में जुंबी (नापाक) हो गए और (पानी न मिलने की वजह से) मिट्टी में लोटे और नमाज़ पढ़ ली. फिर (सफ़र से आ कर) यह हाल रसूलुल्लाह ﷺ के सामने बयान किया तो आप ﷺ ने फरमायाः तुम्हारे लिए सिर्फ़ यही काफ़ी था (और) फिर नबी अकरम ﷺ ने दोनों हाथ ज़मीन पर मारे और उन पर फूंक मारी, फिर उनके साथ अपने मुंह और दोनों हाथों पर मसह किया.” (बुख़ारी ह० 338, मुस्लिम ह० 568)
रसूलुल्लाह ﷺ ने सय्यदना अम्मार (रज़ि०) से कहा कि “तुम्हारे लिए सिर्फ़ यही काफ़ी था (और) फिर नबी अकरम ﷺ ने दोनों हाथ ज़मीन पर मारे और उन पर फूँक मारी, फिर उनके साथ आपने दोनों हाथों पर मसह किया फिर दोनों हाथों से चेहरे का मसह किया.” (बुख़ारी ह० 347)
तयम्मुम के मसाइल | Tayammum Ke Masaail
1. तयम्मुम के लिए पाक मिट्टी का होना ज़रूरी है. (सूरह निसा: 43)
2. तयम्मुम जैसे मिट्टी से जायज़ है इसी तरह शौर वाली ज़मीन, रेत, पत्थर और पक्की दीवार जहां गर्द-ग़ुबार हो, से भी जायज़ है.
3. जो दुआएं वुज़ू के बाद पढ़ी जाती हैं वही तयम्मुम के बाद भी पढ़ी जाएंगी क्योंकि तयम्मुम, वुजू का क़ायम मक़ाम है.
4. इसी तरह एक तयम्मुम से (वुज़ू की तरह) कई नमाज़े पढ़ सकते हैं.
5. जिन चीज़ों से वुजू टूटता है उन्हीं चीज़ों से तयम्मुम भी टूट जाता है.
6. जब तक यह मजबूरी क़ायम रहेगी, तयम्मुम भी बदस्तूर जाइज़ रहेगा चाहे यह वजह बरसों मौजूद रहे. अबू ज़र्र (रज़ि०) से रिवायत है रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमायाः “पाक मिट्टी मुसलमानों का वुजू है अगरचे दस साल भी पानी न पाए.” (अबू दावूद ह० 332, तिर्मिज़ी ह० 124)
7. अगर नमाज़ पढ़ लेने के बाद पानी की मौजूदगी का इल्म हो जाए तो उसे वुजू करके नमाज़ दोहराने की ज़रुरत नहीं है. लेकिन कोई अगर दोहरा ले तो बेहतर है.
सय्यदना अबू सईद (रज़ि०) से रिवायत है कि दो आदमियों ने तयम्मुम किया और नमाज़ पढ़ ली. फिर उन्हें पानी मिल गया तो एक ने नमाज़ दुहराई और दूसरे ने नमाज़ न दुहराई. फिर उन्होंने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा. आप ﷺ ने उस शख्स से कहा जिसने नमाज़ नहीं दुहराई थी कि “तुमने सुन्नत पर अमल किया और तुम्हारी (तयम्मुम वाली) नमाज़ तुम्हारे लिए काफ़ी है.” और दूसरे शख्स से कहा जिसने नमाज़ लौटाई थी कि “तुम्हारे लिए दो गुना सवाब है.” (अबू दावूद ह० 338, नसाई ह० 433)
8 लेकिन अगर नमाज़ के दौरान ही पानी मिल जाए तो नमाज़ छोड़ कर वुज़ू करे या अगर हालते जनाबत में है तो ग़ुस्ल करे. क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमायाः “पाक मिट्टी मुसलमानों का वुजू है अगरचे दस साल भी पानी न पाए. लेकिन जब तुमको पानी मिल जाए तो उसे अपने बदन पर बहा लो क्योंकि इसमें भलाई है.” (अबू दावूद ह० 332, तिर्मिज़ी ह० 124)
तो यह था तयम्मुम का तरीका (tayammum ka tarika) और उससे जुड़ी कई और मालूमात. उम्मीद है कि इससे आपके इल्म में इज़ाफ़ा हुआ होगा. इससे मुताल्लिक़ कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं. जज़ाकल्लाह ख़ैर.