सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीक़ा | Salatul Tasbeeh Namaz Ka Tarika - Muttaqi
इबादत

सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीक़ा | Salatul Tasbeeh Namaz Ka Tarika

بسم الله الرحمن الرحيم

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सलातुल तस्बीह पढ़ने के क्या फायदे हैं? | Salatul Tasbeeh Ki Fazeelat

सलातुल तस्बीह किस वक़्त पढ़ी जाए? | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Time

नमाज़े तस्बीह कैसे पढ़ी जाए? | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika

नोट: इस नमाज़ का एक और तरीक़ा मशहूर है. इस तरीक़े में क़ियाम की हालत में वो ख़ास कलिमात 15 की जगह 25 बार पढ़ने का ज़िक्र है. और 2 सज्दों के बाद खड़े होने से पहले 10 बार वो कलिमात पढ़ने का ज़िक्र नहीं है. यानी पूरी नमाज़ में उन तस्बीहात की गिनती 300 ही रहती है. लेकिन यह तरीका नबी ﷺ या सहाबा रज़िo में किसी से भी साबित नहीं है. बल्कि तबा- ताबिई अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक रहo, जो कि सहाबा के शागिर्द के शागिर्द हैं. उनसे साबित है. (देखिये तिर्मिज़ी ह० 481).

इसलिए बेहतर यही है कि जो तरीक़ा अल्लाह के हबीब ﷺ से साबित हो उसी पर अमल करना चाहिए. क्योंकि अल्लाह ने फ़रमाया: यक़ीनन तुम्हारे लिए रसूल अल्लाह में बेहतरीन नमूना (मौजूद) है. (कुर्आन 33;21)

नमाज़े तस्बीह  की दलील | Salatul Tasbeeh Ki Daleel

सय्यदना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़िo से रिवायत है कि नबी अकरम ﷺ ने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़िo से फ़रमायाः ऐ चचा अब्बास! क्या मैं आपको एक हदिया न दूं? क्या आपको कुछ तोहफ़ा इनायत न करूं? क्या मैं आपको दस बातें न सिखा दूं कि जब आप वह अमल करें तो अल्लाह आपके अगले-पिछले, पुराने-नए, अनजाने में और जान बूझकर किए गए तमाम छोटे बड़े, छुपे और ज़ाहिर गुनाह माफ़ फ़रमा दे? (वह यह) कि;

आप चार रकअ़त नफ़्ल इस तरह अदा करें कि हर रकअ़त में सूरह फ़ातिहा और कोई दूसरी सूरत पढ़ें. जब आप उस क़िराअत से फ़ारिग़ हो जाएं तो क़ियाम की हालत में यह कलिमात पंद्रह बार पढ़ें:

سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ
(सुब्हानल्लाहि वल्हम्दु लिल्लाहि वला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर)

फिर आप रुकूअ़ में जाएं (रुकूअ़ की तस्बीहात से फ़ारिग़ होकर) रुकूअ़ में भी उन्हीं कलिमात को दस बार दुहराएं. फिर आप रुकूअ़ से उठ जाएं और (समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह वगै़रह से फ़ारिग़ होकर) दस बार यही कलिमात पढ़ें.

फिर सज्दा में जाएं (सज्दा की तस्बीहात और दुआ पढ़ने के बाद) यही कलिमात दस बार पढ़ें. फिर सज्दा से सर उठाएं और (जलसा में जो दुआएं है वह पढ़ कर) दस बार उन्हीं कलिमात को दुहराएं और फिर (दूसरे) सज्दे में चले जाएं. (पहले सज्दा की तरह) दस बार फिर उस तस्बीह को अदा करें. फिर सज्दा से सर उठाएं (और जलसा इस्तिराहत में कुछ और पढ़े बग़ैर) दस बार इस तस्बीह को दुहराएं. एक रकअ़त में कुल 75 तस्बीहात हुईं. इसी तरह चारों रकअ़त में यह अमल दुहराएं.

अगर आप ताक़त रखते हों तो यह रोज़ाना एक बार पढ़ें, और आप ऐसा न कर सके तो हफ़्ते में एक बार पढ़ें. यह भी न कर सकते हों तो महीने में एक बार पढ़ें. यह भी न कर सकें तो साल में एक बार, अगर आप साल में भी एक बार ऐसा न कर सकते हों तो ज़िन्दगी में एक बार जरूर पढ़ें. (अबू दावूद ह० 1297, इब्ने माजा ह० 1387, सहीह इब्ने खुज़ैमा ह० 1216)

सलातुल तस्बीह को जमाअ़त से पढ़ना | Salatul Tasbeeh Ko Jamat Se Padhna

याद रहे कि हदीस शरीफ़ में नमाज़े तस्बीह को बा-जमाअ़त अदा करने का ज़िक्र नहीं है. सिर्फ़ अकेले अमल के तौर पर नबी अकरम ﷺ ने अपने चचा को इसकी तरगी़ब दी है. लिहाज़ा जो मुसलमान नमाज़े तस्बीह अदा करना चाहे उसे चाहिए कि पहले नमाज़े तस्बीह का तरीक़ा सीख ले. फिर उसे तन्हाई में अकेला पढ़ें.

यह इन्तिहाई ख़तरनाक है कि कोई बन्दा फ़र्ज़ नमाज़ों पर तो तवज्जो न दे मगर नमाज़ तस्बीह (बा-जमाअ़त) अदा करने के लिए हर वक़्त बेताब रहे, लिहाज़ा फ़र्ज़ नमाज़ छोड़ने वालों को पहले सच्ची तौबा करनी चाहिए. फिर वह नमाज़ तस्बीह पढ़े तो उसे यक़ीनन फ़ायदा होगा. इन्शा अल्लाहुल अज़ीज़

नमाज़े तस्बीह के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ की सनद ज़ईफ़ है. इसके रावी अब्दुल क़ुद्दूस बिन हबीब को हाफ़िज़ हुसैमी रहo ने मतरूक और अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहo ने झूठा कहा है.

कुछ ज़रूरी मसाइल | Kuch Zaruri Masaail

हज़रात! यह थी सलातुल तस्बीह से जुड़ी मोतबर मालूमात. हमारी पूरी कोशिश है कि हम लोगों तक अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ दीन को पहुंचाएं.

जज़ाकल्लाह ख़ैर.

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