सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीक़ा | Salatul Tasbeeh Namaz Ka Tarika
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हो सकता है कि आप गूगल पर salatul tasbeeh namaz ka tarika या salatul tasbeeh ki namaz ka tarika सर्च करके इस पोस्ट पर आये हों. लेकिन हक़ीक़त यह है कि सलात जो कि अरबी लफ़्ज़ है, उसी को उर्दू में नमाज़ कहते हैं. यानी इसको या तो नमाज़े तस्बीह कहा जाये या सलातुल तस्बीह. इस पोस्ट में आप अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ इस नमाज़ की फ़ज़ीलत, इसको पढ़ने का वक़्त, इसका पूरा और सही तरीक़ा और इससे जुड़े मसाइल के बारे में जानेंगे. इंशाअल्लाह.
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सलातुल तस्बीह पढ़ने के क्या फायदे हैं? | Salatul Tasbeeh Ki Fazeelat
यह एक नफ़्ल नमाज़ है जो बड़ी फ़ज़ीलतों वाली है. इसके ज़रिये अल्लाह तआ़ला हमारे अगले-पिछले, पुराने-नए, जाने-अनजाने में किए गए तमाम छोटे बड़े, छुपे और ज़ाहिर गुनाह माफ़ फ़रमा देता है. इसको तस्बीह की नमाज़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें हर रकअ़त में कुछ ख़ास तस्बीहात अलग से पढ़ी जाती हैं.
सलातुल तस्बीह किस वक़्त पढ़ी जाए? | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Time
अल्लाह के हबीब ﷺ ने इस नमाज़ को पढ़ने का कोई ख़ास वक़्त नहीं बताया है. यह नमाज़ 24 घंटों में किसी भी वक़्त पढ़ी जा सकती है सिवाय मकरूह वक़्त के जो कि दिन भर में 3 हैं: सूरज निकलते वक़्त, ज़वाल के वक़्त (यानी जब हमारी परछाई सबसे छोटी होती है, तब से ले कर 15 -20 मिनट बाद तक) और सूरज डूबते वक़्त. नबी ﷺ ने इस नमाज़ को हर रोज़, हर हफ़्ते, हर महीने, हर साल या ज़िंदगी में कम से कम एक बार पढ़ने की तरगी़ब दी है.
नमाज़े तस्बीह कैसे पढ़ी जाए? | Salatul Tasbeeh Ki Namaz Ka Tarika
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नमाज़े तस्बीह का तरीक़ा क्या है?
इस नमाज़ का कोई ख़ास अलग तरीक़ा नहीं है. जिस तरह 4 रकअ़त नफ़्ल या सुन्नत पढ़ी जाती है, उसी तरह इसको भी पढ़ा जाता है. बस इसमें कुछ ख़ास कलिमात ज़्यादा पढ़े जाते हैं. नमाज़े तस्बीह के तरीक़े के बारे में नबी अकरम ﷺ की साबित शुदा हदीस के अल्फ़ाज़ का ख़ुलासा इस तरह है:
1. सबसे पहले 4 रकअ़त नफ़्ल की नियत की जाए. ध्यान रहे कि नियत दिल के इरादे का नाम है, न कि ज़बान से दोहराने का.
2. अब पहली रकअ़त इस तरह पढ़ें कि पहले सूरह फ़ातिहा पढ़ें और उसके बाद कोई एक सूरत पढ़ें.
3. फिर क़िराअत के बाद रुकूअ़ से पहले, हालते क़ियाम में ही‘सुब्हानल्लाहि वल-हम्दुलिल्लाहि वला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर ‘ 15 बार पढ़ें.
4. फिर रुकूअ़ करें और रुकूअ़ की तस्बीह (सुब्हाना रब्बियल अज़ीम) पढ़ने के बाद यही ज़िक्र 10 बार पढ़ें.
5. फिर रुकूअ़ से उठकर समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह…. कहने के बाद इसको 10 बार पढ़ें.
6. फिर पहले सज्दे में सज्दे की तस्बीह (सुब्हाना रब्बियल अअ़ला) पढ़ने के बाद यही ज़िक्र 10 बार पढ़ें.
7. फिर सज्दे से उठें और दरमियानी जलसा में 10 बार पढ़ें.
8. फिर दूसरे सज्दे में जायें और सज्दे की तस्बीह पढ़ने के बाद यही ज़िक्र 10 बार पढ़ें.
9. फिर सज्दे से उठकर बैठें और जलसा इस्तिराहत में (यानी सज्दा करके खड़े होने से पहले बैठ कर) 10 बार पढ़ें. (यानी एक रकअ़त में कुल 75 तस्बीहात)
10. इसी तरह चारों रकअ़तें पढ़ें जिसमें हर रकअ़त में 75 बार तस्बीहात पढ़ी जाएं. पूरी नमाज़ में इनको 300 बार पढ़ा जायेगा.
11. दूसरी और चौथी रकअ़त के तशह्हुद में इन तस्बीहात को अत्तहिय्यात से पहले पढ़ा जाएगा.
12.यह नमाज़ हर रोज़, हर हफ़्ते, हर महीने, हर साल या ज़िंदगी में कम से कम एक बार पढ़ें.
नोट: इस नमाज़ का एक और तरीक़ा मशहूर है. इस तरीक़े में क़ियाम की हालत में वो ख़ास कलिमात 15 की जगह 25 बार पढ़ने का ज़िक्र है. और 2 सज्दों के बाद खड़े होने से पहले 10 बार वो कलिमात पढ़ने का ज़िक्र नहीं है. यानी पूरी नमाज़ में उन तस्बीहात की गिनती 300 ही रहती है. लेकिन यह तरीका नबी ﷺ या सहाबा रज़िo में किसी से भी साबित नहीं है. बल्कि तबा- ताबिई अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक रहo, जो कि सहाबा के शागिर्द के शागिर्द हैं. उनसे साबित है. (देखिये तिर्मिज़ी ह० 481).
इसलिए बेहतर यही है कि जो तरीक़ा अल्लाह के हबीब ﷺ से साबित हो उसी पर अमल करना चाहिए. क्योंकि अल्लाह ने फ़रमाया: यक़ीनन तुम्हारे लिए रसूल अल्लाह में बेहतरीन नमूना (मौजूद) है. (कुर्आन 33;21)
नमाज़े तस्बीह की दलील | Salatul Tasbeeh Ki Daleel
सय्यदना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़िo से रिवायत है कि नबी अकरम ﷺ ने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़िo से फ़रमायाः ऐ चचा अब्बास! क्या मैं आपको एक हदिया न दूं? क्या आपको कुछ तोहफ़ा इनायत न करूं? क्या मैं आपको दस बातें न सिखा दूं कि जब आप वह अमल करें तो अल्लाह आपके अगले-पिछले, पुराने-नए, अनजाने में और जान बूझकर किए गए तमाम छोटे बड़े, छुपे और ज़ाहिर गुनाह माफ़ फ़रमा दे? (वह यह) कि;
आप चार रकअ़त नफ़्ल इस तरह अदा करें कि हर रकअ़त में सूरह फ़ातिहा और कोई दूसरी सूरत पढ़ें. जब आप उस क़िराअत से फ़ारिग़ हो जाएं तो क़ियाम की हालत में यह कलिमात पंद्रह बार पढ़ें:
سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ
(सुब्हानल्लाहि वल्हम्दु लिल्लाहि वला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर)
फिर आप रुकूअ़ में जाएं (रुकूअ़ की तस्बीहात से फ़ारिग़ होकर) रुकूअ़ में भी उन्हीं कलिमात को दस बार दुहराएं. फिर आप रुकूअ़ से उठ जाएं और (समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह वगै़रह से फ़ारिग़ होकर) दस बार यही कलिमात पढ़ें.
फिर सज्दा में जाएं (सज्दा की तस्बीहात और दुआ पढ़ने के बाद) यही कलिमात दस बार पढ़ें. फिर सज्दा से सर उठाएं और (जलसा में जो दुआएं है वह पढ़ कर) दस बार उन्हीं कलिमात को दुहराएं और फिर (दूसरे) सज्दे में चले जाएं. (पहले सज्दा की तरह) दस बार फिर उस तस्बीह को अदा करें. फिर सज्दा से सर उठाएं (और जलसा इस्तिराहत में कुछ और पढ़े बग़ैर) दस बार इस तस्बीह को दुहराएं. एक रकअ़त में कुल 75 तस्बीहात हुईं. इसी तरह चारों रकअ़त में यह अमल दुहराएं.
अगर आप ताक़त रखते हों तो यह रोज़ाना एक बार पढ़ें, और आप ऐसा न कर सके तो हफ़्ते में एक बार पढ़ें. यह भी न कर सकते हों तो महीने में एक बार पढ़ें. यह भी न कर सकें तो साल में एक बार, अगर आप साल में भी एक बार ऐसा न कर सकते हों तो ज़िन्दगी में एक बार जरूर पढ़ें. (अबू दावूद ह० 1297, इब्ने माजा ह० 1387, सहीह इब्ने खुज़ैमा ह० 1216)
जम्हूर (अक्सर) मुहद्दिसीन ने इसको सहीह या हसन कहा है. जैसे इमाम मुस्लिम रहo (अल इरशाद लिल ख़लीली 1/326), अबू बक्र बिन अबू दावूद रहo (अस सिक़ात ला इब्ने शाहीन #1356), इमाम हाकिम रहo (इत्तिहाफ़ अल मुहरह 7/484). हाफ़िज़ इब्ने हजर रहo फ़रमाते हैं कि यह हदीस कसरते तुर्क़ (यानी कई सनदों ) की बिना पर हसन दर्जा की है.
शैख़ अलबानी रहo फ़रमाते हैं कि इमाम हाकिम रहo और हाफ़िज़ ज़हबी रहo ने इस हदीस की तक़वियत की तरफ़ इशारा किया है और यह हक़ है क्योंकि इसके बहुत से तुर्क़ हैं. अल्लामा मुबारक पुरी रहo और शैख़ अहमद शाकिर रहo ने भी इसे हसन कहा है. जबकि ख़तीब बगदादी रहo, इमाम नववी रहo और इब्ने सलाह रहo ने इसे सहीह कहा है.
सलातुल तस्बीह को जमाअ़त से पढ़ना | Salatul Tasbeeh Ko Jamat Se Padhna
याद रहे कि हदीस शरीफ़ में नमाज़े तस्बीह को बा-जमाअ़त अदा करने का ज़िक्र नहीं है. सिर्फ़ अकेले अमल के तौर पर नबी अकरम ﷺ ने अपने चचा को इसकी तरगी़ब दी है. लिहाज़ा जो मुसलमान नमाज़े तस्बीह अदा करना चाहे उसे चाहिए कि पहले नमाज़े तस्बीह का तरीक़ा सीख ले. फिर उसे तन्हाई में अकेला पढ़ें.
यह इन्तिहाई ख़तरनाक है कि कोई बन्दा फ़र्ज़ नमाज़ों पर तो तवज्जो न दे मगर नमाज़ तस्बीह (बा-जमाअ़त) अदा करने के लिए हर वक़्त बेताब रहे, लिहाज़ा फ़र्ज़ नमाज़ छोड़ने वालों को पहले सच्ची तौबा करनी चाहिए. फिर वह नमाज़ तस्बीह पढ़े तो उसे यक़ीनन फ़ायदा होगा. इन्शा अल्लाहुल अज़ीज़
नमाज़े तस्बीह के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ की सनद ज़ईफ़ है. इसके रावी अब्दुल क़ुद्दूस बिन हबीब को हाफ़िज़ हुसैमी रहo ने मतरूक और अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहo ने झूठा कहा है.
कुछ ज़रूरी मसाइल | Kuch Zaruri Masaail
1. इमाम इब्ने मुबारक रहo की तहक़ीक़ यह है कि अगर यह नमाज़ रात में पढ़ी जाये तो हर दो रकअ़त पर सलाम फेर दें और अगर दिन में पढ़ी जाये तो मर्ज़ी है कि एक साथ चार रकअ़त पढ़ें या दो –दो करके पढ़े. (तिर्मिज़ी ह० 481, मुस्तदरक हाकिम 1/319-320)
2. इसमें क़िराअत सिर्री (धीमी आवाज़ से) ही मस्नून है लेकिन रात में मामूली आवाज़ से क़िराअत करना भी जायज़ है. (अल फ़तावा कुबरा लिल बैहक़ी 1/191)
3. इमाम इब्ने मुबारक रहo के नज़दीक अगर कोई शख़्स उस नमाज़ में कुछ भूल जाये तो सजदा सह्व में 10 तस्बीहात नहीं पढ़ेगा बल्कि आम नमाज़ों की तरह सजदा की दुआएं पढ़ेगा. इसलिए कि इस हदीस में तस्बीहात की कुल तादाद 300 है. (तिर्मिज़ी ह० 371)
हज़रात! यह थी सलातुल तस्बीह से जुड़ी मोतबर मालूमात. हमारी पूरी कोशिश है कि हम लोगों तक अहले सुन्नत वल जमाअ़त की तालीमात के मुताबिक़ दीन को पहुंचाएं.
जज़ाकल्लाह ख़ैर.